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दबंग दुनिया |
भ्रष्टाचार पर
रोकथाम के लिए कोई सख्त कदम न उठाने के लिए विरोधियों के निशाने पर रहने वाली मोदी
सरकार द्वारा आखिर भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने के लिए कवायद शुरू कर दी गई है । अभी हाल ही में प्रधानमंत्री
मोदी की अध्यक्षता में हुई केन्द्रीय कैबिनेट की बैठक में भ्रष्टाचार निरोधक क़ानून
में कई प्रस्तावित संशोधनों को मंजूरी दी गई है । कैबिनेट द्वारा जिन
संशोधनों को मंजूरी दी गई है उनमे भ्रष्टाचार को जघन्य अपराध की श्रेणी में शामिल
कर इसके लिए सात साल की सजा प्रावधान करना प्रमुख है। पहले भ्रष्टाचार के मामलों
में न्यूनतम ६ महीने और अधिकतम पांच साल की सजा का प्रावधान था, जिसे अब बढ़ाकर
न्यूनतम तीन साल और अधिकतम सात साल करने के प्रस्ताव को कैबिनेट द्वारा मंजूरी दे
दी गई है। इसमें घूस लेने व देने वाले दोनों ही पक्षों को दोषी मानते हुए सजा का
प्रावधान किया गया है। इन संशोधनों में नौकरशाही को काम करने की आज़ादी देने की
दिशा में बड़ी राहत देते हुए अनजाने या
गलती से लिए गए फैसलों से हुए नुकसान व गड़बड़ी जैसे मामलों में अलग से प्रावधान रखा
गया है। उन्हें सीधे-सीधे जांच के दायरे में नहीं लाया गया है। उनके खिलाफ जांच
करने से पूर्व सीबीआई को लोकपाल या लोकायुक्त से पूर्व अनुमति लेनी होगी। किसी सरकारी कर्मचारी द्वारा आधिकारिक कामकाज अथवा दायित्वों के निर्वहन में
की गई सिफारिशों अथवा किए गए फैसलों से जुड़े अपराधों की जांच के लिए, जैसा
भी अपराध हो उसके अनुरूप लोकपाल अथवा लोकायुक्त से जांच पड़ताल के लिए पूर्व
मंजूरी लेना जरूरी होगा। भ्रष्टाचार निरोधक
क़ानून के इस संशोधन को प्रधानमंत्री की उस बात के क्रियान्वयन के रूप में देखा जा
सकता है जिसमे अभी हाल ही में उन्होंने नौकरशाहों को निर्भीक होकर फैसले लेने के
लिए कहा था। इसके अतिरिक्त जो एक और अत्यंत महत्वपूर्ण संशोधन किया गया है, वो ये
है कि भ्रष्टाचार के मामलों की सुनवाई के लिए अधिकतम दो साल की समय सीमा निर्धारित
कर दी गई है। अर्थात अब भ्रष्टाचार के मामले में दो साल में फैसला आ जाएगा। साथ ही
भ्रष्ट अधिकारियों की संपत्ति जब्त करने व कुर्की करने के आदेश का अधिकार विशेष
अदालत को भी देने के प्रावधान को भी कैबिनेट
द्वारा मंजूरी दे दी गई है। इन सब संशोधनों देखते हुए कहा जा सकता है कि ये संशोधन
भ्रष्टाचारियों पर अंकुश लगाने की दिशा में अत्यंत प्रभावकारी कदम सिद्ध हो सकते हैं, लेकिन अभी इनको संसद
में पेश होने व पारित होने का काफी लम्बा रास्ता तय करना है। गौरतलब है कि अब से
दो साल पहले सन २०१३ में तत्कालीन संप्रग सरकार द्वारा भी ऐसा ही एक संशोधन विधेयक
राज्यसभा में पेश किया गया था। लेकिन वह तब पारित नहीं हो पाया और अबतक राज्यसभा
में लंबित था। अब इसी विधेयक के प्रावधानों में उपर्युक्त संशोधन करके मोदी सरकार इसे पुनः राज्य सभा में पेश करने जा रही है। हालांकि
राज्य सभा में मोदी सरकार के पास बहुमत नहीं है, तो देखना होगा कि वहां सरकार के
इन संशोधनों को मंजूरी मिलती है या इनमे और बदलाव होता है।
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कल्पतरु एक्सप्रेस |
उपर्युक्त संशोधनों के आलोक में सवाल यह उठता है
कि भ्रष्टाचार निरोधक क़ानून में मंजूर उक्त संशोधन देखने में तो अत्यंत सख्त और प्रभावकारी
लग रहे हैं और अगर ये संसद में पारित हो जाते हैं, तो क्या इनसे भ्रष्टाचार पर
लगाम लगेगी ? सरकार की ही एक आधिकारिक विज्ञप्ति में कहा गया है कि पिछले चार वर्षों में भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम के तहत मुकदमे की औसत अवधि आठ
साल से अधिक है। अतः भ्रष्टाचार के मामलों
की सुनवाई दो साल में करने का फैसला
भ्रष्टाचार के रोकथाम की दिशा काफी कारगर होगा। क्योंकि मामले की सुनवाई
में जितना अधिक समय लगता है, दोषी के पास अपने खिलाफ मौजूद साक्ष्यों को मिटाने,
गवाहों को पलटने आदि के लिए पर्याप्त समय मिल जाता है। लेकिन जब सुनवाई दो साल में
हो जाएगी तो दोषी को शायद ऐसा कुछ करने का मौका नहीं मिल पाएगा। दूसरी बात कि अब
न्यूनतम सजा की सीमा भी ६ महीने से बढ़कर ३ साल कर दी गई है, जिससे कि छोटे भ्रष्टाचार
को लेकर हल्केपन का भाव भ्रष्टाचारियों के मन से खत्म होगा और वे छोटे से छोटा
भ्रष्टाचार करने में भी हिचकेंगे। उनके मन में भय होगा कि कितना भी छोटा
भ्रष्टाचार हो, अगर पकड़े गए तो कम से कम तीन साल की सजा होना तय है। भ्रष्ट
अधिकारियों की संपत्ति को जब्त करने का प्रावधान नौकरशाही के भ्रष्टाचार पर
नियंत्रण की दिशा में बड़ा कदम साबित हो सकता है, बशर्ते कि क़ानून बनने के बाद इस
प्रावधान का पूरी सख्ती से क्रियान्वयन भी किया जाय। कुल मिलाकर कह सकते हैं कि
संशोधन भ्रष्टाचारियों पर लगाम लगाने की दिशा में काफी कारगर हैं। उपर्युक्त संशोधन
बहुत बेहतर हैं और उम्मीद की जानी चाहिए कि राज्यसभा में पेश होने पर सभी राजनीतिक
दल भ्रष्टाचार की रोकथाम की इस कवायद का समर्थन करे इसे पारित करवा देंगे। अब अगर
यह संशोधन विधेयक पारित हो जाता है तो फिर सरकार की चुनौती यह होगी कि इसे सख्ती
से लागू करे। क्योंकि क़ानून कितना भी सख्त हो, वह कारगर तभी होगा जब उसे ठीक ढंग
से लागू किया जाय।
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