मंगलवार, 2 सितंबर 2014

बेहतर साबित हो सकती है जन-धन योजना [डीएनए में प्रकाशित]

  • पीयूष द्विवेदी भारत 

डीएनए 
आख़िरकार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा बीते गुरुवार को अपनी बेहद महत्वाकांक्षी 'प्रधानमंत्री जन-धन योजना' का शुभारंभ कर दिया गया. इस योजना के तहत आगामी २६ जनवरी तक तकरीबन ७.५  करोड़ लोगों के बैंक खाते खुलवाकर उन्हें अर्थव्यवस्था में भागीदार बनाने का वर्तमान लक्ष्य प्रधानमंत्री द्वारा निर्धारित किया गया है. इसके अलावा इस योजना की प्रगति के अनुसार इसके लक्ष्यों का और विस्तार भी आगे किया जा सकता है.  इसके आरम्भ में बीस राज्यों के मुख्यमंत्रियों समेत केन्द्र सरकार का समूचा तंत्र भी अपने पूरे लाव-लश्कर के साथ लगा था. इसीसे पता चलता है कि प्रधानमंत्री द्वारा इस योजना के आरम्भ को लेकर अपने मंत्रियों आदि के साथ कितना चिंतन-मनन   किया गया होगा. इन सब कोशिशों का ही परिणाम ये रहा कि प्रधानमंत्री द्वारा इस योजना के आरम्भ के पहले दिन ही डेढ़ करोड़ खाते खुलवाने का प्रथम लक्ष्य पूरा हो सका. देश के ६०० जिलों में खाता खोलने के लिए कैम्प लगाए गए थे, जिनमे कि डेढ़ करोड़ खाते खोले गए. बहरहाल, यह प्रथम लक्ष्य तो पूरा हो गया, लेकिन इस योजना के वास्तविक लक्ष्य, आर्थिक विषमता की समाप्ती व आम जन की आर्थिक भागेदारी, को प्राप्त करना सरकार के लिए कत्तई सरल नहीं रहने वाला है. हालांकि इस योजना से लोगों को जोड़ने के लिए इसमें कई लुभावने और कारगर प्रावधान भी रखे गए हैं, जिनसे कि प्रथम द्रष्टया लोग इसके प्रति अवश्य आकृष्ट होंगे. कुछ मुख्य प्रावधानों की बात करें तो इस योजना के तहत व्यक्ति को खाते के साथ डेबिट कार्ड तथा १ लाख का दुर्घटना बीमा व ३०००० का जीवन बीमा भी दिया जाएगा. हाँ, बीमा देने की ये व्यवस्था केवल आगामी २६ जनवरी तक खाता खुलवाने वालों के लिए ही है. लेकिन, इन सब चीजों के बावजूद भी यह योजना तब तक अपने लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में नहीं बढ़ सकेगी जबतक कि बैंकों का विस्तार न होगा.  यहाँ समझना होगा कि इस योजना का लक्ष्य सिर्फ लोगों खाते खुलवाना नहीं, बल्कि लोगों को बैंकों से जोड़ना है. खाता खुल जाने भर से कोई गरीब व्यक्ति बैंक से जुड़ जाएगा, ऐसा नहीं कहा जा सकता.  इसके लिए आवश्यक है कि गाँव-गाँव तक बैंकों का विस्तार हो जिससे वे हर  व्यक्ति की पहुँच के दायरे में आएं. तभी सही मायने में लोगों का बैंकों से जुड़ना हो सकेगा और वे अपने बैंक खाते का उपयोग कर सकेंगे. बिना बैंकों के विस्तार के गाँव के लोग तो अपने खातों का कोई विशेष उपयोग कर्र नहीं पाएंगे, साथ ही एक समस्या यह भी होगी कि इस योजना के तहत खुलने वाले बैंक खातों के साथ बीमा आदि की जो व्यवस्था दी जा रही है, उसका प्रबंधन भी अभी मौजूदा बैंक शाखाओं से होना सहज नहीं होगा. उसके लिए अतिरिक्त बैंक शाखाओं की आवश्यकता पड़ेगी. यह चिन्ता बैंक कर्मचारियों द्वारा भी लगातार जताई जा रही है. अतः उचित होगा कि सरकार इस योजना के सामानांतर बैंकों के विस्तारीकरण की दिशा में बैंकों के साथ चिंतन-मनन करे तथा कुछ ठोस कदम उठाए. क्योंकि, बिना बैंकों के विस्तार के यह योजना भी केवल शहरी व संपन्न लोगों की योजना बनकर रह जाएगी और मुख्यतः जिन गरीब एवं ग्रामीण लोगों की आर्थिक भागेदारी बढ़ाने  के लिए प्रधानमंत्री ने इस योजना का खांका खिंचा है, वे ही इस योजना से अलग-थलग रह जाएंगे.  साफ़ है कि इस प्रकार ये योजना अपने निर्धारित लक्ष्य से भटक जाएगी. 
      इस योजना पर थोड़ा और विचार करें तो आम जनमानस को अर्थव्यवस्था में भागीदार बनाना तो इस योजना का मुख्य लक्ष्य है ही, पर इसके अलावा इसका एक और अत्यंत महत्वपूर्ण लक्ष्य देश की अर्थव्यवस्था को मजबूती देना भी है. इस योजना के तहत जितने भी नए बैंक खाते खुलेंगे अगर खाताधारकों द्वारा उनका उपयोग होता है, तो निश्चित ही बैंकों के पास काफी अधिक नया धन भी आएगा, जिससे कि बैंक पूँजी की समस्या से काफी हद तक राहत पा सकेंगे. पर्याप्त पूँजी होने पर बैंक उद्योग जगत समेत अन्य तमाम क्षेत्रों में निवेश के लिए नया कर्ज देने की स्थिति में भी होंगे, जिससे कि अर्थव्यवस्था को मजबूती व गति मिलना स्वाभाविक है. अतः समझना आसान है कि अगर यह योजना अपने निर्धारित लक्ष्य की तरफ समुचित क्रियान्वयन के साथ बढ़ती जाती है तो ये न सिर्फ भारत के आम आदमी को विकास की मुख्यधारा से जोड़ने में सहायक होगी, बल्कि बेहद धीमी हो चुकी  भारतीय अर्थव्यवस्था की गाड़ी को गति देने में भी ईंधन का काम करेगी. 
  इसमें तो कोई संदेह नहीं कि 'प्रधानमंत्री जन-धन योजना' एक बेहतरीन योजना है, बशर्ते कि सरकार इसको लेकर सदैव सजग व सचेत रहे जिससे कि ये भी पिछली सरकार की तमाम बेहतरीन योजनाओं की तरह भ्रष्टाचार व व्यवस्थाजन्य खामियों का शिकार न हो जाए. सरकार चाहे तो इस योजना की निगरानी  के लिए कोई कमिटी बना सकती है, जो कि प्रत्येक तीन या छः महीने पर सरकार को इस योजना की प्रगति की जानकारी दे. या और भी कई तरीके अपनाए जा सकते हैं. अगर ये चीजें की जाती हैं और ये योजना सही ढंग से क्रियान्वित होती है तो संदेह नहीं कि इसके कई दूरगामी परिणाम सिद्ध हो सकते हैं.

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