रविवार, 3 मई 2015

कौशल विकास हो तो अगला वक़्त हमारा है [प्रजातंत्र लाइव में प्रकाशित]

  • पीयूष द्विवेदी भारत
प्रजातंत्र लाइव
भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा अपने वक्तव्यों में जिस बात की सर्वाधिक चर्चा की जाती रही है, वो यह है कि भारत का सर्वाधिक युवा आबादी संपन्न देश होना उसकी सबसे बड़ी ताकत है। मोदी की इस बात को वैश्विक मान्यता तब मिली जब संयुक्त राष्ट्र ने अभी पिछले ही साल नवम्बर में ‘१.८ अरब लोगों की ताकत’ नाम से वैश्विक आबादी पर जारी अपनी एक रिपोर्ट में बताया कि आज भारत दुनिया का सबसे युवा देश है। कुल आबादी के मामले में तो चीन भारत से आगे है, लेकिन जब बात सर्वाधिक युवा आबादी की आती है तो भारत चीन को पछाड़ते हुए नंबर एक पर पहुँच जाता है। एक अन्य आंकड़े के मुताबिक़ देश  की ६५ प्रतिशत आबादी ३५ साल से कम उम्र की है और इसमें भी ५० प्रतिशत आबादी की उम्र २५ साल से भी नीचे है। इस आंकड़े के आधार पर गणितीय विश्लेषण करने पर स्पष्ट होता है कि वर्ष २०२० में हर भारतीय की औसत उम्र २९ साल होगी और तब भी भारत दुनिया का सर्वाधिक युवा राष्ट्र होगा, जबकि तब चीनियों की औसत उम्र ३७ और जापानियों की ४८ साल होगी। अब २०२० में जब एक तरफ भारत-चीन-जापान में आबादी के ये समीकरण बन रहे होंगे, वहीं दूसरी तरफ दुनिया के विभिन्न हिस्सों में लगभग ६ करोड़ कुशल कामगारों की कमी आएगी। कामगारों की इस कमी का सर्वाधिक प्रभाव अमेरिका, रूस, चीन और जापान में होगा, क्योंकि इन देशों की अधिकाधिक युवा आबादी तबतक बुढ़ापे की तारफ अग्रसर हो गई होगी और बाकी आबादी अपने शुरूआती दौर में होगी। अब ऐसे वक़्त में कुशल कामगारों के लिए इन देशों की निगाह सिर्फ और सिर्फ भारत की तरफ होगी। ऐसे में अगर भारत चाहे तो इन देशों को कुशल कामगार देकर इस स्थिति का बेहद निर्णायक लाभ पा सकता है। कहना गलत नहीं होगा कि २०२० में होने वाली इस संभावित स्थिति का अगर भारत सही ढंग से लाभ लिया तो संशय नहीं कि ३० के दशक में वैश्विक अर्थव्यवस्था का केंद्र बिंदु भारत ही होगा। लेकिन इन सब चीजों के लिए आवश्यक है कि तब देश के पास दुनिया के कामगारों की कमी को पूरा करने के लिए कुशल कामगार तैयार हों। अब यह तो स्पष्ट है कि २०२० में भी भारत के पास विश्व की सर्वाधिक युवा आबादी होगी, लेकिन उस सर्वाधिक युवा आबादी का समुचित लाभ देश को तभी मिलेगा जब वो आबादी कौशलयुक्त होगी। इसी सन्दर्भ में अगर मौजूदा समय में देश के युवाओं द्वारा कुछ महत्वपूर्ण क्षेत्रों में अर्जित की जा रही दक्षता के एक आंकड़े पर निगाह डालें तो तस्वीर बहुत संतोषप्रद नहीं दिखती है। विज्ञान, इंजीनियरिंग व सूचना प्रोद्योगिकी आदि क्षेत्रों की बाते करें तो आज देश में प्रत्येक वर्ष इन सभी क्षेत्रों में स्नातक की  डीग्री हासिल करने वाले कुल युवाओं की संख्या २५ लाख है और  इन २५ लाख में से महज ६.५ लाख छात्र इन विषयों में परास्नातक की डिग्री हासिल करते हैं। अब ३५-४० करोड़ की युवा आबादी वाले इस देश में  प्रतिवर्ष विज्ञान, आईटी आदि क्षेत्रों में दक्षता हासिल  करने वालों की संख्या का महज  २५ लाख होना, कोई बहुत उत्साहजनक तो नहीं ही कहा जा सकता। तिस पर यह २५ लाख तो डिग्री हासिल करने वालों की संख्या है, अगर इनमे भी पूर्णतः योग्यता का आकलन किया जाय तो यह संख्या और भी कम हो जाएगी। यह एक कटु सत्य है कि आज देश में इंजीनियरिंग आदि की पढ़ाई करके निकलने वालों में से तमाम युवाओं को उनसे सम्बंधित क्षेत्र में रोजगार नहीं मिल पाता क्योंकि प्रतिस्पर्धा के इस समय में वो उस क्षेत्र की कसौटियों पर पूरी तरह से खरे नहीं उतर पाते। हाँ, यह भी सही है कि सम्बंधित क्षेत्र की कसौटियों पर पूरी तरह से खरा न उतर पाने के लिए वे युवा और उनके शिक्षण संस्थान बराबर के जिम्मेदार होते हैं।
