गुरुवार, 11 सितंबर 2014

अपनी साख खो रही सीबीआई [दैनिक जागरण राष्ट्रीय में प्रकाशित]

  • पीयूष द्विवेदी भारत 

दैनिक जागरण 
अक्सर सत्ता के हाथ का खिलौना बनने के आरोप झेलने वाली देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी सीबीआई अपने निदेशक  रंजीत सिन्हा के कारण एकबार फिर सवालों के घेरे में आ गई है. और सबसे बड़ी बात तो ये है कि इसबार ये सवाल  किसी विपक्षी दल या नेता द्वारा नहीं माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा उठाए गए हैं. दरअसल, ये पूरा मामला कुछ यों है कि अभी हाल ही में २जी घोटाले जिसके जांच की निगरानी सर्वोच्च न्यायालय द्वारा की जा रही है, से जुड़े कुछ लोगों से सीबीआई निदेशक रंजीत सिन्हा द्वारा अपने घर पर मुलाकात की गई. अब इसी बात को आधार बनाकर संस्था सिपीआइएल ने सर्वोच्च न्यायालय में याचिक दायर कर दी कि सीबीआई निदेशक २जी घोटाले के आरोपियों से मिले हुए है, अतः उन्हें इस जांच से अलग किया जाए. संस्था ने साक्ष्य के तौर पर रंजीत सिन्हा के घर के गेस्ट रजिस्टर की कॉपी भी सर्वोच्च न्यायालय के सामने रखी जिसमे कि २ जी घोटाले के आरोपियों के नाम भी शामिल हैं. इन सभी बातों पर गौर करने के बाद सर्वोच्च न्यायालय द्वारा इस मामले में सीबीआई निदेशक से जवाब तलब करते हुए कहा गया कि अगर सीबीआई निदेशक इन आरोपों का खंडन करना चाहते हैं तो लिखित बयान दें. अन्यथा अगर हमें उनके खिलाफ आरोपों में दम दिखा तो उनके द्वारा लिए गए सभी निर्णयों को रद्द कर देंगे. सर्वोच्च न्यायालय की इस तल्ख़ टिप्पणी के बाद न सिर्फ सीबीआई निदेशक रंजीत सिन्हा की मुश्किलें बढ़ती नज़र आ रही हैं, बल्कि देश की सबसे बड़ी और बेहतर जांच एजेंसी अपनी विश्वसनीयता के संकट से जूझती हुई भी दिख रही है. सवाल तो यह वाजिब ही है कि एक घोटाले के आरोपी उस घोटाले की जांच कर रही संस्था के सर्वोच्च व्यक्ति से उसके घर पर क्यों और कैसे मिलने पहुँच जाते हैं ? यह सवाल इस नाते और भी गंभीर हो जाता है कि वे आरोपी सीबीआई निदेशक के दफ्तर की बजाय उनके घर पर मिलने गए. अगर आरोपियों को जांच से जुड़ा अपना कोई पक्ष सीबीआई निदेशक के समक्ष रखना था, तो वे इसे प्रक्रियात्मक रूप से सीबीआई के कार्यालय में जाकर रख सकते थे. एक और बात कि सीबीआई निदेशक ऐसा कोई सामान्य व्यक्ति तो होता नहीं है कि जिससे बिना पूर्व अनुमति के कोई भी, कभी भी जाकर मिल ले. लिहाजा, स्पष्ट है कि सीबीआई निदेशक रंजीत सिन्हा ने उन आरोपियों को मिलने के लिए समय और अनुमति दी होगी, तभी वे उनसे मिले.  ऐसे में, अब उचित होगा कि सीबीआई निदेशक साहब मौन तोडें तथा जल्द से जल्द इस मामले में अपना स्पष्टीकरण सर्वोच्च  न्यायालय के सामने रखें और न्यायालय तथा देश के मन उपजी शंकाओं का निर्मूलन  करें. वो न्यायालय को बताएं कि आखिर ऐसी क्या बात थी कि उन्हें आरोपियों से अपने घर पर मिलना पड़ा. अगर संभव हो तो वो अपने स्पष्टीकरण की पुष्टि के लिए कुछ साक्ष्य भी  प्रस्तुत करें.  क्योंकि, जो आरोप उनपर लग रहे हैं, वो सिर्फ उनकी नहीं, वरन देश की सर्वोच्च जांच एजेंसी की विश्वसनीयता को कमजोर करने वाले हैं.
