मंगलवार, 4 अगस्त 2015

कैसे मिलेगी आतंकी हमलों से मुक्ति [दैनिक सामना और नेशनल दुनिया में प्रकाशित]



  • पीयूष द्विवेदी भारत
दैनिक सामना
अभी देश इस बात पर बहस करने में ही मशगुल था कि १९९३ मुंबई धमाकों के दोषी आतंकी याकूब मेमन को फांसी दी जाय या नहीं कि पाकिस्तानी सीमा से सटे पंजाब के गुरदासपुर में आतंकियों ने एक  जोरदार हमले को अंजाम दे दिया। विगत  २७ तारीख की सुबह पांच बजे तीन आतंकी आर्मी की वर्दी में  गुरदासपुर बस टर्मिनल पहुंचे जहाँ से वे जम्मू से कटरा जा रही एक बस में चढ़ गए। यहाँ आतंकियों की फायरिंग में एक व्यक्ति के मरने की बात कही जा रही है। बस अड्डे के बाद आतंकी दीनानगर थाने पर धावा बोल दिए। यहाँ से इस हमले में पुलिसिया और फिर राष्ट्रीय सुरक्षा बल (एनएसजी) के जवानों द्वारा कार्रवाई शुरू की गई जिसमे कि पंजाब पुलिस के एक एसपी शहीद हो गए। बहरहाल लगभग १४ घंटे की मुठभेड़ के बाद एनएसजी, पंजाब पुलिस आदि के जवानों ने इस हमले से पार लिया और सभी तीन आतंकियों को मार गिराया गया। हालांकि इस हमले में पुलिस के चार जवानों समेत कुल ११ निर्दोष लोगों को भी अपनी जान से हाथ धोना पड़ा। बताया जा रहा है कि देश के ख़ुफ़िया ब्यूरो (आईबी) ने पंजाब को एकदिन पहले ही ऐसे किसी आतंकी हमले के विषय में चेताया था। आईबी ने यहाँ तक जानकारी दी थी कि कुछ आतंकी सीमा पार से देश में आ गए हैं और वे थानों, स्कूलों और बसों को अपना निशाना बना सकते हैं। सवाल यह है कि आईबी की इस जानकारी के बावजूद पंजाब सरकार और पुलिस-प्रशासन द्वारा पूरी चौकसी क्यों नहीं बरती गई ? अगर पंजाब सरकार ने पंजाब में सुरक्षा व्यवस्था को थोड़ा और सख्त कर दिया होता तो संभव है कि यह हमला रोक लिया जाता या इससे होने वाली क्षति को कम किया जा सकता। पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल बेशक इस हमले की जिम्मेदारी केंद्र सरकार पर डालने की कोशिश कर रहे हों, लेकिन उनका ये आचरण सिर्फ अपनी जिम्मेदारियों से भागने और आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति को बढ़ावा देने जैसा है। इस सम्बन्ध में केंद्र सरकार दोषी होती यदि उसने कोई प्राप्त ख़ुफ़िया सूचना राज्य सरकार से साझा न की होती, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ है। आईबी जो केंद्र सरकार के अधीन है, ने इस हमले से सम्बंधित ख़ुफ़िया जानकारी पंजाब पुलिस को दी थी, मगर फिर भी यदि राज्य में हमला हुआ तो ये राज्य सरकार की ही विफलता है। बादल साहब बड़ी आसानी से यह भी कह गए कि आतंकियों को यदि सीमा पर ही रोक दिया जाता तो ये हमला न होता। अब उन्हें कौन समझाए कि सीमा पर घुसपैठ रोकना कितना कठिन व जटिल काम है। तिसपर जब घुसपैठ करने में पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान आतंकियों की मदद कर रहा हो, तो ये काम और कठिन हो जाता है। फिर भी हमारे सीमा सुरक्षा बल के जवान दिन-रात मुस्तैदी से घुसपैठ को रोकने की कोशिश में लगे रहते हैं और आतंकी घुसपैठ के अनेक प्रयासों  को नाकाम भी करते हैं। अब बार-बार के प्रयासों में से किसी बार आतंकी घुसपैठ में सफल भी हो जाते हैं तो इसके लिए सीमा सुरक्षा बल के जवानों को दोषी नहीं कहा जा सकता। आखिरश वे भी इंसान ही हैं। लिहाजा उचित तो ये होता कि पंजाब के मुख्यमंत्री महोदय इस आतंकी हमले के लिए केंद्र सरकार और जवानों आदि को दोषी ठहराने की बजाय अपनी जिम्मेदारियों और गलतियों को स्वीकारते तथा उनको दूर करने की कोशिश करते जिससे भविष्य में फिर ऐसा कोई आतंकी हमला न होता।


