सोमवार, 28 अप्रैल 2014

प्रधानमंत्रित्व के रोड़ों से बेखबर मोदी [डीएनए में प्रकाशित]

  • पीयूष द्विवेदी भारत 

डीएनए 
इसमे तो कोई संशय नहीं कि कांग्रेसनीत यूपीए सरकार के कुशासन के कारण आज देश में कांग्रेस विरोधी माहौल अपने पूरे उफान पर है, लेकिन इस माहौल का लाभ भाजपा को अगर मिल रहा है तो वो सिर्फ और सिर्फ नरेंद्र मोदी के कारण । सीधे शब्दों में कहें तो नरेंद्र मोदी ने अपने गुजरात मॉडल के हाईटेक प्रचार-प्रसार के जरिए इस कांग्रेस विरोधी लहर को अपने पक्ष की यानी मोदी लहर बना दिया और इसी मोदी लहर के कारण आज भाजपा के केन्द्र की सत्ता तक पहुँचने की संभावना काफी प्रबल दिख रही है । संदेह नहीं कि अगर मोदी नहीं होते तो कितना भी कांग्रेस विरोधी माहौल होता, भाजपा के लिए उसका कोई बहुत बड़ा लाभ लेना कत्तई सहज नहीं होता । उदाहरणार्थ, अबसे पहले भी कई दफे देश में काफी कांग्रेस विरोधी माहौल बना है, लेकिन हमने देखा है कि अपनी किसी न किसी कमी के कारण तत्कालीन दौर में भाजपा उस माहौल का कोई विशेष लाभ नहीं ले पाई है । हालांकि, इस चुनाव मोदी लहर का लाभ लेने में भाजपा कोई गलती नहीं करना चाहती और इसलिए उसने अपने चुनाव प्रचार से लेकर सबकुछ पूरी तरह से मोदीमय कर दिया है । ‘अबकी बार, मोदी सरकार’ जैसे संगठन से इतर व्यक्तिवादी नारे हों या मोदी के आगे पूरी पार्टी का नतमस्तक हो जाना हो, इन सब बातों से जो तस्वीर उभरकर आती है वो ये कि इस आम चुनाव में भाजपा पूरी तरह से मोदी लहर के दम पर केन्द्र की सत्ता तक पहुँचना तय कर चुकी है । फिर चाहें इसके लिए उसे फ़िलहाल अपने छोटे-बड़े कुछ नेताओं की नाराज़गी तथा व्यक्तिवादी राजनीति का आरोप ही क्यों न झेलना पड़े । मोदी को आगे रखने का एक कारण ये भी है कि लोगों में बेहद लोकप्रिय होने के साथ-साथ उनके ऊपर संघ का भी हाथ है । ऐसे में राजनीतिक दृष्टिकोण से मोदी को आगे रखना ही भाजपा के लिए उचित है । इसी क्रम में अगर रैलियों या प्रचार आदि में दिए जा रहे मोदी के वक्तव्यों पर गंभीरता से गौर करें तो वे मतदाताओं से प्रायः कहते हैं कि आप कमल का बटन दबाइए, आपका मत सीधे मुझे मिलेगा । इस वक्तव्य से यही संकेत मिलता है कि हो न हो, वो भी ये मान चुके हैं कि इस चुनाव के बाद हर हालत में भाजपा की तरफ से वे ही प्रधानमंत्री बनने वाले हैं । लेकिन अगर विचार करें तो मोदी के प्रधानमंत्री बनने की इन सभी संभावनाओं के बीच कुछ बातें ऐसी भी हैं, जो चुनाव बाद की एक दूसरी ही तस्वीर प्रस्तुत करती हैं । यह तो स्पष्ट है कि भाजपा के भीतर नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्रित्व को लेकर काफी विरोध है । इस संबंध में लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, सुषमा स्वराज आदि पार्टी के तमाम बड़े नेताओं की नाराज़गी जब-तब सामने आती रही है, लेकिन आखिर में मोदी की लोकप्रियता और संघ के दबाव के कारण इन नेताओं को मौन होना