      दरअसल, ये कोई पहली बार नहीं है जब सीबीआई निदेशक इस तरह के किसी विवाद में पड़े हों. इससे पहले भी कई बार सीबीआई निदेशक रंजीत सिन्हा अपने उटपटांग बयानों के कारण जब-तब तमाम विवादों में पड़ते रहे हैं, जिनके कारण न केवल उनकी बल्कि पूरी सीबीआई की किरकिरी हुई है. अभी हाल ही में 'बलात्कार का मजा लेने' जैसा  बयान देने के कारण भी सीबीआई निदेशक की भरपूर किरकिरी हुई थी. सवाल यह उठा था कि क्या इस तरह की कुत्सित सोच के व्यक्ति का इतने महत्वपूर्ण पद पर रहना सही है ? अब चूंकि, ये सिर्फ एक बयान का मामला था इसलिए माफ़ी आदि मांगने के बाद समय के साथ दब गया. लेकिन, फिलहाल  जो विवाद सामने आया है, वो पिछले सभी विवादों से कहीं अलग और गंभीर है. क्योंकि, ये किसी विवादित बयान का मामला नहीं है जिसमे कि माफ़ी मांगकर जान छुड़ाई जा सके.  यह एक संस्था की विश्वसनीयता और नैतिकता पर प्रश्नचिन्ह लगने का मामला है, जो कि यूँ ही नहीं टल सकता.
    सीबीआई समेत तमाम लोगों द्वारा लंबे समय से ये माग की जाती रही है कि सीबीआई को सरकारी चंगुल से मुक्त करते हुए स्वायत्तता प्रदान की जाय. ये कहा जाता रहा है कि सत्तापक्ष द्वारा अपने राजनीतिक हितों के लिए जब-तब इस जांच संस्था का राजनीतिक दुरुपयोग किया जाता रहा है. हालांकि सत्तापक्ष (चाहें कोई भी दल सत्ता में हो) की तरफ से हमेशा से इस मांग का यह करके विरोध किया जाता रहा है कि सीबीआई से सरकारी नियंत्रण हटने की स्थिति में उसके निरंकुश होने का खतरा बन जाएगा. अब अगर सीबीआई निदेशक पर लगे मौजूदा आरोपों में कुछ भी सच्चाई सिद्ध होती है तो संदेह नहीं  कि सीबीआई स्वायत्तता की मांग तो कमजोर पड़ेगी ही; इसके विरोधियों को इस मांग का विरोध करने के लिए एक ठोस आधार भी मिल जाएगा. वे यह कहने की स्थिति में होंगे कि जब सरकारी नियंत्रण में होने की स्थिति में सीबीआई निदेशक इस तरह का आचरण प्रस्तुत कर रहे हैं; घोटाले के आरोपियों से मिल रहे हैं तो जब ये संस्था स्वायत्त हो जाएगी, तब वे क्या करेंगे.  ऐसे में, यह देखने वाली बात होगी कि सीबीआई निदेशक रंजीत सिन्हा सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष अपने बचाव में क्या और कितने ठोस तथ्य रखते हैं. क्योंकि, रंजीत सिन्हा द्वारा रखे जाने वाले तथ्यों पर न सिर्फ उनकी छवि, उनके पद की गरिमा बल्कि सीबीआई की विश्वसनीयता तथा स्वायत्तता की संभावना भी निर्भर करेगी.

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