- पीयूष द्विवेदी भारत
नेशनल दुनिया |
विगत दिनों प्रधानमंत्री मोदी अपने अमेरिका
दौरे के दौरान सोशल साईट फेसबुक के मुख्यालय पहुंचकर फेसबुक के सीईओ मार्क
जुकरबर्ग से मुलाकात किए। इस मुलाकात के बाद फेसबुक सीईओ मार्क जुकरबर्ग और पीएम
मोदी ने डिजिटल इण्डिया के समर्थन में अपना प्रोफाइल चित्र तिरंगे के रंग में कर
दिया जिसके बाद तो फेसबुक उपयोगकर्ताओं के बीच प्रोफाइल चित्र तिरंगे सा करने की
होड़ सी मच गई। अधिकाधिक लोगों ने उसी अंदाज में अपने प्रोफाइल चित्र कर दिए। वहीँ
ट्विटर की स्थिति यह रही कि वहां भारत में डिजिटल इण्डिया नंबर एक और मोदी एट
फेसबुक नंबर दो पर ट्रेंड करने लगा। कुल मिलाकर स्पष्ट है कि न केवल यह मुलाकात
सोशल साइट्स पर पूरी तरह से छाई रही वरन इसके जरिये प्रधानमंत्री के डिजिटल
इण्डिया अभियान को भी अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ख़ासा चर्चा मिली। अब प्रश्न यह है कि
डिजिटल इण्डिया को चर्चा तो मिल रही है, लेकिन इसके क्रियान्वयन के लिए देश कितना
तैयार है ? इसी संदर्भ में उल्लेखनीय होगा कि अभी हाल ही में देश के जन-जन को
सूचना प्रोद्योगिकी से जोड़ने और अमीर-गरीब के बीच कायम तकनीक के फासले को ख़त्म
करने के उद्देश्य से विगत २ जुलाई को देश के शीर्ष उद्योगपतियों समेत हजारों लोगों
की मौजूदगी में प्रधानमंत्री मोदी द्वारा अपनी महत्वाकांक्षी योजना डिजिटल इण्डिया
का आगाज किया गया था। इसके आगाज़ के बाद से एक सप्ताह तक पूरे देश में डिजिटल
इण्डिया सप्ताह भी मनाया गया, जिसके तहत देश भर में इससे सम्बंधित कार्यक्रम आयोजित हुए।
फ़िलहाल
इस योजना के तहत लगभग दर्जन भर आईटी सम्बन्धी सेवाओं की शुरुआत की गई है जिनको देश
भर में पहुंचाने का लक्ष्य रखा गया है। इनमे चार मोबाइल गवर्नेंस से सम्बन्धी
सेवाएं भी शामिल हैं,
जिनमे प्रमुखतः मोबाइल के जरिये ही अपनी पहचान को सत्यापित कराना भी
शामिल है। इस योजना में निवेश के लिए देश के उद्योगपतियों की तरफ से अपनी
तिजोरियां खोल दी गईं है और कुल मिलाकर इस योजना में ४।५ लाख करोड़ के निवेश की
घोषणा हो चुकी है। इन बातों को देखते हुए दो चीजें तो एकदम स्पष्ट होती हैं - पहली,
सरकार की यह योजना काफी अच्छी और भारतीय ग्रामीण क्षेत्रों के लिए
विशेष तौर पर लाभकारी है एवं दूसरी कि उद्योगपतियों द्वारा निवेश के ऐलान के बाद
फ़िलहाल इसके लिए पैसे की भी कोई दिक्कत नहीं है। अब प्रश्न यह है कि इतनी
सहूलियतों के बावजूद डिजिटल इण्डिया कार्यक्रम कठिन क्यों लग रहा है ? इस प्रश्न का उत्तर यह है कि योजना और पैसे से किसी काम को शुरू तो किया
जा सकता है, पर वो होगा तभी जब उसे किया जाएगा। और जब काम को
किया जाता है तो उसकी राह में छोटी-बड़ी अनेक व्यावाहारिक कठिनाइयाँ सामने आती हैं। इन्फॉर्मेशन एंड टेक्नोलॉजी डेवलपमेंट इंडेक्स के अनुसार इंटरनेट
कनेक्टिविटी, साक्षरता और बैंडविड्थ जैसे मामलों में १६६ देशों की लिस्ट में भारत का स्थान १२९वां है। इस मामले में भारत मालदीव, मंगोलिया, केन्या, कजाख्स्तान आदि देशों जिनकी आर्थिक स्थिति भारत की तुलना में कत्तई अच्छी नहीं है,
से भी पीछे है। आज के वक्त में देश की करीब १५% आबादी इंटरनेट का इस्तेमाल कर रही है, जबकि चीन में ४४% आबादी इंटरनेट का उपयोग करती है। इस रिपोर्ट के बाद अगर हम देखें तो डिजिटल इण्डिया कार्यक्रम को सरकार गांव-गांव तक पहुँचाने का लक्ष्य
निर्धारित की है। इसके तहत देश के लगभग ढाई लाख गांवों को इंटरनेट से जोड़ने की
योजना है, जबकि फिलवक्त भारतीय गांवों की स्थिति यह है कि
निरपवाद रूप से वे इंटरनेट से नाम मात्र के लिए ही जुड़े हैं। ग्रामीण क्षेत्रों