पड़ा है । पर भाजपा के इन शीर्ष नेताओं के इस मौन का ये कत्तई अर्थ नहीं कि वे हमेशा मौन ही रहेंगे, उनका ये मौन सिर्फ चुनाव भर का है । पूरी संभावना है कि चुनाव बाद वे फिर अपनी ढपली अपना राग अलापना शुरू कर देंगे । कहना गलत नहीं होगा कि चुनाव बाद ये नेता मोदी के पीएम बनने की राह में काफी समस्याएं खड़ी कर सकते हैं । भाजपा में अगर सबसे अधिक मोदी के पक्ष में कोई बड़ा नेता दिख रहा तो वो हैं भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह, जिन्होंने कहा भी है कि हर हालत में नरेंद्र मोदी ही भाजपा के पीएम होंगे । लेकिन अगर इनकी चुनावी रणनीति को गहराई से समझने का प्रयास करें तो मोदी के प्रति इनकी नीयत सबसे अधिक संदेह के घेरे में आती है । गौरतलब है कि राजनाथ सिंह अब तक गाज़ियाबाद सीट से लड़ते और जीतते थे, इसबार भी उनके लिए वहाँ से कोई समस्या नहीं थी । लेकिन अचानक जाने क्या हुआ कि वे अपनी सीट बदलते हुए गाज़ियाबाद से सीधे लखनऊ आ गए । लखनऊ से मौजूदा सांसद लालजी टंडन की बजाय स्वयं लड़ने का निर्णय ले लिए । अब अगर इस निर्णय की तह में जाएं तो हमारे सामने राजनाथ सिंह की प्रधानमंत्री बनने की वो महत्वाकांक्षा आती है, जिसे प्रत्यक्ष तौर पर उन्होंने अब तक जाहिर नहीं किया है । अब चूंकि, लखनऊ भाजपा के लिए ऐसी सीट रहा है जहाँ से कभी भाजपा के प्रधानमंत्री उम्मीदवार अटल बिहारी वाजपेयी लड़ा करते थे, लिहाजा यहाँ से लड़ने वाला व्यक्ति भाजपा के प्रधानमंत्री पद का एक अघोषित विकल्प होता है । इसलिए, राजनाथ सिंह के गाज़ियाबाद सीट छोड़कर लखनऊ आने के पीछे मुख्य कारण यही प्रतीत होता है कि अगर चुनाव बाद भाजपा पूर्ण बहुमत के आंकड़े से  २५-३० सीटें भी दूर रह जाती है और कोई भी बड़ा दल मोदी की तथाकथित सांप्रदायिक छवि के कारण भाजपा से जुड़ने में हिचक दिखाता है, तो ऐसे में राजनाथ सिंह अपने नाम पर समर्थन लेकर प्रधानमंत्री बन जाएंगे । और लखनऊ से सांसद होने के कारण उनके प्रधानमंत्री बनने के विरोध में पार्टी का कोई बड़ा नेता खुलकर कुछ बोल भी नहीं पाएगा । स्पष्ट है कि मोदी की  लोकप्रियता के दम पर राजनाथ प्रधानमंत्री बनने की अपनी गुप्त महत्वाकांक्षा को पूरा करने की संभावना पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं । इसी कोशिश के तहत उन्होंने लखनऊ की सीट से लड़ने का निर्णय लिया है । ऐसे में, कहा जा सकता है कि मोदी अपनी लोकप्रियता, प्रधानमंत्रित्व की कल्पना और राजनाथ के अवसरवादी समर्थन के अति-उत्साह में ऐसे खोए हैं कि उन्हें राजनाथ सिंह की ये चाल समझ नहीं आ रही । अभी उन्हें इसका शायद ही अंदाज़ा होगा कि उनका प्रधानमंत्री बनना काफी हद तक इसी बात पर निर्भर है कि भाजपा पूर्ण बहुमत या उसके बिलकुल आसपास सीटें जीते, वरना तो उनके प्रधानमंत्री की राह में गैरों से पहले उनके अपने ही रोड़ा बनने वाले हैं ।

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