शुक्रवार, 15 मई 2015

आलू किसानों का दर्द कौन सुने [नवभारत टाइम्स में प्रकाशित]

  • पीयूष द्विवेदी भारत 

नवभारत टाइम्स 
इसे विडम्बना ही कहेंगे कि एक तरफ जहाँ देश के विभिन्न राज्यों में असमय बारिश और ओलावृष्टि से बर्बाद हुई फसल के कारण किसान बेहाल और आत्महत्या करने को विवश हैं, वही दूसरी तरफ आलू किसान आलू की बम्पर उपज होने बावजूद खून के आंसू रो रहे हैं। यूँ तो यह बात बहुत विचित्र लगेगी कि बम्पर पैदावार होने के बाद भी आलू किसान परेशान है, पर मौजूदा सच्चाई यही है। दरअसल विगत वर्ष आलू की आसमान छूती कीमतों को देखते हुए मुनाफा कमाने के उद्देश्य से आलू किसानों ने इसबार आलू की खेती का रकबा २५ फीसदी तक बढ़ा दिया था, दूसरी तरफ मौसम भी कुछ हद तक आलू की फसल के अनुकूल रहा। परिणाम यह हुआ कि देश के प्रमुख आलू उत्पादक राज्यों उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल आदि में आलू की भारी पैदावार हुई, आलू की उपज में १५ से २० फीसदी की वृद्धि हुई जिससे बाजार में इसकी कीमतें गिर गईं। आलू किसानों ने तो मुनाफे की उम्मीद में आलू की खेती बढ़ाई थी, मगर अब कीमतों का आलम ये है कि उन्हें उनकी लागत भी नहीं मिल पा रही। कूड़े-करकट के भाव में आलू बेचना अब उनकी मजबूरी बन गई है। गौरतलब है कि विगत वर्ष अक्तूबर में  जो आलू २४२५ रूपये क्विंटल मिला करता था, आज २०० से ५०० रूपये क्विंटल तक के भाव में सिमट गया है। कोल्ड स्टोरेज की कमी होने व इस सुविधा के बेहद महंगे होने के कारण किसानों के पास यह विकल्प भी नहीं है कि वे आलू को कोल्ड स्टोरेज में रख कीमतें बढ़ने का इंतज़ार करें। अब एक तरफ तो वे उपज की कम कीमतों से परेशान हों और दूसरी तरफ दाम बढ़ने की आशा में कोल्ड स्टोरेज में उपज को रखकर भी पैसा फंसाएं। इसलिए कम ही किसान कोल्ड स्टोरेज में उपज को रखने की तरफ बढ़ते हैं, बाकी तो औने-पौने दाम में बेच देते हैं अथवा उनकी फसल पड़े-पड़े सड़ जाती है। गौर करें तो कोल्ड स्टोरेज की कमी की यह समस्या देश के किसी एक क्षेत्र की नहीं है, बल्कि पूरे देश में ही इसकी कमी है।
 एक आंकड़े की मानें तो देश में कोल्ड स्टोरेज फैसिलिटी की कमी के कारण प्रत्येक वर्ष १३३०० करोड़ रूपये की फल व सब्जियां बर्बाद हो जाती हैं। अमेरिकी संस्था इमर्सन के फूड वेस्टेज एंड कोल्ड स्टोरेज रिपोर्ट में अध्ययन का हवाला देते हुए कहा गया है कि अभी देश में ६३००  कोल्ड स्टोरेज फैसिलिटीज हैं। इनकी इंस्टॉल्ड कैपेसिटी ३.०११ करोड़ टन है। अध्ययन से पता चला है कि ये कोल्ड स्टोरेज इंडिया की  कुल जरूरत का आधा हिस्सा ही पूरा कर पा रहे हैं। देश में सभी खाद्य उत्पादों के लिए कोल्ड स्टोरेज कैपेसिटी ६.१ करोड़ टन से ज्यादा होनी  चाहिए। रिपोर्ट में कहा गया है कि इस लक्ष्य तक पहुंचने के लिए २०१५-१६  तक ५५०००  करोड़ रुपये के निवेश की जरूरत होगी,  तभी फलों और सब्जियों की बढ़ती पैदावार को देश में कोल्ड स्टोरेज फैसिलिटीज का सहारा  मिल पाएगा। इन आंकड़ों को देखते हुए यह स्पष्ट हो जाता है कि देश में कोल्ड स्टोरेज फैसिलिटी की हालत बहुत ख़राब है। और मौजूदा वक़्त में इस ख़राब हालत का बहुत बुरा असर आलू किसानों पर पड़ता दिख रहा है। किसान कह रहे हैं कि सरकार आलू का एक उचित दाम निर्धारित करे, पर दुर्भाग्य कि उनकी सुध सरकार को भी नहीं है। वरन उनकी आज जो यह दशा हो रही है इसके लिए काफी हद तक सरकार की आलू की निर्यात नीति भी  जिम्मेदार है, मगर जाने क्यों सरकार उधर ध्यान ही नहीं दे रही।  
  दरअसल पिछले साल मई में नई-नई सत्ता में आई मोदी सरकार द्वारा महंगाई पर लगाम लगाने के उद्देश्य से  सब्जियों आदि की कीमतों को नियंत्रित रखने के लिए कुछ कदम उठाए गए थे। तत्कालीन दौर में आलू की बढ़ती कीमतों को थामने के लिए सरकार ने जून महीने में आलू निर्यात को कम से कम करने की मंशा से इसका न्यूनतम निर्यात मूल्य ४५० डॉलर प्रति टन कर दिया था। यह नीति तब तो काफी कारगर  सिद्ध हुई और आलू निर्यात में भारी कमी आई, मगर तबसे अबतक लगभग १०-११ महीनों के समय में स्थिति काफी हद तक बदल गई है। अब देश में पहले की तरह आलू की कमी नहीं है, मगर सरकार की वो आलू निर्यात नीति अब भी जस की तस है। तब वह नीति लागू करने के बाद सरकार द्वारा बीच में कभी उसकी समीक्षा नहीं की गई। अगर ऐसा किया जाता तो वस्तुस्थिति सरकार के सामने आ जाती और यह नीति कब की बदल दी गई होती, लेकिन सरकार तो शायद इधर से आँख-कान बंद ही किए हुए है। किसानों की दशा सुधारने की भाषणबाजी में ही उसे शायद अपनी सफलता नज़र आती है। अब सरकार की उक्त  निर्यात नीति के कारण आज देश में आलू की बम्पर उपलब्धता होने के  बावजूद भी उसका निर्यात लगभग ठप पड़ा हुआ है। आलू की गिरती कीमतों का यह सबसे बड़ा कारण है। विद्रूप तो यह है कि किसानों के लिए तो आलू की कीमते गिर रही हैं, जबकि खुदरा बाजार में आलू के भाव कत्तई कम नहीं हैं। कारण कि किसानों का आलू पूरी तरह से बाजार में पहुँच ही नहीं रहा। अर्थात एक तरफ किसान आलू की कम कीमत से हलकान हैं तो वहीँ दूसरी तरफ आम लोग बाजार में आलू की ऊंची कीमतों से परेशान हैं। और यह सब कहीं  न कहीं सरकार की गलत नीति के कारण ही हो रहा है जिसकी या तो सरकार को कोई सुध नहीं है अथवा वह सुध लेना ही नहीं चाहती।

  जरूरत यह है कि सरकार अपनी विगत वर्ष की आलू निर्यात नीति की एकबार समीक्षा करे और वर्तमान स्थिति को देखते हुए उसमे आवश्यक परिवर्तन लाए। वह नीति बदलते ही आलू किसानों के आलू की खरीद स्वतः ही होने लगेगी। अभी देश में आलू की पर्याप्त उपलब्धता है तो उचित होगा कि अपनी आवश्यकता भर का आलू रखकर बाकी को निर्यात के लिए छोड़ दिया जाय। देश में जरूरत भर का आलू रखने के लिए आवश्यक है कि देश में कोल्ड स्टोरेज फैसिलिटी की संख्या को भी बढ़ाने की दिशा में भी सरकार कदम उठाए। कुल मिलाकर रास्ते और तरीके बहुत हैं, अगर आवश्यकता है तो बस मजबूत इच्छाशक्ति की। सरकार मजबूत इच्छाशक्ति का परिचय देते हुए उपर्युक्त समाधानों समेत और भी तमाम समाधानों  पर आगे बढ़ सकती है, जिससे कि देश में किसानों की समस्याओं में कमी आए। अन्यथा सिर्फ किसानों के दुःख और पीड़ा पर लम्बे-लम्बे भाषण देने से न तो किसान का भला होने वाला है और न ही सरकार को ही कुछ मिलने वाला है।  

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