मंगलवार, 8 अप्रैल 2014

संतुलिंत और व्यवहारिक है भाजपा का घोषणापत्र [अप्रकाशित]

  • पीयूष द्विवेदी भारत 

घोषणापत्र जारी करते राजनाथ सिंह, नरेंद्र मोदी और एमएम जोशी 
आख़िरकार बहुचर्चित और बहुप्रतीक्षित भाजपा के घोषणापत्र का ऐलान हो ही गया । बीते सोमवार की सुबह पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह, भाजपा के पीएम उम्मीदवार नरेंद्र मोदी समेत लालकृष्ण आडवाणी, सुषमा स्वराज आदि नेताओं की मौजूदगी में घोषणापत्र समिति के प्रमुख मुरली मनोहर जोशी द्वारा भाजपा के घोषणापत्र का ऐलान किया गया । भाजपा का ये घोषणापत्र एक सप्ताह पहले आने वाला था, लेकिन घोषणापत्र में राम मंदिर के मुद्दे के जिक्र को लेकर नरेंद्र मोदी और मुरली मनोहर जोशी के बीच मतभेद होने के कारण इसके आने में देरी हुई । चूंकि, मोदी का पक्ष था कि घोषणापत्र में राम मंदिर आदि का जिक्र न करते हुए केवल विकास की बात की जाए, जबकि जोशी का कहना था कि राम मंदिर भाजपा का पारम्परिक मुद्दा है और इसको छोड़ने का मतलब अपनी वैचारिक जमीन से हटना है । साथ ही, जोशी को राम मंदिर का जिक्र न करने की स्थिति में भाजपा से साधु-संतों की नाराजगी का भी भय था । बहरहाल, मोदी और जोशी के बीच का ये मतभेद जब संघ के दरवाजे पर पहुंचा तो आखिरकार हल्के-फुल्के परिवर्तन के साथ राम मंदिर मुद्दे को भाजपा के घोषणापत्र में स्थान दे दिया गया । चूंकि, मोदी की लोकप्रियता गुजरात में सफल उनके विकास माडल के कारण ही है और ये चुनाव भी वो उसीके दम पर लड़ रहे हैं, इसलिए वो नहीं चाहते थे कि राम मंदिर मुद्दे के कारण फिर साम्प्रदायिकता का जिन्न भाजपा या उनके पीछे पड़े और उनकी विकास पुरुष की छवि को चोट पहुंचे । बस इसीलिए वो घोषणापत्र में राम मंदिर का जिक्र करने के खिलाफ थे, लेकिन राम मंदिर का जिक्र करना भाजपा की भी मजबूरी थी । ऐसा न करने की स्थिति में भाजपा के पारम्परिक मतदाताओं के बीच भाजपा के प्रति बेहद गलत संदेश जाता और संभवतः इससे भाजपा को चुनाव में हानि भी उठानी पड़ जाती ।
  अभी हाल ही में कांग्रेस ने भी अपना घोषणापत्र जारी किया था जिसमे कि एक से बढ़कर एक जनलुभावन वायदे किए गए हैं । अगर कांग्रेस के घोषणापत्र और भाजपा के घोषणापत्र के बीच एक तुलनात्मक अध्ययन करें तो हम देखते हैं कि कांग्रेसी घोषणापत्र की अपेक्षा भाजपा का घोषणापत्र न सिर्फ कहीं ज्यादा संतुलित है, बल्कि व्यवहारिक भी है । हालांकि इसका ये कत्तई अर्थ नहीं कि भाजपा के घोषणापत्र में खामियां नहीं हैं । बेशक, उसमे भी कई खामियां हैं जिनपर सवाल उठाए जा सकते हैं, मगर सभी खामियों के बावजूद भाजपा का घोषणापत्र कांग्रेस के घोषणापत्र से अधिक बेहतर और विश्वसनीय लगता है । इसी क्रम में अगर दोनों घोषणापत्रों में किए गए कुछ प्रमुख वायदों के जरिए हम इस बात को समझने का प्रयास करें तो स्वास्थ्य के मसले पर जहाँ कांग्रेसी घोषणापत्र का कहना है कि सभी नागरिकों के लिए स्वास्थ्य का अधिकार तथा हेल्थ बीमा होगी, वहीँ भाजपा हर राज्य में एक एम्स की स्थापना, अस्पतालों का आधुनिकीकरण करने तथा आयुर्वेद, योग आदि के क्षेत्र में निवेश बढ़ाने की पक्षधर है । यहाँ गौर करने वाली बात ये है कि कांग्रेस ने जिस ‘स्वास्थ्य के अधिकार’ की बात की है उसका लाभ लोगों तक पहुँचने की क्या गारंटी है, इसपर उसने कुछ नहीं कहा है । संदेह नहीं कि ये भी ‘शिक्षा का अधिकार’ क़ानून की तरह मात्र कागजों तक सिमटकर रह जाएगा । जबकि भाजपा द्वारा किए गए हर राज्य में एक एम्स बनाने तथा अस्पतालों के आधुनिकीकरण करने आदि वादों के पूरा होने में कहीं कोई विशेष अड़चन नहीं दिखती । रोजगार के मामले में कांग्रेस ने १० करोड़ युवाओं को हुनर का विकास करने के लिए अवसर देने की बात तो की गई है, लेकिन ये नहीं बताया है कि वो अचानक इतने रोजगार के अवसर कहाँ से लाएगी ? क्योंकि अपने पिछले घोषणापत्र में उसने रोजगार देने का जो लक्ष्य रखा था, वो अब भी अधूरा है । ऐसे में १० करोड़ रोजगार के वायदे के हवा-हवाई ही कहा जा सकता है । वहीँ इस विषय पर भाजपा की तरफ से रोजगार की किसी भी निश्चित संख्या का कोई भी वायदा नहीं किया गया है । इसके अलावा खुद को गरीबों की पार्टी बताने वाली कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र में गरीबों के लिए कहा है कि देश में बीपीएल से ऊपर ८० प्रतिशत परिवारों को अगले पाँच साल में मध्यम वर्ग में लाया जाएगा तथा शारीरिक तौर पर अक्षम लोगों को पेंशन आदि की सुविधा दी जाएगी । अब यहाँ कांग्रेस ने ये नहीं बताया है कि बीपीएल से ऊपर के ८० प्रतिशत परिवारों को मध्यम वर्ग तक किस योजना या कार्यक्रम के द्वारा लाया जाएगा और इसके लिए निवेश करने को धन कहां से आएगा ? भाजपा की बात करें तो इस मसले पर उसका कहना है कि ग्रामीण गरीबों को कृषि आदि के क्षेत्र में रोजगार उपलब्ध कराकर सशक्त किया जाएगा तथा अनुसूचित व पिछड़ी जातियों में शिक्षा व उद्यमिता के विकास पर जोर दिया जाएगा । जाहिर है कि भाजपा का ये वादा भी कांग्रेस के ८० प्रतिशत परिवारों को मध्यम वर्ग तक लाने के हवा-हवाई वादे से कहीं अधिक व्यवहारिक है । काला धन वापस लाने के लिए कांग्रेस ने एक योजना बनाने की बात कही है तो भाजपा की तरफ से एक टास्क फ़ोर्स बनाने का वायदा किया गया है । इन सबके अलावा संविधान के दायरे में रहते हुए राम मंदिर बनवाने समेत कश्मीर से धारा ३७० हटवाने जैसे भाजपा के पारम्परिक वायदे तो उसके घोषणापत्र में मौजूद हैं ही ।  

आखिर में कुल मिलाकर बात इतनी है कि कांग्रेस पिछले १० वर्षों से लगातार  सत्ता में है जिससे उसकी नीतियों, कार्यक्रमों को व्यवस्थाजन्य खामियों तथा क्रियान्वयन के अभाव में विफल होते लोग देख चुके हैं जबकि भाजपा के पास गुजरात में करिश्मा कर चुका नरेंद्र मोदी जैसा नेतृत्व है जिसपर जनता द्वारा भरपूर विश्वास दिखाया जा रहा है । ऐसे में भाजपा अगर कुछ हवा-हवाई वायदे भी कर देती तो जनता उन्हें ससहज स्वीकार लेती, लेकिन भाजपा की प्रशंसा करनी होगी कि उसने ऐसे वायदे किए हैं जिन्हें दृढ़ इच्छाशक्ति के जरिए यथार्थ के धरातल पर क्रियान्वित किया जा सकता है और चुनाव बाद अगर वो सत्ता में आती है तो निश्चित ही उसे अपने इन व्यवहारिक वायदों का लाभ मिलेगा ।   

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