- पीयूष द्विवेदी भारत
जनसत्ता |
अब सवाल यह उठता है कि ट्यूशन को लेकर लोगों में
इस आकर्षण के बढ़ते जाने का कारण क्या है ? उल्लेखनीय होगा कि अपने बच्चों को
ट्यूशन भेजने वाले अभिभावकों से जब एनएसएसओ ने अपने सर्वेक्षण के दौरान यही सवाल
पूछा तो उनमे ८९ फीसदी का कहना था कि अपने बच्चों को ट्यूशन भेजकर वे उनकी शैक्षिक
बुनियाद को मजबूत कर रहे हैं। इनमे कितनों ने स्कूल के वृहद् पाठ्यक्रम के
मद्देनज़र ट्यूशन लेने को आवश्यक बताया तो बहुतों अभिभावकों का तो स्पष्ट रूप से
यही कहना रहा कि स्कूली शिक्षा का स्तर अच्छा नहीं होने के कारण उन्हें अपने
बच्चों को ट्यूशन भेजना पड़ रहा है। यह देखते हुए समझना आसान है कि ट्यूशन के प्रति
लोगों में बढ़ रहे इस अत्याकर्षण का मुख्य कारण स्कूली शिक्षा पर से उनके विश्वास
का कम होते जाना है।
दैनिक जागरण |
इसी संदर्भ में अगर भारत की शिक्षा खासकर
प्राथमिक शिक्षा व्यवस्था पर एक नज़र डालें और यह पड़ताल करने का प्रयास करें कि
क्या वाकई में स्थिति इतनी ख़राब है कि लोगों का इसपर से विश्वास ही उठ रहा है और
वे अपने बच्चों को ट्यूशन का सहारा देने लगे हैं। दरअसल स्थिति खराब तो है ही और
फिलवक्त देश की प्राथमिक शिक्षा एक नहीं, विभिन्न प्रकार की अनेक समस्याओं से ग्रस्त
है। इनमे गुणवत्तायुक्त शिक्षा से लेकर ढांचागत सुविधाओं तक हर स्तर पर समस्याएँ
हैं। ढांचागत सुविधाओं को एकबार के लिए छोड़ भी दें तो गुणवत्तायुक्त शिक्षा के
स्तर को कत्तई नज़रन्दाज नहीं किया जा सकता। देश में प्राथमिक शिक्षा की गुणवत्ता
के संदर्भ में एनुअल स्टेटस ऑफ एजुकेशन की इस रिपोर्ट पर गौर करना उपयुक्त होगा
जिसके मुताबिक देश की कक्षा
पाँच के आधे से अधिक बच्चे कक्षा दो की किताब ठीक से पढ़ने में असमर्थ हैं। ये तथ्य हमारी
प्राथमिक शिक्षा की गुणवत्ता के सरकारी दावों के खोखलेपन को सामने लाने के लिए
पर्याप्त है। विचार करें
तो प्राथमिक या उच्च
किसी भी शिक्षा में गुणवत्ता के लिए मुख्य रूप से दो बातें सर्वाधिक आवश्यक होती
हैं – श्रेष्ठ व पर्याप्त
शिक्षक और उत्तम पाठ्यक्रम। शिक्षकों की कमी की बात तो आए दिन उठते ही
रहती है, पर इसके अलावा एक सवाल यह भी उठता है कि जो शिक्षक हैं, क्या वे इतने
योग्य और कुशल हैं कि बच्चों को समुचित रूप से शिक्षा दे पाएं ? इस सम्बन्ध में
तथ्य यही है कि शिक्षकों की कमी तो है, पर सरकारी स्कूलों में अधिक। निजी स्कूल इस
समस्या से कम ग्रस्त हैं। अब रही बात उत्तम पाठ्यक्रम की तो यहाँ भी सबकुछ ठीक
नहीं दिखता। हालत ये है कि एक एलकेजी कक्षा का बच्चा जब स्कूल निकलता है तो पीठ पर लदे
बस्ते के बोझ के मारे उससे चला नही जाता। ये समस्या अंग्रेजी माध्यम
या निजी स्कूल से शिक्षा प्राप्त कर रहे बच्चों के साथ कुछ अधिक ही है। अंग्रेजी
माध्यम के पाठ्यक्रम पर नज़र डाले तो उसमे केजी कक्षा के बच्चों के लिए तैयार
पाठ्यक्रम दूसरी-तीसरी कक्षा के बच्चों के पाठ्यक्रम
जैसा है। उदाहरण के तौर पर देखें तो जिन बच्चों
की बौद्धिक अवस्था गिनती-पहाड़ा सीखने की है, उनके लिए जोड़-घटाव सिखाने वाला
पाठ्यक्रम निर्धारित है। अब ऐसे पाठ्यक्रम से ये उम्मीद बेमानी है कि बच्चे कुछ नया
जानेंगे, बल्कि सही मायने में तो वे ऐसी पाठ्यक्रम के बोझ तले दबकर बच्चे पढ़ी
चीजें भी भूल जाएंगे। इस प्रकार स्पष्ट है कि सरकारी स्कूल जहाँ कम शिक्षकों की
समस्या से जूझ रहे, वहीँ निजी विद्यालय अनुचित पाठ्यक्रम चला रहे हैं। बच्चे पढ़ें
तो कैसे और क्या पढ़ें ?
निश्चित
ही इन्हीं समस्याओं के मद्देनज़र आज अभिभावकों का स्कूली शिक्षा से विश्वास डगमगाने
लगा है और वे ट्यूशन की शरण ले रहे हैं। लेकिन उन्हें कौन समझाए कि ट्यूशन में भी
सबकुछ अच्छा नहीं है। ट्यूशन के प्रति उनके इस अन्धोत्साह का काफी अयोग्य शिक्षकों
द्वारा अनुचित लाभ भी लिया जा रहा है। एक उदाहरण द्रष्टव्य है कि देश के में
गली-गली खासकर शहरी इलाकों में खुले छोटे-छोटे निजी स्कूलों में पढ़ाने वाले तमाम
शिक्षक-शिक्षिकाओं द्वारा स्कूल से छूटते ही सीधे वहीँ से बच्चों को अपने घर लाकर
निजी ट्यूशन के नाम पर एक साथ चालीस-पचास बच्चों तक को ट्यूशन देने का चलन खूब
देखने को मिल रहा है। परीक्षा में ये शिक्षक-शिक्षिकाएं स्कूल में मौजूद रहते हैं
तो अपने पास पढ़ने वाले बच्चों की सहायता कर देते हैं जिससे उनके नंबर अच्छे आ जाते
हैं और अभिभावक यह मान लेते हैं कि उनका बच्चा ट्यूशन के कारण पढ़ने में तेज हो रहा
है, जबकि वास्तविकता कुछ और ही होती है। यह एक उदाहरण है, ऐसी ही और भी तमाम विसंगतियां
ट्यूशन में मौजूद हैं। अब इन सब स्थितियों के मद्देनज़र यही कह सकते हैं कि देश की
स्कूली शिक्षा को बेहतर बनाने की तरफ सरकार को गंभीरता से ध्यान देना चाहिए जिसमे
कि ऊपरी टीप-टाप से अधिक ध्यान शिक्षा की गुणवत्ता पर केन्द्रित हो। इसके अलावा शिक्षित
अभिभावकों को चाहिए कि वे अपने बच्चों को अन्धोत्साह में ट्यूशन भेजने की बजाय यदि स्वयं समय निकालकर नियमित
रूप से उन्हें पढाएं तो वे बच्चे ट्यूशन ले रहे बच्चों की अपेक्षा अधिक सुशिक्षित
होंगे।
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