- पीयूष द्विवेदी भारत
दैनिक जागरण |
इसमें संदेह नहीं कि विगत वर्ष
मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद से संप्रग शासन के दौरान काफी हद तक सुषुप्त अवस्था
में रही भारतीय विदेश नीति में न केवल एक एक नवीन ऊर्जा का संचार हुआ है, वरन इस दौरान
उसने एक के बाद एक कई ऊँचाइयाँ भी हासिल की हैं। अमेरिकी राष्टपति ओबामा के गणतंत्र
दिवस पर भारत आगमन से लेकर यमन व म्यांमार में भारतीय सेना द्वारा संचालित सैन्य अभियानों
तक तमाम ऐसी बातें हैं जो वर्तमान भारतीय विदेश नीति की सफलता को दिखाते हैं। लेकिन
बावजूद इन सब सफलताओं के पाकिस्तान अब भी भारतीय विदेश नीति के लिए यक्ष-प्रश्न ही
बना हुआ है। ऐसा नहीं दिखता कि अपने शासन के एक वर्ष से अधिक समय के बाद भी मोदी सरकार
पाकिस्तान को लेकर कोई ठोस व स्थायी नीति निर्धारित कर सकी हो। वरन पाकिस्तान के सम्बन्ध
में सरकार की गतिविधियाँ तो यही संकेत दे रही हैं कि ये सरकार भी पिछली सरकार की तरह
ही पाकिस्तान को लेकर नीतिहीनता या नीतिभ्रमता का शिकार है। पिछली सरकार की तरह ही
अब भी पाकिस्तान के प्रति भारत की वही पुरानी घिसी-पिटी और लगातार विफल सिद्ध हो चुकी
रूठने-मनाने की नीति चल रही है। जबसे ये सरकार सत्ता में आई है तबसे यही रूठना-मनाना
हो रहा है। गौरतलब है कि कुछ समय तक रूठे रहने के बाद अब फिर भारतीय विदेशमंत्री सुषमा
स्वराज पाकिस्तान पहुँच गई हैं। बेशक कहा जा रहा हो कि ये दौरा हार्ट ऑफ़ एशिया कॉन्फ्रेंस
में हिस्सा लेने के लिए है, लेकिन इसका सिर्फ इतना ही अर्थ नहीं।
उल्लेखनीय होगा कि इस दौरान पाक पीएम नवाज़ शरीफ से भी उनकी मुलाकात होगी। साथ ही,
पाकिस्तान के साथ क्रिकेट बहाली के सम्बन्ध में भी विचार होने लगा है।
सुषमा की इस पाकिस्तान यात्रा की भूमिका
कहीं न कहीं प्रधानमंत्री मोदी के पेरिस दौरे पर हुई नवाज़ शरीफ से उनकी अनाधिकारिक
मुलाकात के दौरान ही बन गई थी। इससे पहले पाकिस्तान से बातचीत आदि पर मोदी सरकार ने
तब विराम लगाया जब भारत में पाकिस्तानी उच्चायुक्त अब्दुल बासित द्वारा कश्मीरी अलगाववादियों
को दिल्ली में मिलने के लिए बुलाया गया। इसके बाद से ठप्प पड़े भारत-पाक संबंधों पर
अभी पिछले महीने ही मोदी सरकार की विदेशमंत्री सुषमा स्वराज ने कहा था कि जब तक पाकिस्तान
मुंबई हमले के दोषी लखवी पर कार्रवाई नहीं करता तबतक उससे कोई बातचीत नहीं होगी। लेकिन
इस बयान के एक महीना बीतते-बीतते ही भारतीय प्रधानमंत्री मोदी रूस के उफ़ा में खुद पहल
करके पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ से न केवल मिल लिए, वरन भविष्य
में भारत-पाक के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों की बातचीत भी तय कर आए। अब जब प्रधानमंत्री
मोदी उफ़ा में पाकिस्तान से ये सम्बन्ध बहाली कर रहे थे, उसी वक़्त
दूसरी तरफ सीमा पर पाकिस्तान द्वारा किए गए सीजफायर के उल्लंघन में भारतीय जवान ने
अपनी जान गँवा दी। तिसपर मोदी और नवाज की मुलाकात में पाकिस्तान द्वारा लखवी की आवाज
के नमूने भारत को सौंपने के वादे से भी अब पाकिस्तान मुकर गया। अब भी सुषमा स्वराज
पाकिस्तान दौरे पर गई हैं और दूसरी तरफ आई एस आई के मुखबिर भारत में पकड़े गए हैं। सीजफायर
उल्लंघन की घटनाएं भी चल ही रही हैं। ऐसे में प्रश्न यह उठता है कि आखिर कौन सी मजबूरी
आन पड़ी है कि पाकिस्तान की इन सब हरकतों के बावजूद सुषमा स्वराज को पाकिस्तान के हार्ट
ऑफ़ एशिया कांफ्रेंस में जाना पड़ा ? पाकिस्तान
के प्रति अपने ऐसे अस्थिर रुख के के जरिये आखिर हम दुनिया या पाकिस्तान को क्या सन्देश
देना चाहते हैं ?
