|
नेशनल दुनिया |
इसे इस देश की
सियासत की क्रूर व्यापकता कहें या हमारे सियासतदारों की संवेदनहीनता कि यहाँ भूखे आदमी की रोटी से लेकर मुर्दा आदमी
के कफ़न तक कहीं भी सियासत शुरू हो जाती है। जहाँ कहीं भी वोटों की गुंजाइश दिखी
नहीं कि हमारे सियासतदां मांस के टुकड़े पर गिद्धों के झुण्ड की तरह टूट पड़ते हैं।
ताज़ा मामला दादरी का है। विगत दिनों उत्तर प्रदेश के दादरी में एक भीड़ जिसे समुदाय
विशेष की कहा जा रहा है, द्वारा कथित तौर पर गोमांस खाने के लिए ५० वर्षीय व्यक्ति
इखलाक की हत्या का मामला सामने आया। एक नज़र में यह यूँ तो एक बड़े प्रदेश के एक
छोटे-से जिले का एक हत्या का मामला भर था, लेकिन दो-एक दिनों में बड़े ही
अप्रत्याशित ढंग से यह राष्ट्रीय पटल पर छा गया। प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश
यादव से पीड़ित परिवार ने मुलाकात की जिसके बाद उन्होंने तुरंत ही न केवल दोषियों
को पकडकर कड़ी से कड़ी सजा दिलाने का भरोसा दिलाया, वरन पीड़ित परिवार को कुल मिलाकर
४५ लाख रूपये की आर्थिक सहायता का ऐलान भी कर दिए। अब यह आर्थिक सहायता किस आधार
पर दी जा रही है, इसपर उन्होंने कुछ नहीं कहा। अब यह न तो किसी प्राकृतिक आपदा का
मामला है, न किसी दुर्घटना का और न ही
किसी सामूहिक दंगा-फसाद का; यह तो सीधा-सीधा एक हत्या का मामला है। लिहाजा इसमें
मुआवजा या आर्थिक सहायता देने का कोई प्रावधान तो नहीं बनता है। पीड़ित परिवार को
सहायता देना कत्तई गलत नहीं है, लेकिन मुख्यमंत्री महोदय को स्पष्ट करना चाहिए कि
आखिर किस एवज में उन्होंने इस आर्थिक सहायता का ऐलान किया है। उन्हें बताना चाहिए
कि क्या प्रदेश में अब हत्या होने पर भी आर्थिक सहायता देने की व्यवस्था शुरू कर
दी गई है ? या इस मामले को वे हत्या से इतर कुछ और मानते हैं ? अब यह तो नहीं कहा
जा सकता कि यूपी सरकार संवेदनशील होने के कारण यह सहायता दे रही है, क्योंकि
मणिपुर उग्रवादी हमले में शहीद हुए जवान जगवीर सिंह के मामले में इस सरकार की
संवेदनशीलता की हकीकत सामने आ चुकी है। सबने देखा है कि कैसे उस मामले में शहीद के
परिवारजनों को सहायतास्वरुप महज २० लाख रूपये और कुछ ज़मीन देना इसी अखिलेश सरकार
को इतना भारी पड़ रहा था कि उनके परिवार को शहीद के शव की अंत्येष्टि रोककर अपना
विरोध तक प्रदर्शित करना पड़ा, तब कहीं जाकर ये सरकार मानी थी। समझना कठिन नहीं है
कि इखलाक के परिवार को मिलने वाली ये बे-बात सहायता सिर्फ और सिर्फ राजनीति है,
इससे अधिक कुछ नहीं।
|
दैनिक जागरण |
बहरहाल, मामला मुख्यमंत्री के संवेदनशील होने और प्रदेश
के नेताओं तक ही सीमित नहीं रहा, वरन जल्दी-ही राष्ट्रीय स्तर के बड़े-बड़े नेता भी दादरी
पहुंचकर पीड़ित परिवार के प्रति संवेदना जताने लगे। भाजपा नेता और केन्द्रीय मंत्री
महेश शर्मा, कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी, एआईएमआईएम अध्यक्ष असद्दुदीन ओव्वैसी,
आप संयोजक अरविन्द केजरीवाल जैसे राष्ट्रीय पटल के नेता दादरी पहुंचकर पीड़ित परिवार के प्रति संवेदन जताते हुए अपनी-अपनी राजनीतिक
भाषा में इस मामले का विश्लेषण करने लगे। भाजपा नेता महेश शर्मा इस मामले को
गलतफहमी में हुआ एक हादसा बता दिए और यह भी कि इसपर किसको राजनीति नहीं करने देंगे।
उन्होंने यह भी कहा कि पीड़ित परिवार की रक्षा हिन्दू परिवार ही करेंगे। इन बातों
पर राजनीतिक गलियारे में उनपर काफी निशाने साधे गए; यहाँ तक कि सपा नेता शिवपाल
यादव ने तो इस हत्या को भाजपा और आरएसएस की साज़िश तक बता डाला, लेकिन महेश शर्मा
अपने बयान पर कायम रहे। दरअसल, यह मामला एक अल्पसंख्यक समुदाय के व्यक्ति की हत्या
का है, जिसमे कि देश के बहुसंख्यक समुदाय जो भाजपा की राजनीति का आधार रहा है, के
लोगों को आरोपी माना जा रहा है। इसलिए
भाजपा नेता महेश शर्मा को ऐसा बयान देना था कि सब संतुष्ट हो जाएं। संभवतः ऐसा
करने के लिए उन्हें ऊपर से अनुमति हो, सो इससे पीछे हटने का कोई प्रश्न ही नहीं है।
ऐसे ही एक दूसरे धुरंधर असद्दुदीन ओवैसी साहब ने महेश शर्मा से पहले ही दादरी
पहुंचकर अपनी राजनीतिक रोटियाँ सेंकने के लिए अपने बयानों के जरिये आग लगाने की कवायद शुरू कर दी।
उन्होंने विभिन्न प्रकार से इसे धार्मिक रंग देने की कोशिश की तथा कहा कि यह कोई
हादसा नहीं, सोची-समझी रणनीति के तहत कराई गयी हत्या है। साथ ही उन्होंने
प्रधानमंत्री द्वारा इस मामले पर कुछ न कहने के लिए प्रधानमंत्री पर भी निशाना
साधा। हालांकि उनसे यह पूछा जाना चाहिए था कि प्रधानमंत्री इस मामले में क्या
बोलते, जब उनकी पार्टी द्वारा इस मामले पर अपना पक्ष रखा ही जा चुका है। रही बात
पीड़ित परिवार की सहायता की तो वो प्रदेश सरकार कर ही रही है। लेकिन इन सबसे ओवैसी
महोदय को क्या मतलब, उन्हें तो अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकने के लिए माहौल बनाना
था जिसके लिए ये सब बोलना आवश्यक था। तो कुल मिलाकर तस्वीर यह है कि फिलवक्त दादरी
देश की राजनीति के केंद्र में घूम रही है और प्रदेश की राजनीति से सम्बद्ध लगभग हर
राजनीतिक दल अपने राजनीतिक प्रपंचों के साथ वहां अपने दाँव-पेंच भिड़ाने में लगा है।
अब राजनेता हैं तो मीडिया का होना भी स्वाभाविक ही है, लिहाजा परिणाम यह हो रहा है
कि इखलाक की मौत से दुःख में डूबा उनका परिवार अब घर के बाहर नेताओं और मीडिया के
जमावड़े से परेशान हो चुका है तथा इन सबसे अलग शोक के क्षणों में शांति चाहता है।
यहाँ तक कि गाँव की महिलाएं कई दफे वहां से मीडिया वालों को खदेड़ भी चुकी हैं।
लेकिन फिर कोई न कोई नेता अपना लाव-लश्कर
लेकर वहां पहुंचेगा और फिर पीछे-पीछे मीडिया के कैमरे में भी। देश जाने कितने बार
अपने राजनेताओं की संवेदनशीलता के पाखण्ड की ऐसी क्रूर तस्वीरें देख चुका है। देश
ने देखा है कि ऐसे मामलों में निरपवाद रूप से हमारे सियासतदां अपना लाव-लश्कर लेकर
पहुँचते हैं, चार आंसू बहाते हैं और अपने विरोधियों को जी भरकर कोसते हैं तथा चले
आते हैं। इससे अधिक उनका पीड़ित परिवार से कोई साबका नहीं होता। यह इस एक मामले में
नहीं हो रहा है, अक्सर इस देश में मौत पर राजनीति ऐसे ही होती आई है। इस तस्वीर को
देखते हुए कहना गलत नहीं होगा कि यह इस देश की राजनीति में संवेदनशीलता के पतन का
दौर है जो कि शर्मसार तो करता है, पर जिसके खात्मे की फिलहाल कोई संभावना नहीं
दिखती।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें