गुरुवार, 9 फ़रवरी 2017

आतंकवाद का बदलता स्वरूप बेहद घातक [राज एक्सप्रेस में प्रकाशित]



  • पीयूष द्विवेदी भारत

गत वर्ष नवम्बर में हुए कानपुर रेल हादसे जिसमें लगभग डेढ़ सौ लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी थी, के विषय में अब एक नया खुलासा सामने आया है। इसमें पाकिस्तानी खुफ़िया एजेंसी आईएसआई की साज़िश की बात सामने रही है। जांच एजेंसियों को मिले सबूतों के आधार पर इस हादसे में किसी साज़िश का अंदाज़ा तो पहले से ही लगाया जा रहा था, लेकिन अब नेपाल के काठमांडू से इस हादसे के साजिशकर्ता की गिरफ़्तारी ने इसके आतंकी साज़िश होने की पुख्ता तौर पर पुष्टि भी कर दी है। नेपाल के काठमांडू से गिरफ़्तार शमशुल होदा को पाकिस्तानी खुफ़िया एजेंसी आईएसआई के इशारे पर इस हादसे की साज़िश रचने के आरोप में गिरफ़्तार किया गया और पूछताछ के बाद इस सम्बन्ध में पुष्टि भी हो गयी है। भारत की राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) द्वारा शमशुल होदा से दो दिनों की लम्बी पूछताछ की गयी, जिसमें कि एजेंसी को काफी कुछ जानकारी मिली है। अब हौदा को नेपाल से भारत लाए जाने की तैयारी चल रही है।  

राज एक्सप्रेस
दरअसल रेल हादसे से आतंकी साज़िश तक की इस पूरी गुत्थी के तार कुछ ऐसे जुड़े कि कानपुर रेल हादसे के बाद  नेपाल से ही गिरफ़्तार बृज किशोर गिरी नामक हमलारोपी के पास से जांच एजेंसियों को एक ऑडियो क्लिप मिली थी, जिसमें कानपुर रेल हादसे की साज़िश से सम्बंधित बातचीत थी। यहीं से जांच एजेंसियों ने इस हादसे को लेकर साज़िश की दृष्टि से गंभीरतापूर्वक जांच-पड़ताल शुरू कर दी। और इस तरह इसमें शमशुल होदा के शामिल होने की बात सामने आयी, जो कि दुबई में बैठकर भारतीय ट्रेनों को निशाना बनाने की साज़िश रच रहा था। ऐसा माना जा रहा है कि भारत के राजनयिक दबाव के जरिये शमशुल होदा को दुबई से नेपाल भेजा गया, जहां उसकी गिरफ़्तारी हुई। अब वह जांच एजेंसियों के चंगुल में है और उसपर कानूनी  कार्रवाई की कवायदें शुरू कर दी गयी हैं। लेकिन, यहाँ सवाल ये उठता है कि क्या बम धमाकों, प्लेन हाईजेक, गोलीबारी आदि के आतंकी हमले पारंपरिक तौर-तरीकों के बाद अब आतंकवाद रेल हादसों की साज़िश के शक्ल में हमारे सामने आने की तैयारी में है ? मौज़ूदा घटना को देखते हुए लगता तो ऐसा ही है और यह बेहद चिंताजनक भयावह है।

यह वास्तविकता है कि अब भारत आतंकी हमलों के लिए पहले की अपेक्षा काफी कम असुरक्षित रह गया है। भारत ने धीरे-धीरे अपने सभी बाहरी प्रवेश मार्गों की सुरक्षा व्यवस्था को चाक-चौबंद कर लिया है। अब आतंकियों के लिए हथियारों से लैस होकर छिपते-छिपाते भी हमारी सीमा में घुस पाना पहले की तरह आसान नहीं रह गया है। दूसरी तरफ सीमा पर भी हमारे जवानों की मुस्तैदी के कारण आतंकी घुसपैठ करने में कामयाब नहीं हो पा रहे। उनकी कोशिशें सीमा पर ही हमारे जवानों के हौसलों और गोलियों के आगे धराशायी हो जा रही हैं। ऐसे में, अब उन्हें अपनी रणनीति में बदलाव की ज़रूरत महसूस हुई होगी। संभव है कि इसी कारण उन्होंने रेल हादसों की साज़िश रचने के तरीके को अपनाया हो। चूंकि, ये ऐसा तरीका है जिसमें किसी प्रकार के विशेष हथियार या बम-बारूद आदि की कोई आवश्यकता नहीं पड़ती, दूसरी तरफ इससे जान-माल की क्षति भी बहुत अधिक होती है। कोई हथियार या गोला-बारूद लाना पड़े और ही किसी आतंकी को अपनी जान ज़ोखिम में डालनी पड़े, तिसपर क्षति भी भरपूर हो, इससे अधिक आतंकियों को और क्या चाहिए! निश्चित तौर पर ऐसी ही और भी अनेक बातों को देखते हुए उन्होंने रेल हादसों की साज़िश रचने को अपनी रणनीति में शामिल किया होगा। और अपनी रणनीति को अंज़ाम देने में वे कामयाब भी रहे। लेकिन, उनकी यह रणनीति केवल अबतक होते रहे आतंकी हमलों के तरीकों की तुलना में अधिक भयावह है, बल्कि देश की सुरक्षा व्यवस्था के लिए बेहद चुनौतीपूर्ण भी सिद्ध होने वाली है। इससे निपटने के लिए देश को दो मोर्चों पर तैयार होना होगा। सबसे पहले हमें अपने तकनीकी मानविक आसूचना तंत्र को और सशक्त बनाने पर बल देना होगा, जिससे इस तरह की किसी भी गतिविधि की समय रहते हमें सूचना मिल सके। दूसरी चीज़ कि अब हमें अपनी रेलवे की सुरक्षा प्रणाली को यथाशीघ्र आधुनिक बनाने पर ज़ोर देना होगा, जिससे कि पटरी आदि में कोई समस्या होने पर उसकी भी सूचना पूर्व में ही मिल सके। अगर आतंकियों की इस नवीन रणनीति से लड़ना है, तो इन मोर्चों पर हमें खुद को तैयार करना ही होगा।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें