बुधवार, 12 जुलाई 2017

प्रेम [दैनिक जागरण में प्रकाशित]

  • पीयूष द्विवेदी 'भारत'
संसार में शायद ही कोई ऐसा प्राणी मिले, जिसे प्रेम की अनुभूति नहीं हुई हो। मनुष्य, पशु-पक्षी, वन-पर्वत, नदी से लेकर कीट-पर्यंत हर प्राणी को किसी न किसी रूप में प्रेम की अनुभूति होती ही है। इनमें मनुष्य एकमात्र ऐसा है, जिसमें विवेक शक्ति अन्य प्राणियों की अपेक्षा बहुत अधिक होती है। इस कारण मनुष्य के प्रेम का क्षेत्र अन्यों की अपेक्षा अधिक विस्तृत और व्यापक होता है; उसमें कोई संकोच नहीं होता। मनुष्य अपने जैसे किसी मनुष्य से लेकर पशु-पक्षी और सम्पूर्ण प्रकृति के किसी भी प्राणी-मात्र के प्रति प्रेमानुभूति के अधीन हो सकता है। उदाहरणार्थ, हम देख सकते हैं कि अनेक लोग कुत्तों, बिल्लियों, खरगोश, तोता आदि पशु-पक्षियों का इस तरह लाड़ से पालन-पोषण करते हैं और उनके प्रति प्रेमासक्त रहते हैं कि जैसे वे उनकी संतान हों। ये प्रेम है।
दैनिक जागरण

प्रेम महान अनिश्चितताओं से पूर्ण और तर्कों से परे होता है। निस्संदेह यह केवल एक दृष्टि में बिना किसी सोच-विचार के अनायास ही हो जाता है। जो सोच-विचारकर किया जाए, वो कुछ और हो सकता है, प्रेम नहीं। कुछ विद्वजन इस एक दृष्टि के प्रेम को आकर्षण भी कहते हैं। निश्चित तौर पर इसमें आकर्षण का महत्व होता है, परन्तु पूर्णतः नहीं। क्योंकि, यदि ऐसा होता तो हर मनुष्य को सर्वाधिक आकर्षक मनुष्य या अन्य किसी भी सर्वाधिक आकर्षक प्राणी से ही प्रेम होता। परन्तु ऐसा नहीं है। निरपवाद रूप से हम देखते हैं कि जो व्यक्ति जिससे प्रेम कर लेता है, उसके लिए वही सर्वाधिक आकर्षक हो जाता है। अतः निष्कर्षतः कह सकते हैं कि आकर्षण से प्रेम नहीं उत्पन्न होता, बल्कि प्रेम से आकर्षण की उत्पत्ति होती है।

वर्तमान समय में आधुनिक विचारों से प्रभावित युवाओं द्वारा प्रेम के नामपर जिस प्रकार की वृत्तियों का परिचय दिया जा रहा, वो प्रेम नहीं मनोरंजन का एक उपक्रम भर है। अधिकांश युवाओं को हर उस क्षण प्रेम हो उठता है, जब उनके समक्ष कोई रूपवान और योग्य व्यक्ति आता है। उनका ये कथित प्रेम रेत के घर जितना भी नहीं टिकता। फिर वे प्रेम के विषय में अनेक निराशाजनक धारणाएँ बना लेते हैं। जबकि वास्तव में वे प्रेम से गुजरे ही नहीं होते, वे तो सिर्फ प्रेम के नामपर मज़ाक किए होते हैं। युवाओं की ये प्रेम विषयक अज्ञानता न केवल उनकी दृष्टि में प्रेम के प्रति नकारात्मक धारणाएँ उत्पन्न करती है, बल्कि सामाजिक रूप से भी प्रेम के स्तर को क्षति पहुंचाने का काम कर रही है।

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