मंगलवार, 1 दिसंबर 2015

तीसरे विश्व युद्ध की आहट [दैनिक जागरण राष्ट्रीय संस्करण और दबंग दुनिया में प्रकाशित]


  • पीयूष द्विवेदी भारत 
दैनिक जागरण 
विगत दिनों तुर्की द्वारा एक रूसी विमान को कथित तौर पर अपने हवाई क्षेत्र में घुसने के कारण मार गिराया गया जिस पर रूस की तरफ से भारी नाराजगी व्यक्त करते हुए तुर्की को गंभीर परिणाम भुगतने की चेतावनी भी दी गई। रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन का यह बयान आया कि तुर्की की यह हरकत पीठ छूरा घोंपने जैसी यानी धोखेबाजी भरी है। लेकिन रूस के इतने कठोर रुख के बावजूद तुर्की की तरफ से कोई माफ़ी या खेद नहीं व्यक्त किया गया वरन तुर्की ने इस घटना के लिए रूसी विमान को ही दोषी ठहराया। तुर्की के प्रधानमंत्री ने कहा है कि जो हमारी सीमा में घुसपैठ करेगा उसे मारने का हमें पूरा हा है। तुर्की और मास्कों के बीच सैन्य टकराव का खतरा बढ़ता जा रहा है। प्राप्त सूचनाओं के अनुसार, रूस के राष्ट्रपति व्लदिमीर पुतिन ने सीरिया में रूसी वायु ठिकानों पर अत्याधुनिक वायु रक्षा मिसाइल प्रणालियों को तैनात करने के आदेश दे दिए हैं।

प्रश्न यह है कि आखिर तुर्की जैसा रूस की तुलना में अपेक्षाकृत बेहद कमजोर देश आखिर इतनी हिम्मत कहाँ से पा गया कि उसने पहले रूसी विमान को मार गिराया और फिर माफ़ी मांगने की बजाय बेहद स्वाभिमानी रुख भी अख्तियार किए हुए है। इस प्रश्न पर विचार करें तो समझ आता है कि   तुर्की के इस दुस्साहसी आचरण का स्रोत कहीं न कहीं नाटो है, अन्यथा तुर्की अकेले के दम पर रूस के विरुद्ध इतनी हिम्मत कत्तई नहीं दिखा सकता  था। ज्ञात हो कि तुर्की नाटो (नार्थ अटलांटिक ट्रिटी आर्गेनाइजेशन) का एक सदस्य देश है। नाटो के विषय में उल्लेखनीय होगा कि नाटो मुख्यतः योरोप और उत्तरी अमेरिका के अट्ठाईस देशों का एक सैन्य गठबंधन है और इसकी बड़ी विशेषता यह है कि नाटो के किसी भी सदस्य देश के खिलाफ अगर कोई जंग छेड़ता है तो वो नाटो के विरुद्ध जंग मानी जाती है। अब तुर्की नाटो का एक सदस्य देश है जबकि रूस नहीं; अतः अगर रूस तुर्की के विरुद्ध खड़ा होता है तो उसके समक्ष अकेले तुर्की नहीं बल्कि नाटो की सेना होगी। इस बात का संकेत इससे भी मिलता है कि रूस द्वारा तुर्की को चेतावनी देने के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने तुर्की के बचाव में उतरते हुए कहा कि तुर्की को अपनी सीमा की सुरक्षा का अधिकार है और रूस उसके मामलों में हस्तक्षेप से बचकर आतंक के विरुद्ध संघर्ष में अपना ध्यान केन्द्रित करे।
दबंग दुनिया 
स्पष्ट है कि तुर्की के साथ पूरी नाटो सेना है और अमेरिका जो रूस का धुर विरोधी है, तो उसके साथ पूरी तरह से खुलकर है। हालांकि रूस का पाला भी कमजोर रहने वाला नहीं है। पूरी आशा है कि नाटो से बाहर के जापान, जर्मनी, चीन आदि शक्तिशाली देश  रूस के पाले में रह सकते हैं। इस तरह स्पष्ट है कि अगर रूस और तुर्की का टकराव थमता नहीं है तो आगे चलकर उपर्युक्त प्रकार से दुनिया के दो विरोधी खेमों में बंटने का संकट पैदा हो सकता है। इस स्थिति को देखते हुए तीसरे विश्व युद्ध की दुराशंका से भी इंकार नहीं किया जा सकता। यहाँ विश्व युद्ध की संभावना व्यक्त करने का मुख्य कारण यह है कि प्रथम विश्व युद्ध हुआ, उसके  भड़कने के लिए किसी बड़े कारण की आवश्यकता नहीं पड़ी थी। प्रथम विश्वयुद्ध के समय दुनिया के देशों में एकदूसरे के लिए तरह-तरह से आक्रोश, इर्ष्या और अपने विस्तार का भाव भरा था जो कि किसी न किसी छोटी-सी तात्कालिक घटना के कारण भड़का  और फिर विश्वयुद्ध की शक्ल ले लिया। इसके लिए तत्कालीन कारण आस्ट्रिया के राजकुमार और उनकी पत्नी की हत्या रही जिसके बाद आस्ट्रिया ने सर्बिया के विरुद्ध जंग का ऐलान कर दिया। तत्पश्चात दुनिया के अन्य देश भी इन दो देशों की तरफ से खेमे में बंट गए और दो देशों के बीच की एक समस्या विश्व युद्ध की त्रासदी ले आई। हालांकि एक तथ्य यह भी है कि आज के समय में दुनिया में संयुक्त राष्ट्र के रूप में एक नियंत्रण संस्था है जिससे विश्वयुद्ध जैसी स्थिति का पैदा होना अब काफी कठिन है। कुल मिलाकर अच्छा होगा कि रूस और तुर्की इस सम्बन्ध में मिल-बठकर बातचीत के जरिये इस मसाले को सुलझाएं। तुर्की को इस सम्बन्ध में पहल करनी चाहिए और दुनिया के अमेरिका जैसे देशों को अपने रूस विरोध के स्वार्थ को त्याग कर इस सम्बन्ध में तुर्की को और भड़काने की बजाय रूस से शांतिपूर्ण ढंग से मामला सुलझाने के लिए प्रयास करना चाहिए। क्योंकि इस मामले का अधिक आगे बढ़ना आतंक के विरुद्ध वैश्विक युद्ध को तो कमजोर करेगा ही, वैश्विक शांति के लिए संकटकारी भी  होगा। 

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