में मोबाइल के जरिये आज की पीढ़ी के अधिकांश लड़के कौतूहलवश कुछ सोशल साइट्स का
भ्रमण अवश्य कर ले रहे हैं, मगर उसे उनके इंटरनेट ज्ञान के
रूप में देखते हुए यह समझ लेना कि वे ई-गवर्नेंस से
जुड़ेंगे, बेहद जल्दबाजी और भ्रमपूर्ण निर्णय होगा। उपर्युक्त
रिपोर्ट में ही स्पष्ट है कि देश की इंटरनेट साक्षरता बेहद ख़राब है। इसके अलावा
समुचित नेटवर्क व्यवस्था के अभाव में देश के अधिकाधिक ग्रामीण क्षेत्रों में
इंटरनेट स्पीड भी बेहद स्लो हो जाती है। ग्रामीण क्षेत्रों में स्पीड की हालत यह
है कि पचास-सौ केबी का एक पेज खुलने में ही कई मिनटों का समय लग जाता है। स्पष्ट है कि ग्रामीण क्षेत्रों में इंटरनेट ज्ञान और
स्पीड दोनों का अभाव है, जिसको दूर किए बिना देश के गांवों
को ई-गवर्नेंस से जोड़ने की सोचना दिवास्वप्न
देखने जैसा है। वैसे इंटरनेट स्पीड के मामले में तो पूरा देश ही अभी बहुत अच्छी
स्थिति में नहीं है, इसका प्रमाण क्लाउड
कम्यूटिंग फर्म एकमाई टेक्नोलॉजी की एक ताज़ा रिपोर्ट है, जिसके
मुताबिक भारत में मिलने वाली इंटरनेट की औसत
स्पीड भी इसे दुनिया की सबसे धीमी स्पीड में शुमार करती है। रिपोर्ट के मुताबिक नेट स्पीड के मामले में भारत की स्थिति इतनी बदतर है कि वह छोटे-छोटे गुमनाम देशों से
पिछड़ा हुआ है। रिपोर्ट के ही अनुसार, अगर पूरी दुनिया के इंटरनेट की औसत स्पीड निकाली जाए तो वह १०।६ एमबीपीएस होती है। यह भी भारत की पिछली
तिमाही की इंटरनेट स्पीड से २७ प्रतिशत तेज है। मोटे तौर पर कहें तो अभी भारत में ४जी भी ठीक से नहीं आ
सका और दुनिया के बहुतायत देश ५जी और १०जी तक पहुँच चुके हैं। तिसपर विडम्बना तो
यह है कि यहाँ इस स्लो स्पीड इंटरनेट के लिए भी लोगों को भारी कीमत चुकानी पड़ती
है। अतः चुनौती यह भी है कि स्वीकार्य मूल्य में हाई स्पीड इंटरनेट उपलब्ध कराया
जाय।
उपर्युक्त
तथ्यों को देखते हुए यह स्पष्ट होता है कि सरकार का डिजिटल इण्डिया का सपना तभी
साकार हो सकता है, जब कि उपर्युक्त समस्याओं से पार पाया
जाय। दिक्कत यह है कि इन समस्याओं को एक दिन में या किसी जादुई छड़ी को घुमाकर नहीं
ख़त्म किया जा सकता है। अगर इनको ख़त्म करने के लिए ठीक ढंग से प्रयास हों तो इनसे
धीरे-धीरे अवश्य निजात मिल सकेगी। जैसे कि देश में इंटरनेट साक्षरता को बढ़ाने के
लिए ग्रामीण क्षेत्रों में इस सम्बन्ध छोटे-छोटे अस्थायी केंद्र व कार्यशालाओं का
आयोजन सरकार को करवाना चाहिए जिसके जरिये ग्रामीण लोगों, खासकर
युवाओं को यह समझाया जा सके कि इंटरनेट का अर्थ सिर्फ सोशल साइट्स व गाने वगैरह की
डाउनलोडिंग ही नहीं है, वरन इसके जरिये वे अपने तमाम काम जिनको करने में काफी समय और श्रम लगता है, घर बैठे चुटकियों में कर सकते हैं। साथ ही, सस्ते और
हाई स्पीड इंटरनेट को गांवों में पहुंचाने के लिए भी वैज्ञानिक स्तर पर प्रयास किए
जाने की जरूरत है। इस दिशा में इसरो द्वारा किया जा रहा ‘गगन’
नामक उपग्रह का निर्माण कार्य उल्लेखनीय है, जिसके
अगले वर्ष प्रक्षेपित होने की सम्भावना है। इस उपग्रह का सफल प्रक्षेपण और स्थापन
होने की स्थिति में देश में इंटरनेट स्पीड में सुधार की संभावना व्यक्त की जा रही
है। अंततः कुल मिलाकर इतना कहेंगे कि मोदी सरकार का डिजिटल इण्डिया मिशन है तो
बहुत ही अच्छा और प्रधानमंत्री इसकी ‘ब्रांडिंग’ भी बेहद उम्दा ढंग से कर रहे हैं,
मगर यदि सरकार इसको वाकई में उतने ही उम्दा ढंग से जमीन पर भी
उतारना चाहती है तो उसे उपर्युक्त बातों या चुनौतियों को ध्यान में रखकर चलना
होगा। क्योंकि इन चुनौतियों से पार पाए बिना ‘इण्डिया’
सिर्फ कागजों में ही ‘डिजिटल’ हो सकती है, वास्तव में नहीं।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें