शनिवार, 12 सितंबर 2020

प्रशासनिक अमले में सुधार की पहल

  • पीयूष द्विवेदी भारत

पिछले दिनों मोदी सरकार की कैबिनेट द्वारा ‘मिशन कर्मयोगी- राष्ट्रीय सिविल सेवा क्षमता विकास कार्यक्रम’ को मंजूरी दी गयीI सरकार का यह कदम देश की प्रशासनिक व्यवस्था में सुधार लाने की दिशा में बेहद महत्वपूर्ण माना जा रहा हैI इस कार्यक्रम का उद्देश्य ‘भारतीय सिविल सेवकों को और भी अधिक रचनात्मक, सृजनात्मक, विचारशील, नवाचारी, प्रोफेशनल, प्रगतिशील, ऊर्जावान, सक्षम, पारदर्शी और प्रोद्योगिकी-समर्थ बनाते हुए भविष्य के लिए तैयार’ करना हैI इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए इस कार्यक्रम में कई प्रकार की व्यवस्था की गयी हैI केंद्र सरकार के करीब 46 लाख कर्मचारियों पर 2020 से 2025 के बीच पांच सालों में इस योजना के जरिये लगभग 510 करोड़ रुपये खर्च किए जाएंगेI 

वास्तव में किसी भी देश के विकास में उसकी प्रशासनिक तंत्र की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होती हैI देश की सरकार जनहित की कितनी भी अच्छी योजना बना दे, लेकिन यदि प्रशासन में उसे अमलीजामा पहनाने की इच्छाशक्ति, कौशल और प्रतिबद्धता नहीं है, तो वो योजना केवल कागजों पर रह जाती है और उसके लिए आवंटित धनराशि भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाती हैI दुर्भाग्यवश भारतीय प्रशासनिक व्यवस्था की स्थिति निरपवाद रूप से ऐसी ही रही हैI   

यहाँ आजादी के बाद अंग्रेजों द्वारा स्थापित आईसीएस को बदलकर इंडियन एडमिनिस्ट्रेटिव सर्विस (आईएएस) तो कर दिया गया, लेकिन उसकी कार्य-पद्धति में बहुत परिवर्तन नहीं आ सकाI देश की आम जनता और सरकार के बीच पुल के रूप में ब्यूरोक्रेसी की कल्पना की गयी, लेकिन विडंबना ही है कि भारतीय ब्यूरोक्रेसी सरकार के लिए पुल बनना तो दूर, खुद ही जनता से नहीं जुड़ सकी और आम लोगों के लिए असहज बनी रहीI आज किसी भी सरकारी दफ्तर में किसी काम के लिए जाने से पहले सामान्य लोगों का झिझकना इस असहजता को ही दिखाता हैI आज यदि लोग अपने काम के लिए सरकारी दफ्तर में जाकर प्रक्रिया को अपनाने की बजाय कुछ ले-देकर काम बनाने की जुगत करने लगते हैं, तो उसके पीछे मुख्य कारण सरकारी दफ्तरों की हीलाहवाली और सम्बंधित अफसरों का सुस्त व असहयोगी रवैया ही हैI हालांकि मोदी सरकार के आने के बाद ई-गवर्नेंस के तहत तमाम सरकारी कामों के ऑनलाइन हो जाने से लोगों के लिए बड़ी सहूलियत हुई हैI लेकिन इससे प्रशासनिक महकमे में सुधार की जरूरत समाप्त नहीं होतीI इसी सुधार के उद्देश्य से लाया गया ‘मिशन कर्मयोगी’ कार्यक्रम निःसंदेह उम्मीद जगाता हैI  

इस कार्यक्रम में सबसे ऊपर प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में प्रधानमंत्री मानव संसाधन परिषद् काम करेगी, जिसमें चुने हुए केन्द्रीय मंत्री, मुख्यमंत्री और मानव संसाधन के क्षेत्र में काम करने वाले लोग शामिल होंगेI इसके अलावा क्षमता विकास आयोग का गठन किया जाएगा जो प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली परिषद् का सहयोग करेगा तथा अफसरों के क्षमता विकास से सम्बंधित अन्य व्यवस्थाओं व गतिविधियों का भी निरीक्षण करेगा तथा सरकार को जरूरी सुझाव देगाI कैबिनेट सचिव की अध्यक्षता में एक समन्वय इकाई भी गठित की जाएगी जिसमें चुनिंदा सचिव और कैडर को नियंत्रित करने वाले अधिकारी शामिल होंगेI इसके साथ ही, i-GOT नामक एक डिजिटल प्लेटफार्म भी स्थापित किया जाएगा जो देश के दो करोड़ से अधिक कार्मिकों की क्षमताओं को बढ़ाने के लिए अत्याधुनिक संरचना उपलब्ध कराएगाI

इस प्लेटफार्म पर देश की ब्यूरोक्रेसी लिए लिए विश्वस्तरीय ई-लर्निंग सामग्री उपलब्ध कराई जाएगी जिसकी सहायता से वे अपनी क्षमता बढ़ा सकेंगेI प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में संचालित उक्त परिषद् इन सभी गतिविधियों की निगरानी करेगी जिससे यह कार्यक्रम भी केवल कागजी खानापूर्ति भर बनकर न रह जाएI सरकार को उम्मीद है कि इस कदम के माध्यम से देश की ब्यूरोक्रेसी की क्षमताओं में वृद्धि होगी और उसके प्रदर्शन में सुधार देखने को मिलेगाI इस कार्यक्रम के मुख्य मार्गदर्शक सिद्धांतों में सबसे ऊपर कहा गया है कि ये ब्यूरोक्रेसी को ‘रूल बेस्ड’ से ‘रोल बेस्ड’ व्यवस्था की ओर ले जाएगाI सरल भाषा में इसका अर्थ यह है कि नियमों की जकड़न में उलझने की बजाय कार्य की आवश्यकता को देखते हुए भूमिका के निर्वहन पर यह कार्यक्रम बल देगाI यह बहुत बड़ी बात है और यदि यह बात भारतीय प्रशासन के कार्य-व्यवहार में साकार हो सके तो निश्चित रूप से उसकी तस्वीर बदल सकती हैI   

समग्रतः मोदी सरकार का मिशन कर्मयोगी प्रशासनिक सुधार की दिशा में एक सूझबूझ से भरी, रचनात्मक और दूरदर्शितापूर्ण पहल हैI परन्तु, महत्वपूर्ण ये है कि जमीन पर भी यह इसी रूप में लागू हो और सरकारी अधिकारियों-कर्मचारियों द्वारा इसको पूरी निष्ठा से अपनाया जाएI असल में समस्या यहीं आनी है, क्योंकि हमारे देश के प्रशासनिक महकमे की मानसिकता में ही सुस्ती और भ्रष्टता भरी हुई हैI जबतक वे इस मानसिकता से बाहर नहीं आते, ब्यूरोक्रेसी में बदलाव आना आसान नहीं हैI

हालांकि इस मिशन कर्मयोगी की बागडोर प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली मानव संसाधन परिषद के पास होने के कारण उम्मीद जगती है, क्योंकि इसके माध्यम से अफसरों के पूरे प्रशिक्षण की निगरानी व नियंत्रण स्वयं प्रधानमंत्री करेंगेI अतः इसमें किसी प्रकार की टालमटोल की प्रवृत्ति का चलना मुश्किल होगाI

वैसे भी मोदी सरकार का रिकॉर्ड देखें तो उसके कार्यकाल में जो भी योजनाएं आई हैं, उनका क्रियान्वयन संतोषजनक रूप से संपन्न हुआ है, अतः उम्मीद कर सकते हैं कि यह कार्यक्रम भी अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने में कामयाब रहेगा और देश के लिए एक अधिक बेहतर एवं कार्यकुशल प्रशासनिक व्यवस्था को आकार देने में महत्वपूर्ण निभाएगाI

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