रविवार, 8 जनवरी 2017

परिवार और राजनीति में अंतर का आदर्श स्थापित करते मोदी [हरिभूमि में प्रकाशित]

  • पीयूष द्विवेदी भारत
इसमें कोई विवाद नहीं कि कांग्रेस, भारतीय लोकतान्त्रिक व्यवस्था में परिवारवादी राजनीति की जनक है। स्वतंत्रता के पश्चात् पं नेहरु देश के प्रथम प्रधानमंत्री बने, जिसके बाद धीरे-धीरे अनेक विचारों और विचारधाराओं की संगम, स्वतंत्रता आन्दोलन की कांग्रेस, नेहरू की कांग्रेस में परिवर्तित होती गयी। फिर नेहरु से होते हुए वो उनके परिवार की पार्टी बन गयी। नेहरू की पुत्री इंदिरा गांधी, फिर इंदिरा के पुत्र राजीव गांधी, राजीव गांधी की पत्नी सोनिया गांधी और अब उनके बेटे राहुल गांधी तक कांग्रेस परिवारवादी राजनीति को सहर्ष अंगीकार करती आयी है। कांग्रेस द्वारा आरम्भ इस परिवारवादी राजनीति का अनुकरण देश के और भी अनेक दलों ने किया है। मुख्यतः यूपी की राजनीति में सक्रिय मुलायम सिंह यादव की समाजवादी पार्टी हो, बिहार में लालू प्रसाद यादव की राजद हो, पंजाब की शिरोमणि अकाली दल हो, महाराष्ट्र की शिवसेना हो, जम्मू-कश्मीर की पीडीपी और नेशनल कांफ्रेंस हों, सबमें परिवारवादी राजनीति एकदम शीर्ष स्तर पर काबिज़ है। इन सबके बीच भाजपा एकमात्र ऐसी पार्टी नज़र आती है, जो परिवारवाद के चंगुल से आज़ाद है। लेकिन, भाजपा में भी नरेंद्र मोदी जो आज देश के प्रधानमंत्री हैं, जिस प्रकार परिवार और राजनीति के बीच अंतर स्थापित किए रहे हैं, वो न केवल प्रशंसनीय है, बल्कि अपने आप में वर्तमान राजनीति के लिए एक उत्कृष्ट आदर्श की तरह भी है।  

पं नेहरू से लेकर मनमोहन सिंह तक जितने भी प्रधानमंत्री हुए हैं, अमूमन सभी के साथ उनका परिवार या परिवार के कुछेक सदस्य प्रधानमंत्री आवास में रहे हैं। यहाँ तक कि भाजपा के अटल बिहारी वाजपेयी जो अविवाहित हैं, जब प्रधानमंत्री बने तो उनके साथ उनकी बहन का परिवार प्रधानमंत्री आवास में रहा। लेकिन, अबतक के इन सभी प्रधानमंत्रियों की इस परंपरा के लिए अपवादस्वरूप प्रधानमंत्री मोदी एकदम अकेले रहते हैं। उनके साथ प्रधानमंत्री आवास में उनके परिवार का कोई सदस्य नहीं है। यहाँ तक कि परिवार के सदस्यों से प्रधानमंत्री कोई सामान्य संपर्क भी नहीं करते। केवल अपने जन्मदिन तथा अन्य किसी विशेष अवसर पर वे अपनी माँ से मिलने जाते हैं, जो कि उनके छोटे भाई पंकज मोदी के साथ गुजरात के गांधीनगर में रहती हैं। बीते वर्ष उन्होंने सिर्फ अपनी माँ को प्रधानमंत्री आवास में अपने पास बुलाया था, लेकिन वे लगभग सप्ताह भर बाद ही वापस गांधीनगर नरेंद्र मोदी के भाई के पास वापस चली गईं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाई पंकज मोदी सूचना विभाग से हाल ही में सेवानिवृत हुए हैं।
 
हरिभूमि
इंडिया टुडे में प्रकाशित उदय माहुरकर के एक लेख के अनुसार, प्रधानमंत्री के सबसे बड़े भाई सोमभाई मोदी वडनगर में वृद्धाश्रम चलाते हैं। मोदी के दूसरे बड़े भाई अमृत मोदी एक निजी क्षेत्र की कंपनी से फिटर के पद से सेवानिवृत्त हैं और अहमदाबाद के घाटलोदिया में एक सामान्य से मकान में रहते हैं। कहते हैं कि उस इलाके में लोग यह तो जानते हैं कि अमृत मोदी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बड़े भाई हैं, लेकिन यह सिर्फ जानने तक ही सीमित है, इसका कोई प्रभाव उनके जीवन पर नहीं पड़ता। ऐसे ही मोदी के छोटे भाई प्रह्लाद मोदी गल्ले की एक दूकान चलते हैं और इसीसे सम्बंधित एक संगठन के अध्यक्ष भी हैं। इस प्रकार स्पष्ट है कि प्रधानमंत्री मोदी के परिवार के सदस्य सामान्य मध्यमवर्गीय परिवारों की तरह अपना जीवन चला रहे हैं। उन्हें इस बात का कोई ध्यान नहीं कि उनके परिवार का एक सदस्य आज इस देश का पूर्ण बहुमत से निर्वाचित प्रधानमंत्री है। न तो प्रधानमंत्री मोदी उन्हें कुछ लाभ या सहयोग देते हैं और न ही उनकी मोदी से ऐसी कोई अपेक्षा ही कभी सामने आयी है। पिछले दिनों एक साक्षात्कार में प्रह्लाद मोदी ने बताया था कि वे बीते तेरह वर्षों में नरेंद्र मोदी से सिर्फ तीन बार मिले हैं। उन्होंने यह भी कहा था कि वे अक्सर अपने कार्य या संगठन के विरोध प्रदर्शनों में हिस्सा लेने के लिए दिल्ली आते रहते हैं, लेकिन कभी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलने नहीं गए। इस तरह समझा जा सकता है कि प्रधानमंत्री मोदी द्वारा अपने राजनीतिक दायित्वों और परिवार के बीच किस तरह की दूरी रखी गयी है। आज भारतीय राजनीति में ऐसे अनेक उदाहरण मिल जाएंगे जहां राजनेता सत्ता पाते ही उसमें परिवार के लोगों को सेट करने में लग जाते हैं। उत्तर प्रदेश, बिहार, पंजाब आदि कई राज्यों की राजनीति में इसके जीवंत उदहारण मौजूद हैं। कहना गलत नहीं होगा कि राजनीति में परिवारवाद की घुसपैठ के ऐसे वक़्त में प्रधानमंत्री मोदी का उक्त आचरण वर्तमान राजनीतिक दलों और नेताओं के लिए एक उच्चतम आदर्श प्रस्तुत करने वाला है।  पिछले दिनों एक रैली में भावुक होते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था, “मै इतने बड़े पद के लिए नहीं बना था, मेरे लिए मेरा परिवार महत्वपूर्ण था, जिसे मैंने देश के लिए छोड़ दिया।” उपर्युक्त तथ्य प्रधानमंत्री मोदी की इस बात को पूरी तरह से प्रमाणित करते हैं।   

ऐसा नहीं कि प्रधानमंत्री बनने के बाद ही नरेंद्र मोदी ने परिवार से इस प्रकार की दूरी बनायी है, गुजरात का मुख्यमंत्री रहने के दौरान भी उनके साथ परिवार का कोई सदस्य मुख्यमंत्री आवास में नहीं रहता था। तब भी बीच-बीच में वैसे ही भेंट-मुलाकाते होती थीं, जैसे कि अब होती हैं।

दरअसल यह भारतीय संस्कृति का प्राचीन सिद्धांत रहा है कि जब राष्ट्र-सेवा और राष्ट्र के प्रति अपने कर्तव्यों के निर्वहन का प्रश्न आए तो परिवार का मोह त्याग देना चाहिए। आदिगुरू शंकराचार्य को जब लगा कि समाज के प्रति उनका कर्तव्य बड़ा है, तो उन्होंने बाल्यकाल में ही घर-परिवार को त्याग दिया। आज नरेंद्र मोदी भी इसी भारतीय परम्परा का अनुकरण कर रहे हैं। भारतीय राजनीति में अपनी जड़ें जमा चुकी परिवारवाद जैसी बुराई के शमन तथा राजनीतिक शुचिता की दृष्टि से मोदी का यह आचरण न केवल प्रशंसनीय है, बल्कि सभी दलों के नेताओं के लिए अनुकरणीय भी है।

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