मंगलवार, 26 अप्रैल 2016

संघमुक्त भारत का दिवास्वप्न [दबंग दुनिया में प्रकाशित]

  • पीयूष द्विवेदी भारत 

दबंग दुनिया 
कभी भारतीय जनता पार्टी नीत एनडीए के महत्वपूर्ण घटक रहने वाले जेडीयू के नवनिर्वाचित अध्यक्ष और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर इन दिनों संघमुक्त भारत की एक अजीब सी धुन सवार दिख रही है और अक्सर जहाँ-तहां वे इस धुन का आलाप भी कर दे रहे हैं। अभी कुछ रोज पहले उन्होंने ये बयान दिया था कि भारत को संघमुक्त करके रहेंगे तो इसपर काफी हो-हंगामा हुआ था। उनका मजाक भी बना और उनके बयान पर सवाल भी उठे। लेकिन, लगता नहीं कि इन सब से उन्हें कुछ सबक मिला है क्योंकि, अब एकबार फिर अपने जेडीयू अध्यक्ष निर्वाचित होने के अवसर पर उन्होंने संघमुक्त भारत की अपनी इसी बात को पूरे दमखम के साथ दोहराया है। विगत दिनों जेडीयू की राष्ट्रीय परिषद् की बैठक में जब नीतीश कुमार को औपचारिक रूप से जेडीयू का अध्यक्ष नियुक्त किया गया, उसी अवसर पर उन्होंने ये बात कही। दरअसल, बिहार विधानसभा चुनाव में लालू और काग्रेस के साथ हुए उनके महागठबंधन को जिस तरह से अप्रत्याशित सफलता मिली, कहीं न कहीं उसीने उन्हें इतने आत्मविश्वास या यूँ कहें कि अति-आत्मविश्वास से भर दिया है कि अब वे सीधे संघमुक्त भारत की ही बात करने लगे हैं। यह अति-आत्मविश्वास ऐसा है कि बिहार में सफ़ल हुए महागठबंधन की तर्ज पर अब वे राष्ट्रीय स्तर पर महागठबंधन बनाकर उसके द्वारा संघमुक्त भारत की अपनी संकल्पना को फलीभूत करने की सोचने लगे हैं। अपने अध्यक्ष बनने के अवसर पर उन्होंने कहा कि भाजपा संघ की विचारधारा पर चलती है, इसलिए वे संघमुक्त भारत पर जोर दे रहे हैं। समझने का प्रयास करें तो नीतीश बाबू का आशय यह है कि वे मिटाना भाजपा को चाहते हैं लेकिन, इसके लिए उन्हें संघ को समाप्त करना पड़ेगा। अब नीतीश कुमार को तो देश उनके इमानदार छवि के साथ-साथ व्यावहारिक बुद्धि के लिए भी जानता है लेकिन, सवाल है कि उनकी व्यावहारिक बुद्धि कहाँ चली गई है कि संघ के सम्बन्ध में ऐसी बचकानी सोच उनमे उत्पन्न हो रही है कि भाजपा को समाप्त या कमजोर करने के लिए संघमुक्त भारत जैसी असंभव कल्पना करने लगे हैं। यह तो वही बात हुई कि समुद्र में रहने वाले किसी विशाल जीव को मिटाने के सारे प्रयास विफल होने पर कोई समुद्र को ही सुखाने चल दे। अब ऐसे अव्यवहारिक मार्ग पर चलने वाले को सफलता तो खैर मिल ही नहीं सकती, पर उसके विनाश की संभावना जरूर पैदा हो जाती है। दुर्योग यह है कि बिहार की जनता द्वारा विश्वास दिखाकर सत्ता सौंपे जाने के बाद अपनी जिम्मेदारियों पर ध्यान देने की बजाय नीतीश कुमार उपर्युक्त प्रकार के मार्ग का अनुसरण करते नज़र आ रहे हैं। जिससे न तो उनका हित हो सकता है और न ही बिहार की जनता का।   
वैसे, नीतीश कुमार से तो यह भी पूछा जाना चाहिए कि कई एक विन्दुओं पर तो भाजपा और संघ में ही विरोध प्रत्यक्ष हो जाता है, फिर वे भाजपा और संघ को एक ही चश्मे से क्यों देख रहे हैं ? एक ताज़ा उदाहरण द्रष्टव्य है कि बिहार चुनाव के दौरान संघ प्रमुख मोहन भागवत ने आरक्षण की समीक्षा की बात कही थी, जिससे भाजपा ने सीधे-सीधे कन्नी काटते हुए आरक्षण के वर्तमान स्वरुप को लेकर अपनी प्रतिबद्धता को दोहराया था। ऐसे ही श्रम कानूनों में जब केंद्र की भाजपा नीत राजग सरकार ने संशोधन किए तो संघ के श्रमिक संगठन भारतीय मजदूर संघ ने कई विन्दुओं पर उसका भी विरोध किया था। इसके अलावा और भी तमाम बातें हैं, जहाँ भाजपा और संघ आमने-सामने आते रहे हैं। कहने का तात्पर्य यही है कि बेशक भाजपा का वैचारिक स्रोत संघ हो तथा प्रधानमंत्री मोदी समेत भाजपा के तमाम नेता संघ से सम्बद्ध रहे हों लेकिन, इसका यह कत्तई अर्थ नहीं कि संघ और भाजपा को एक ही पहलू में रखकर देखा जाय। भाजपा एक राजनीतिक दल है, जिसकी स्वाभाविक रूप से अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं और उन्हीसे सम्बद्ध उत्तरदायित्व भी हैं, जबकि संघ सत्य सनातन धर्म अर्थात हिंदुत्व का संवाहक