बहरहाल, इसी क्रम में अगर देश की आबादी को कौशलयुक्त बनाने के लिए सरकारी प्रयासों पर गौर करें तो देश की लगभग साल भर पुरानी मोदी सरकार इस दिशा में काफी गंभीर दिख रही है। इस विषय में मोदी सरकार की गंभीरता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उसने इस क्षेत्र के लिए कौशल विकास व उद्यमशीलता नामक एक नया मंत्रालय ही गठित कर दिया है। इसके अतिरिक्त मोदी सरकार द्वारा देश में कौशल विकास को एक उचित दिशा व गति देने के लिए जो सबसे महत्वपूर्ण व दूरगामी कदम उठाया गया है, वो है – मेक इन इण्डिया। इस कदम के द्वारा सरकार ने एक तीर से दो निशाने लगाने की कोशिश की है, पहला कि देश को दुनिया के लिए ‘निर्माण का केंद्र’ (इन्फ्रास्ट्रक्चर हब) बनाया जाय और दूसरा कि दुनिया के अन्य देशों में मौजूद तमाम तकनिकी जानकारियां, निर्माण-कौशल उन देशों की कंपनियों के साथ ही देश में आए और देश के लोग उन चीजों को सीखें तथा उन कार्यों में कुशलता प्राप्त करें। हालांकि मेक इन इण्डिया एक दूरगामी प्रभाव का कार्यक्रम है, अतः इससे देश के युवाओं को कितना और कैसा लाभ मिलता है, इसका पता तो कुछ वर्षों बाद ही चलेगा। वैसे मेक इन इण्डिया के अलावा  सरकार कौशल विकास के लिए २००९ की राष्ट्रीय कौशल विकास नीति में कुछ परिवर्तन करके उसे नए सिरे से शुरू करने का भी मन बना चुकी है। संभव है कि अगले कुछेक महीनों में नई कौशल विकास नीति आ भी जाय। गौर करें तो संप्रग शासन के समय आई २००९ की राष्ट्रीय कौशल विकास नीति के तहत अगले १३ वर्षों यानी २०२२ तक ५० करोड़ उच्चस्तरीय कुशल व्यक्तियों को तैयार करने का लक्ष्य रखा गया था और इसके लिए १० हजार करोड़ का बजट भी निर्धारित हुआ था। इसके तहत राष्ट्रीय कौशल विकास परिषद् (एनएसडीसी) को यह दायित्व दिया गया कि वो गुणवत्तापूर्ण संस्थाओं के सृजन के जरिये तकरीबन १५ करोड़ लोगों को कुशल कामगार बनाए। बाकी लोगों के कौशल विकास का काम सरकार के १८ मंत्रालयों के जरिये होना था। लेकिन दुर्भाग्य कि नीति बनाने के बाद संप्रग सरकार ने अपने दायित्व की इतिश्री समझ ली और इसके क्रियान्वयन की कभी कोई समीक्षा करने की उसने जरूरत नहीं समझी । अब जब मोदी सरकार इस नीति में कुछेक परिवर्तन कर नई कौशल विकास नीति लाने जा रही है तो भी सवाल यही है कि क्या नीति बदलने से देश के युवाओं का कौशल विकास हो जाएगा ? बात यह है कि नीति कोई भी हो वो कारगर तभी होगी जब उसके क्रियान्वयन के प्रति सजग व गंभीर रहा जाएगा । अतः उचित होगा कि सरकार नीति बदलने के साथ-साथ उसके क्रियान्वयन की निगरानी के लिए भी कोई ठोस व्यवस्था बनाए। अगर यह किया जाता है तो ही कौशल विकास की कोई भी नीति या व्यवस्था देश के कौशल विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। यह कौशल विकास बेहद आवश्यक है, क्योंकि अगले पांच सालों में भारत के पास विश्व की आर्थिक महाशक्ति बनने का संभावित सुनहरा अवसर आने वाला है और उस अवसर का भरपूर लाभ देश को तभी मिलेगा जब हमारे युवा कुशल कामगार होंगे।  

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