राज एक्सप्रेस |
बहरहाल, उपर्युक्त
समस्त घटनाक्रमों को देखने पर स्पष्ट होता है कि पाकिस्तान को लेकर मोदी सरकार के पास
भी पूर्ववर्ती संप्रग सरकार की तरह ही कोई भी ठोस नीति नहीं है। पाक को लेकर किसी ठोस
नीति का न होना एक प्रमुख कारण रहा है कि पाकिस्तान भारत की बातों को कभी संजीदा नहीं
लेता है। दरअसल उसे लगता है कि भारत केवल शब्दों में नाराजगी जता सकता है, और कुछ
नहीं कर सकता। गौर करें तो भारत-पाक के बीच जब-जब भी सम्बन्ध बहाली के लिए बातचीत आदि
शुरू हुई है उसमे अधिकाधिक बार पहल भारत की तरफ से ही की गई है। भारत-पाक प्रधानमंत्रियों
की उफ़ा में हुई पिछली मुलाकात को देखें तो इसकी पहल भी भारत की तरफ से ही की गई। यह
सही है कि भारत की तरफ से सम्बन्ध बहाली की ये पहलें शांति और सौहार्द कायम रखने के
लिए होती हैं। लेकिन भारत की ऐसी पहलें इतने लम्बे समय से विफल होती आ रही हैं कि अब
ये सिर्फ अपनी किरकिरी कराने वाली लगती है। दूसरी बात कि भारत ने पाकिस्तान को लम्बे
समय से अपने प्रमुख सहयोगी राष्ट्र (एम् एफ एन) का दर्जा दे रखा है जबकि पाकिस्तान
ने भारत को अबतक ऐसा कोई दर्जा नहीं दिया है। वरन भारत की इन पहलों का पाकिस्तान यह
अर्थ निकाल लिया है कि भारत को उसकी जरूरत है इसीलिए बार-बार दुत्कार खाकर भी उससे
दोस्ती के लिए हाथ बढ़ाता रहता है। कहीं न कहीं इसी कारण वो भारत को बेहद हलके में लेता
है और भारत की बातों को कत्तई गंभीरता से नहीं लेता। उदाहरणार्थ २६/११ के दोषियों पर
भारत के लाख कहने पर भी आजतक पाकिस्तान द्वारा कार्रवाई नहीं की गई है।हमारे नेताओं
की तरफ से प्रायः ये तर्क दिया जाता है कि भारत एक जिम्मेदार राष्ट्र है, इसलिए वो पाकिस्तान की तरह हर बात पर बन्दूक उठाए
नही चल सकता। अब नेताओं को ये कौन समझाए कि निश्चित ही भारत एक जिम्मेदार राष्ट्र है
और इसी नाते उसकी ये जिम्मेदारी भी बनती है कि वो अपनी संप्रभुता और अखंडता को अक्षुण्ण
रखे।
उचित तो यही होगा कि भारत अब दोस्ती
की पहल करने और पाकिस्तान को अधिक महत्व देने जैसी चीजों को पूरी तरह से तिलांजलि दे।
वक़्त की जरूरत यह है कि सरकार पाकिस्तान को लेकर कोई एक ठोस नीति बनाए। वो नीति चाहें
जो भी हो, पर उसमे भारत के राष्ट्रीय हित प्रमुख होने
चाहिए। साथ ही,
पाकिस्तान के प्रति कठोर रुख अपनाए तथा वैश्विक स्तर पर उसके आतंकवाद
पर दोहरे रवैये को अपनी कूटनीति का आधार बनाए। और एमएफएन जैसे पाकिस्तान को महत्व देने
वाली चीजों को भी तुरंत ख़त्म किया जाना चाहिए। और जहाँ तक खेल-कूद व अन्य सांस्कृतिक
चीजों की बात है तो उनके सम्बन्ध में भी कोई एक नीति तय करने की आवश्यकता है। ये नहीं कि कभी क्रिकेट खेलने लगे तो कभी विराम लगा
दिए। इन सब नीतियों के बाद कुल मिलाकर तात्पर्य
यह है कि भारत पाकिस्तान को राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जितना कम से कम महत्व
देगा, पाकिस्तान की अक्ल उतनी ही जल्दी ठिकाने आएगी।
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