एक स्वयंसेवी संगठन है जिसकी देश भर में पचास हजार से अधिक शाखाएं, लगभग तीन दर्जन  आनुषांगिक संगठन और करोड़ों की संख्या में स्वयंसेवक हैं जो बिना किसी सामजिक-आर्थिक लालसा के सदैव सेवा भाव से देशभर में कार्यरत रहते हैं। वहीँ, राजनीतिक दल होने के कारण भाजपा के लिए पूर्णतः शासन में होना या शासन का हिस्सा भी होना अत्यधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि, ऐसी स्थिति में ही वो अपनी चीजों को आगे बढ़ा सकती है। लेकिन, संघ के लिए सत्ता जैसी कोई चीज है ही नहीं। भाजपा सत्ता में रहे यां न रहे, संघ की गतिविधियाँ सतत गतिशील रहती हैं। गौर करें तो संघ के प्रकल्पों ने प्रत्येक क्षेत्र में देश को सशक्त बनाने और गति देने का कार्य किया है। फिर चाहें वो दीनदयाल शोध संस्थान के माध्यम से देश के गांवों को स्वावलंबी बनाना हो जिसमे संघ के हजारों स्वयंसेवक बिना किसी लोभ-लालसा के कठिन परिश्रम और समर्पण के साथ काम कर रहे हैं या फिर विद्या भारती जैसी शिक्षा क्षेत्र की सबसे बड़ी गैरसरकारी संस्था हो, जिसके तहत देश भर में लगभग १८००० शिक्षण संस्थान बिना किसी सरकारी सहयोग के कार्यरत हैं अथवा वनवासी कल्याण आश्रम जैसी संस्था को ही लीजिये जिसके द्वारा देश के वनवासी लोगों के रहन-सहन, शिक्षा, स्वास्थ्य आदि की समुचित व्यवस्था कर उनका सर्वांगीण विकास किया जा रहा है। आंकड़े के अनुसार संघ की यह संस्था फिलहाल देश के लगभग ८ करोड़ वनवासी लोगों के लिए कार्य कर रही है। ऐसे ही, सेवा भारती जैसी संस्था के रूप में संघ स्वास्थ्य के क्षेत्र में सक्रिय रूप से देश के दूर-दराज के उन क्षेत्रों तक पहुँच के कार्य कर रहा है जहां सरकारी मिशनरी भी ठीक ढंग से नहीं पहुंची है। भारतीय मजदूर संघ और भारतीय किसान मंच के द्वारा मजदूरों और किसानों के लिए भी संघ सदैव संघर्ष करता रहा है। इनके अलावा संघ के और भी तमाम प्रकल्प हैं, जिनके माध्यम से वो देश के कोने-कोने तक न केवल मौजूद है बल्कि देशवासियों के लिए अथक रूप से कार्य भी कर रहा है। ये यूँ ही तो नहीं हो जाता कि देश में कहीं भी, कोई भी आपदा आए तो वहां संघ के स्वयंसेवक तुरंत मौजूद हो राहत कार्य में जुट जाते हैं। स्पष्ट है कि संघ इस देश के हर हिस्से में, हर स्तर पर सक्रियता से मौजूद है। अब नीतीश कुमार साहब यह बताएं कि देश की रग-रग में मौजूद इस संघ को वे कहाँ-कहाँ से और कैसे ख़त्म करेंगे ? उनके पास कोई जवाब नहीं होगा क्योंकि, वे सिर्फ संघमुक्ति का एक दिवास्वप्न देख रहे हैं।
दिवास्वप्न ही सही मगर, सवाल तो यह भी है कि ऐसे राष्ट्रव्यापी स्वयंसेवी संगठन जो देश की प्रगति के लिए निस्वार्थ भाव से कार्य कर रहा है, से नीतीश कुमार साहब को तकलीफ क्यों हो रही है ? और संदेह नहीं कि उनकी इस तकलीफ में देश के अन्य तथाकथित धर्मनिरपेक्ष दल भी पूर्णतः सहमति जताएँगे। दरअसल संघ के सब कार्यों के साथ उसकी पहचान हिन्दुत्ववादी संगठन की है। बस यही विन्दु हमारे देश के इन तथाकथित धर्मनिरपेक्ष राजनीतिक दलों को नहीं पचती। क्योंकि हिंदुत्व की बात करने से उनकी धर्मनिरपेक्षता आहत होती है। हालांकि इस्लाम या अन्य किसी मजहब की पैरोकारी से उस धर्मनिरपेक्षता को कोई हानि नहीं होती। इसीलिए वे कभी गांधी की हत्या तो कभी सांप्रदायिक दंगों आदि से संघ का नाम जोड़कर उसे बदनाम करने की साज़िश करते रहते हैं जबकि वास्तविकता यह है कि गांधी की हत्या में संघ का नाम साजिशन लाया गया और रही बात दंगों की तो तथ्य यही है कि ताली कभी भी एक हाथ से नहीं बजती। संघ किसीके भी अहित की बात नहीं करता, वो तो केवल हिन्दू हितों की रक्षा के प्रति कृत संकल्पित हैं और सच्ची बात यह है कि उसके इसी हिन्दुत्ववादी रुख से इस देश के तथाकथित धर्मनिरपेक्षों को पीड़ा होने लगती है। अब जब संघ के सहयोग से ही भाजपा सत्तारूढ़ है तो वे दल और बेचैन हैं। इसी बेचैनी में नीतीश कुमार का संघमुक्त भारत जैसा बयान आया है, जो उन्हें हानि छोड़ लाभ नहीं दे सकता।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें