कोरोना महामारी
ने पूरी दुनिया में लोगों के जीवन को प्रभावित किया है। इसका सबसे बुरा प्रभाव
रोजगार की स्थिति पर पड़ा है। भारत की बात करें तो यहाँ बेरोजगारी की समस्या पहले
से ही बड़ी थी, जो कि इस महामारी के बाद और बड़ी हो गयी है। सोशल मीडिया पर युवा
रोजगार को लेकर सरकार पर सवाल उठाने में लगे हैं। इसके तहत प्रधानमंत्री नरेंद्र
मोदी के जन्मदिन के रोज ट्विटर पर ‘बेरोजगारी दिवस’ ट्रेंड करवाया गया। उनकी ‘मन
की बात’ कार्यक्रम के वीडियो को डिसलाइक करने का अभियान भी चला। हालांकि इन सब
कवायदों के पीछे विपक्षी दलों की भूमिका होने की संभावना मानी जा रही है, लेकिन तब
भी देश में बेरोजगारी की समस्या से इनकार नहीं किया जा सकता।
गौर करें तो सोशल
मीडिया पर बेरोजगारी का विषय उठाने वाले अधिकांश युवाओं का मुद्दा सरकारी भर्तियों
में होने वाली अनियमितता और देरी है। अच्छी बात ये है कि युवाओं की मांग पर ध्यान
देते हुए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने प्रदेश में खाली पड़े पदों
पर अगले छः महीने के भीतर भर्ती प्रक्रिया पूरी कर लेने का निर्देश संबधित
अधिकारियों को दे दिया है। उम्मीद है कि इसके बाद बिना किसी विघ्न-बाधा के प्रदेश
में सभी खाली पद भर लिए जाएंगे। ऐसी पहल अन्य राज्यों की सरकारों को भी करनी चाहिए।
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हरिभूमि
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सरकारी भर्तियाँ
सही समय पर और सही तरीके से हों, यह तो ठीक है। लेकिन प्रश्न ये है कि क्या सरकारी
भर्तियों के द्वारा इतने बड़े देश के लोगों को रोजगार दिया जा सकता है? इससे भी बड़ा
प्रश्न यह है कि क्या सरकार सबको थाली में सजाकर नौकरी देने में सक्षम है? इस
सम्बन्ध में उल्लेखनीय होगा कि 2018
में संसद में प्रस्तुत एक
आंकड़े के मुताबिक़, देश के सरकारी क्षेत्र में लगभग 24 लाख
नौकरियों के पद खाली हैं। अब पहली चीज तो ये कि आज के समय में जब सब चीजें तकनीक
आधारित होती जा रही हैं, तब इन सभी पदों पर भर्ती हो, यही आवश्यक नहीं है। इनमें
बहुत-से पद ऐसे होंगे, जिनकी उपयोगिता तकनीक के आगमन के साथ ही कम हो चुकी होगी।
अतः उनपर सरकार का ध्यान न देना स्वाभाविक है। इसके अलावा बहुत बार ऐसा भी होता है
कि भर्ती निकलने पर पर्याप्त योग्य उम्मीदवार न मिलने के कारण भी बहुत-से पद खाली
रह जाते हैं। लेकिन इन सबके बावजूद एकबार के लिए मान लेते हैं कि सरकारें
युद्धस्तर पर लग जाएं, सब परिस्थितियां भी एकदम अनुकूल रहें और ये सब पद भर दिए
जाएं, लेकिन क्या इससे देश में व्याप्त बेरोजगारी की समस्या को कोई बहुत अधिक फर्क
पड़ेगा ? कहना गलत नहीं होगा कि यह भर्तियाँ करोड़ों की बेरोजगारी वाले इस देश में
ऊँट के मुंह में जीरे जैसी ही होंगी।
अब प्रश्न यह उठता है कि फिर देश में बेरोजगारी की समस्या का समाधान क्या
है और उस दिशा में सरकार क्या प्रयास कर रही है ? भारत जैसे देश में बेरोजगारी
खत्म करने का एकमात्र उपाय स्वरोजगार है, जिसकी बात वर्तमान केंद्र सरकार अपने
पहले कार्यकाल से कर रही है। न केवल बात कर रही है, बल्कि स्वरोजगार को प्रोत्साहन
देने के लिए अनेक प्रकार के कदम भी उठाए हैं। इस दिशा में मुद्रा योजना, स्टार्टअप
इंडिया, स्किल इंडिया जैसी योजनाओं के जरिये सरकार काम कर रही है। इनमें मुद्रा
योजना बहुत महत्वपूर्ण है।
वर्ष 2015 में अपने पहले कार्यकाल के
आरम्भ में ही मोदी सरकार ‘मुद्रा लोन’ नामक योजना लेकर आई। इस योजना के तहत अपना काम-धंधा
शुरू करने के लिए लोगों को आसानी से कर्ज उपलब्ध करवाने की व्यवस्था की गयी है।
इसमें पचास हजार से लेकर दस लाख तक का कर्ज आसानी से मिल सकता है। अबतक इस योजना
के तहत पच्चीस करोड़ से अधिक लोगों को कर्ज दिए जा चुके हैं। लेकिन समस्या ये है कि
यह कर्ज असंगठित क्षेत्र के रोजगार के लिए दिए गए हैं, जिस कारण इनके द्वारा कितने
लोगों को रोजगार मिला इसका कोई पक्का आंकड़ा सरकार के पास मौजूद नहीं है। लेकिन
एकबार के लिए यदि बड़ा ‘मार्जिन ऑफ़ एरर’ रखते हुए हम मान लें कि इन कर्ज लेने वालों
में से आधे लोग भी अपना स्वरोजगार जमाने में कामयाब रहे होंगे तो भी इस योजना के
द्वारा मिले रोजगार की संख्या बहुत बड़ी हो जाती है। क्योंकि यदि कोई आदमी इस योजना
से कर्ज लेकर सैलून खोलता है या कोई औरत अपना ब्यूटी पार्लर खोलती है, तो केवल
उनके लिए ही रोजगार का रास्ता नहीं खुलता बल्कि धंधा जम जाने पर वे अपने सहयोगी भी
रखते हैं और इस तरह रोजगार की ये श्रृंखला लम्बी होती जाती है। अतः मुद्रा योजना
के द्वारा सरकार ने रोजगार की दिशा में बड़ा कदम उठाया है, लेकिन इसका लाभ लेने के
लिए लोगों को ‘नौकरी ही रोजगार है’ और ‘छोटा काम’ जैसी संकीर्ण मानसिकताओं को छोड़ अपनी
क्षमता और हुनर के अनुरूप स्वरोजगार की दिशा में बढ़ने की जरूरत है। वस्तुतः
स्वरोजगार ही वो रास्ता है, जो न केवल भारत की बेरोजगारी की समस्या को खत्म कर
सकता है, बल्कि देश को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में भी आगे ले जा सकता है।
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