शुक्रवार, 23 जून 2017

गो-तस्करों पर कड़ी कार्रवाई की ज़रूरत [राज एक्सप्रेस में प्रकाशित]

  • पीयूष द्विवेदी भारत
कहा जाता है कि भारत में जब किसी अपराध पर रोक लगाने के लिए कोई नया क़ानून बनता है, तो अपराधियों द्वारा उससे बचने के कई तरीके भी बना दिए जाते हैं। एक क़ानून से बचने के दस तरीके खोज निकाले जाते हैं। फिलहाल यह बात असम से बांग्लादेश में हो रही गोवंश की तस्करी के संदर्भ में लगभग सटीक साबित होती नज़र रही है। असम के रास्ते बांग्लादेश में गायों की तस्करी की बात कत्तई नयी नहीं है, ये काफी पहले से चला रहा अपराध है। मगर, हाल के दिनों में असम-बांग्लादेश सीमा पर सीमा सुरक्षा बल के जवानों की कड़ी मुस्तैदी के कारण जमीनी सीमा के रास्ते तस्करों के लिए गायों को बांग्लादेश भेजना काफी मुश्किल हो गया है। लेकिन, इससे उनकी तस्करी पर लगाम नहीं लगी है; नये ढंग और नये मार्ग से उनकी तस्करी अब भी बदस्तूर जारी है।

तस्करों ने अब गायों को बांग्लादेश भेजने के लिए पानी का मार्ग अपनाया है। इस पानी के रास्ते गोवंश के पशुओं को बांग्लादेश पहुँचने के दौरान बेहद कठिन यातना के दौर से गुजरना पड़ता है। तस्कर पहले गाय-बैल आदि पशुओं के पैर कस के बाँध देते हैं, फिर उन्हें नदी के पानी में ढकेलकर केले के दो तनों से उनका सिर बाँध दिया जाता है। केले के तनों से सिर बाँधने का उद्देश्य होता है कि सिर्फ इन पशुओं का मुँह ही पानी से बाहर रहे, जिससे ये सांस ले सकें। साथ ही, इनपर कूड़ा-करकट भी डाल दिया जाता है कि अगर किसीकी नज़र पड़ जाए तो ये लगे कि कूड़ा आदि बह रहा है। समझा जा सकता है कि तस्करी का ये नया हथकंडा गोवंश पशुओं के लिए किस कदर यातनामय साबित होता होगा। असम के धुबरी जिले के झापसाबारी इलाके में गायों की बांग्लादेश को तस्करी के लिए ये तरीका धड़ल्ले से अपनाया जा रहा है। गाय समेत तमाम पशुओं के ऊपर कोई खास पहचान या कोड भी छाप दिए जाते है। ये इसलिए किया जाता है कि सरहद पार पहुंचने पर पशु उसी कारोबारी तक पहुंचे जिसके लिए उसकी तस्करी की जा रही है। स्थानीय नागरिकों के मुताबिक बीएसएफ जवानों की आंखों से बचाकर ये तस्करी की जाती है। एक अनुमान के मुताबिक झापसाबारी से ही हर दिन 300-400 गायों को नदी के रास्ते बांग्लादेश भेजा जाता है।

राज एक्सप्रेस
बताया जाता है कि तस्करी के लिए ये पशु यूपी, बिहार आदि राज्यों से वाहनों में भरकर सड़क के मार्ग से लाए जाते हैं, जिन्हें पश्चिम बंगाल में उतारा जाता है। इसके बाद इन्हें किस ढंग से बांग्लादेश भेजना है, इसपर तस्कर विचार करते हैं। यदि सीमा पर चौकसी कम हो, तो वहीं से यह गो-तस्करी अंजाम देने की कोशिश की जाती है, वर्ना फिर नदी के रास्ते तस्करी का उक्त तरीका आज़माया जाता है। एक अनुमानित आंकड़े के मुताबिक़ प्रतिवर्ष भारत से तकरीबन तीन लाख गायों को तस्करों द्वारा बांग्लादेश भेजा जाता है। तस्करी का ये सालाना कारोबार 15 हजार करोड़ रूपये से ज्यादा के होने का अनुमान है। कमाई का अंदाज़ा इससे भी लगाया जा सकता है कि जिन गायों की औसतन कीमत यहाँ पचास हजार होती है, बांग्लादेश पहुँचते ही वो एक लाख तक पहुँच जाती है। यही कारण है कि तस्कर हर हाल में इस आपराधिक धंधे को जारी रखने में लगे हैं। इस तस्करी के लिए असम इसलिए सबसे मुफीद जगह है, क्योंकि वहाँ से बांग्लादेश की करीब 263 किमी लम्बी सीमा है। हालांकि अब उस थल सीमा पर सीमा सुरक्षा बल की चौकसी बढ़ गयी है, मगर फिर भी इतनी लम्बी सीमा पर पूरी तरह से कहाँ तक निगरानी संभव है। थोड़ा-बहुत भी निगरानी कम होने की स्थिति में तस्कर अपने मंसूबे पूरे कर सकते हैं।

वैसे भी तस्करों के हौसले राज्य में कितने बुलंद हैं, इसे स्थानीय लोगों की इस बात से समझा जा सकता है कि कितने तस्कर तो पकड़े जाने पर सीमा सुरक्षा बल के जवानों से ही भिड़  जाते हैं। ऐसे में, ज़रूरी है कि इनपर लगाम लगाने के लिए कड़े कदम उठाए जाएं। आज इन्होने नदी का मार्ग अपनाया है। संभव है कि वहाँ भी निगरानी की कोई व्यवस्था हो जाए, मगर तब ये निश्चित रूप से कोई अन्य मार्ग ढूंढ लेंगे। इसलिए आवश्यक है कि तस्करी पर निगरानी की बजाय तस्करों की शिनाख्त कर उनपर सीधे धावा बोला जाए।

राज्य सरकार को चाहिए कि कोई एक विशेष अभियान दल का गठन करे, जो इस सम्बन्ध में पूरी पड़ताल कर तस्करों की शिनाख्त कर उनकी धर-पकड़ का बड़ा अभियान चलाए। इस तरह के अभियान से तस्करों में क़ानून का खौफ घर करेगा। सीमा सुरक्षा बल के जवान निगरानी तो कर ही रहे हैं, इसलिए तस्करों के लिए तस्करी कुछ मुश्किल तो हुई ही है। तिसपर अगर ऐसा कोई अभियान चला दिया जाए तो उनकी बुनियाद ही चरमरा जाएगी। कुछ पकड़े जाएंगे और जो पकड़ में नहीं आएंगे, वे खौफ के मारे तस्करी की हिम्मत नहीं जुटा सकेंगे। देश की गोवंश जैसी महत्वपूर्ण पशु-सम्पदा की सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए सरकार को इन कदमों को उठाने में पीछे नहीं हटना चाहिए। आज जब देश में गोवंश के परिरक्षण के लिए केंद्र सरकार गोवध आदि पर रोक लगाने जैसे प्रयास कर रही है, ऐसे वक्त में गोवंश की इस तस्करी को रोकने के लिए असम सरकार को भी सचेत होना चाहिए। गोवंश, विशेषकर गाय इस पूरे देश के लिए केवल मानसिक श्रद्धा का विषय है, बल्कि आर्थिक तंत्र में भी उसकी महत्वपूर्ण उपयोगिता है। अतः उसके परिरक्षण के लिए हर हाल में प्रयास किया जाना चाहिए।

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