- पीयूष द्विवेदी भारत
राज एक्सप्रेस |
जम्मू-कश्मीर के हंदवाड़ा में कथित तौर पर भारतीय
सेना के जवान द्वारा युवती से छेड़-छाड़ तथा इसके खिलाफ प्रदर्शन कर रहे लोगों को
रोकने के लिए सेना की फायरिंग में चार लोगों के जान गंवाने का मामला सामने आने के
बाद से जम्मू-कश्मीर समेत देश भर में ऐसे उथल-पुथल मच गई, जैसे जम्मू-कश्मीर पर
कोई बहुत बड़ी आपदा आ गई हो। इस मामले पर गौर करें तो प्राप्त खबरों के अनुसार विगत
दिनों जम्मू-कश्मीर के हंदवाड़ा में सेना की चौकी के नजदीकी शौचालय में एक युवती
गई, जहाँ सेना का एक जवान भी पहुंचकर उसे छेड़ने लगा। लोगों की नज़र में आने पर वो
जवान भाग पड़ा। इसीसे आक्रोशित होकर लोगों ने सेना की चौकी पर पथराव करना तथा
तरह-तरह से हंगामा मचाना शुरू कर दिया, जिसको रोकने के लिए सेना की तरफ से फायरिंग
की गई जिसमे चार लोगों की जान चली गई तथा बहुत से लोग घायल भी हुए। इस पूरे प्रकरण
के बाद जम्मू-कश्मीर में सेना के प्रति जो आक्रोश दिखा सो दिखा ही, देश के राजनीति
से लेकर मीडिया तथा बुद्धिजीवो वर्ग तक के उन कुछ विचारधारा विशेष के लोगों जो
जम्मू-कश्मीर में भारतीय सेना की तैनाती का विरोध करना ही अपना परम कर्तव्य मानते
हैं, को भी जैसे बिन मांगे मुराद मिल गई। उनके
हाथ फिर एक मौका लग गया कि जम्मू-कश्मीर में सेना की तैनाती को गलत बताते हुए उसकी
बर्बरता का खोखला ढोल पीट सकें। हालांकि भारतीय सेना पर सवाल उठाने वालों को अधिक
समय तक यह सब करने का अवसर नहीं मिल सका क्योंकि सेना ने अपने पर लग रहे आरोपों का
खंडन करते हुए पीड़ित लड़की का एक विडियो जारी किया जिसमे वो स्पष्ट रूप से कह रही
है कि उसे सेना के जवान ने नहीं, चार अन्य लड़कों ने छेड़ा था बल्कि सेना तो उसे बचाने का
जतन कर रही थी। इस विडियो के सामने आने के बाद से इस पूरे मामले की पोल खुल गई है
कि यह मामला और कुछ नहीं, सिर्फ और सिर्फ भारतीय सेना को बदनाम करने की एक साज़िश भर है। दरअसल इसमें कुछ नया नहीं है
क्योंकि जम्मू-कश्मीर के अलगाववादियों द्वारा अक्सर भारतीय सेना पर इस तरह के आरोप
लगाकर जम्मू-कश्मीर में उसकी तैनाती का विरोध किया जाता रहा है। बस यह साजिश भी
उसी विरोध को एक तार्किक पुष्टि देने की नाकाम कोशिश है।
दरअसल अलगाववादियों
द्वारा जम्मू-कश्मीर में भारतीय सेना की तैनाती का विरोध करने के पीछे केवल एक
मंशा काम करती है कि किसी भी तरह उसे जम्मू-कश्मीर से वापस बुला लिया जाय जिससे
वहां अलगाववादी खुलेआम अपनी तानाशाही चला सकें और पाक प्रेरित भारत विरोधी
गतिविधियों को अंजाम दे सकें। चूंकि सेना के होने से उनकी ये मंशा पूरी नहीं हो
पाती और उनपर पूरी तरह से नकेल कसी रहती है, इसीलिए सेना से वे खुन्नस खाए रहते
हैं। अतः उनकी वजह को तो समझा जा सकता है कि क्यों वे भारतीय सेना का विरोध कर रहे।
लेकिन देश के उन कुछ मुट्ठीभर राजनेताओं, मीडिया के लोगों और बुद्धिजीवियों का
क्या उद्देश्य है कि वे भी जम्मू-कश्मीर के उन अलगाववादियों के सुरों का समर्थन
करते रहते हैं और उन्हिकी भाषा में भारतीय सेना को जम्मू-कश्मीर से वापस बुला लेने
का विलाप मचाए रहते हैं। साथ ही, अपनी इस
अनुचित और राष्ट्रहित के प्रतिकूल बात को सिद्ध करने के लिए अक्सर तरह-तरह के मौके
तलाशने और कुतर्क गढ़ने में लगे रहते हैं। यहाँ तक कि अपनी बात सही सिद्ध करने के
चक्कर में वे परम श्रेष्ठ और कर्तव्यनिष्ठ भारतीय सेना पर अलगाववादियों की ही तरह
विभिन्न घिनौने आरोप लगाने से भी बाज नहीं आते। एक तर्क वे यह देते हैं कि बन्दूक
के जोर से जम्मू-कश्मीर को अपना नहीं बनाया जा सकता, इसलिए वहां से सेना हटा देनी
चाहिए। उन से पूछा जाना चाहिए कि वहां से सेना को हटा देने से क्या वहां हालात बदल
जाएंगे और सबकुछ ठीक हो जाएगा ? अब इतने
भोले तो वे हैं नहीं कि ये न समझ सकें कि सेना के हटते ही जम्मू-कश्मीर को भारत
में आतंकियों का गढ़ बनते देर नहीं लगेगी जो न केवल जम्मू-कश्मीर बल्कि पूरे देश के
लिए अत्यंत घातक होगा। अतः जम्मू-कश्मीर से सेना को हटाने का फ़िलहाल तो कोई प्रश्न
ही नहीं उठता। पर वे यह सब करते हैं क्योंकि उन्हें तथाकथित सेकुलर कहलाना है और
उसके लिए आवश्यक है कि उस मजहब विशेष का तुष्टिकरण किया जाय जिसका जमू-कश्मीर में
बाहुल्य है तथा अलगावादी भी जिससे सम्बंधित हैं। पर ये सब करते हुए शायद वे यह भूल
जाते हैं कि इस देश के लोगों में सेना के प्रति अकूत श्रद्धा, विश्वास और आदर है
जो उनके लाख-करोड़ आरोप लगाने के बाद भी नहीं हिलने वाला बल्कि ऐसा करके वे अपनी
छवि को ही धूमिल करने का काम कर रहे हैं। भारतीय सेना है तो ही यह देश पाकिस्तान
और चीन जैसे संदिग्ध पड़ोसियों से घिरे होने के बावजूद सुरक्षित वातावरण में प्रगति
कर पा रहा है, हमारे जवान दिन-रात सर्दी-गर्मी-बरसात से बेपरवाह देश कि रक्षा में
तत्पर रहते हैं, अतः उनपर प्रश्न उठाना किसी लिहाज से उचित नहीं और निश्चित ही ऐसा
करने वालों का राष्ट्रप्रेम संदिग्ध माना जाना चाहिए।
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