नेशनल दुनिया
  हालांकि अभी तक किसी भी आतंकी संगठन ने इस हमले की जिम्मेदारी नहीं ली है, मगर अंदेशा जताया जा रहा है कि ये पाकिस्तानी आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैय्यबा के आतंकी थे। इन आतंकियों के विषय में सबसे अधिक अगर किसी बात ने चौंकाया है तो वो ये कि इनके पास से बरामद हथियार में से कई हथियार चीन के बने हुए हैं। यह कहीं न कहीं इसी बात को दिखाता है कि चीन भी अब भारत विरोधी गतिविधियों में पाकिस्तानी आतंकियों को भारी सहयोग देने लगा है। यह बात कही तो काफी पहले से जा रही है, मगर आतंकियों के पास से बरामद मेड इन चाइना हथियारों को देखते हुए इसको एक ठोस आधार भी मिलता है। हालांकि एक तर्क यह भी हो सकता है कि सिर्फ चीन में बने हथियारों के कारण चीन को इस हमले से जोड़ना जल्दबाजी होगी, लेकिन चीन की भारत विरोधी नीतियों के इतिहास को देखने के बाद चीन के इस हमले में संलिप्त न होने का भी तो कोई कारण नहीं दिखता। तिसपर हाल के दिनों में चीन और पाक की नज़दीकियाँ भी काफी अधिक बढ़ी हैं। सो, उपर्युक्त सभी बातों के बाद यदि सीधे शब्दों में इस पूरे मामले को समझें तो ये कुछ यूँ है कि चीन के हथियारों से लैस पाकिस्तान के तीन आतंकी घुसपैठ कर भारत में आकर लगभग दर्जन भर निर्दोष लोगों की जान लेते हैं और भारत बेबस-सा सिर्फ उन आतंकियों को मारकर अपनी सुरक्षा चिंताओं में ही उलझा रह जाता है। साथ ही देश के कुछ बयानवीर नेता बड़ी-बड़ी और करारे जवाब जैसी कुछ बातें करके अपने कर्तव्यों की इतिश्री समझ लेते हैं। और फिर सबकुछ पहले जैसा हो जाता है। हुकूमत किसीकी भी हो, आतंकी हमलों के बाद प्रक्रिया यही घटित होती है। यह प्रक्रिया देश के लिए हर आतंकी हमले के बराबर घातक है।
   दरअसल आतंकवाद से लेकर विरोधी राष्ट्रों तक देश की नीति सदैव से रक्षात्मक ही रही है। प्रथम प्रहार न करने की इस रक्षात्मक नीति ने देश का बहुत नुकसान किया है और हमारी छवि काफी हद  तक एक कमजोर राष्ट्र की बना दी है। जरूरत यह है कि भारत अपनी इस नीति में परिवर्तन लाए और अपनी इस कोरी रक्षात्मकता  की नीति को त्याग आक्रामक रुख अपनाएं। देश इस बात के लिए इंतजार करना बंद करे कि कोई आतंकी हमला होगा तो आतंकियों को रोका जाएगा, नीति यह हो कि आतंकी किसी हमले के विषय में सोचें उससे पहले ही आधिकारिक या अनाधिकारिक जिस तरह की भी कार्रवाई से संभव हो, उन्हें ख़त्म कर दिया जाए। यह कठिन है, पर कई राष्ट्रों ने किया है। इजरायल इसका अच्छा उदाहरण है। एक जरूरत आतंकियों के कानूनी अधिकारों में बदलाव करने की भी है। संविधान संशोधन के जरिये आतंकियों के लिए अलग से कानूनी और न्यायिक प्रक्रिया बननी चाहिए जिसके तहत आतंकियों के पास सजा माफ़ी की अपील करने, मनमाफिक वकील रखने जैसे अधिकार न रह जाएं। एक विशेष अदालत हो जो कि आतंकियों को जो सजा दे दे, वो अंतिम हो। चूंकि उक्त कानूनी अधिकार मानवीय आधार पर दिए जाते हैं, लेकिन आतंकियों के कृत्य कतई मानवों वाले नहीं हैं अतः उन्हें ये अधिकार देने का कोई औचित्य नहीं है। अगर भारत की हुकूमतें इन चीजों को लागू करें तो आतंकियों में इतनी हिम्मत नहीं रह जाएगी कि वे हमारी तरफ आँख उठाकर देख सकें।   

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