मंगलवार, 16 सितंबर 2014

दिल्ली में चुनाव से क्यों भाग रही भाजपा [डीएनए में प्रकाशित]

  • पीयूष द्विवेदी भारत 

डीएनए 
दिल्ली में एक सरकार को लेकर उलझने लगातार बढ़ती ही जा रही हैं. पिछले कई महीनों से दिल्ली बिना सरकार के राष्ट्रपति शासन सहारे चल रही है, पर राष्ट्रपति शासन की भी एक सीमा होती है. न तो दिल्ली की मौजूदा विधानसभा में से कोई दल सरकार बना रहा है और न ही नए सिरे चुनाव कराने की ही कोई कवायद फ़िलहाल नज़र आ रही है. दरअसल, दिल्ली की मौजूदा विधानसभा में अपने दम पर सरकार बनाने की स्थिति में कोई नहीं है. अतः उचित विकल्प यही दिखता है कि दिल्ली में नए सिरे से चुनाव हों और फिर जो परिणाम आएं उनके आधार पर सरकार बने. ऐसे में सवाल ये उठता है कि आखिर दिल्ली के उपराज्यपाल महोदय दिल्ली विधानसभा को भंग कर  चुनाव के आदेश क्यों नहीं दे रहे ? दरअसल. दिल्ली के दो दलों कांग्रेस और आप ने तो अपना पक्ष स्पष्ट कर दिया है कि वे दिल्ली में चुनाव होने के पक्ष में हैं. लेकिन, भाजपा ने इस विषय में अभी तक अपने पत्ते नहीं खोले हैं. उसकी तरफ से इस विषय में लगातार गोल-मोल बातें ही की जा रही हैं. वो न तो खुलकर यही कह रही है कि वो दिल्ली की मौजूदा विधानसभा में सरकार बनाएगी और न ही चुनाव को लेकर ही अपना कोई पक्ष स्पष्ट कर रही है. पर इतना जरूर है कि भाजपा के अंदरखाने में दिल्ली की मौजूदा विधानसभा में ही सरकार बनाने के विषय में ही कोई राय बनी है, क्योंकि, नए सिरे से चुनाव करानी की बजाय सरकार बनाने की तरफ भाजपा का अपेक्षाकृत अधिक झुकाव देखा जा सकता है. लेकिन गंभीर सवाल ये है कि आखिर भाजपा दिल्ली सरकार बना कैसे सकती है ? उसके पास सरकार बनाने के लिए आवश्यक संख्याबल कहाँ से आएगा ? एक बात और कि जब भाजपा के पास ३२ सीटें थीं, तब तो  उसने दिल्ली में सरकार बनाने से इंकार कर दिया था तो अब जब उसके पास तीस से भी कम सीटें हो गई हैं, वो किस आधार पर सरकार बनाने की बात कर रही है ? वास्तविक बात तो ये है कि भाजपा के पास दिल्ली में सरकार बनाने का न तो संवैधानिक अधिकार है और न ही नैतिक. बावजूद इसके अगर वो दिल्ली में नए सिरे से चुनाव की बजाय मौजूदा परिस्थितियों में सरकार बनाने की तरफ अपना झुकाव प्रदर्शित कर रही है तो ये पूरी तरह से जोड़-तोड़ की राजनीति से प्रेरित रुख है और इसके भावी परिणाम भाजपा के लिए कत्तई सुखद नही रहने वाले 
   यह विचारणीय है कि आखिर वो क्या वजह है कि भाजपा दिल्ली में चुनाव से बचते हुए सरकार बनाने को विकल दिख रही है ?  इस सवाल का जवाब जानने के लिए हमें लोकसभा चुनाव के बाद  कई राज्यों की रिक्त हुई सीटों पर हुए उपचुनावों के परिणामों पर एक नज़र डालनी होगी. उत्तराखंड से शुरू करते हुए एमपी, बिहार, कर्नाटक, पंजाब आदि तमाम राज्यों के उपचुनावों के परिणामों का कुल निष्कर्ष देखें तो भाजपा का प्रदर्शन स्तर अपेक्षाकृत कोई खास अच्छा नही रहा है. बिहार की दस में से चार, कर्नाटक की तीन में से एक और यहाँ तक कि एमपी जैसे सुरक्षित राज्य में भी उसे कांग्रेस के हाथों एक सीट गंवानी पड़ी. कुल मिलाकर हर जगह उसे अन्य दलों से बराबर की टक्कर मिली है और कई जगहों पर तो उसे मात भी खानी पड़ी है. कहने का अर्थ ये है कि लोकसभा चुनावों में अप्रत्याशित प्रदर्शन के बाद इन उपचुनावों में प्रदर्शन स्तर में गिरावट आना भाजपा के लिए चिंताजनक रहा होगा. संभव है कि इन उपचुनाव परिणामों को देखते हुए ही  भाजपा अभी हाल-फ़िलहाल  दिल्ली में चुनाव से बचना चाह रही हो. भाजपा को भय हो कि कहीं दिल्ली में भी उपचुनावों जैसी स्थिति न हो जाय. और  इसीलिए वो बिना चुनाव मौजूदा परिस्थितियों में ही सरकार बनाने की कवायदें कर रही हो. बेशक भाजपा का यह भय जायज है, लेकिन उसे एक सत्य यह भी समझना चाहिए कि अगर वो जोड़-तोड़ के जरिए मौजूदा परिस्थितियों में दिल्ली में सरकार बना लेती है तो भी उस सरकार का कोई भरोसा न होगा. वो सरकार दो-चार, छः महीने में कभी भी गिर सकती है. और अगर वो जोड़-तोड़ की सरकार गिर जाती है तो फिर भाजपा के पास चुनाव में जाने के सिवा कोई विकल्प न होगा.  और तब अगर  भाजपा चुनाव में जाएगी, तो ये लगभग तय है कि उसे अपनी जोड़-तोड़ वाली राजनीति के कारण भारी हानि उठानी पड़ेगी. मोटे तौर पर कहने का अर्थ ये है कि अगर अभी भाजपा चुनाव में जाती है तो उसको हानि होने की कुछ संभावना मात्र है, लेकिन अगर अभी वो जोड़-तोड़ की सरकार बना लेती है और फिर कुछ दिन बाद उस सरकार के गिरने पर चुनाव में जाती है तो उसको भारी हानि होना लगभग निश्चित है. एक यह बात भाजपा को संतोष दे सकती है कि अब आप का दिल्ली में पूर्ववत प्रभाव नहीं दिख रहा. यह बात लोकसभा चुनावों में स्पष्ट रूप से सामने भी आ गई कि आप को दिल्ली में एक सीट तक नसीब नहीं हुई. ऐसे में उचित होगा कि भाजपा जोड़-तोड़ के जरिए दिल्ली में सरकार बनाने की बजाय दिल्ली में चुनाव का सामना करे. और फिर जो परिणाम आएं उनके आधार पर सरकार बनाने या न बनाने की बात की जाय. ऐसा करना भाजपा के लिए न सिर्फ राजनीतिक तौर पर अच्छा रहेगा, बल्कि जनता के बीच उसे नैतिक रूप से भी मजबूत करेगा.

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें