सोमवार, 5 अक्तूबर 2020

फिल्म सिटी की सफलता से जुड़े सवाल

  • पीयूष द्विवेदी भारत

गत दिनों उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने राज्य में विश्वस्तरीय फिल्म सिटी बनाने की घोषणा की थी और अब सरकार इस दिशा में तेजी से बढ़ती हुई भी नजर आ रही है। नोएडा में एक हजार एकड़ में यह फिल्म सिटी बननी निश्चित हुई है। प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ स्वयं इस परियोजना में विशेष रुचि ले रहे हैं, जिसका अंदाजा इस सम्बन्ध में उनके द्वारा की गयी बैठकों से लगाया जा सकता है। अपने अधिकारियों के साथ तो वे बैठक कर ही रहे, पिछले दिनों फिल्म जगत के कई दिग्गज कलाकारों के साथ भी उन्होंने इस परियोजना को लेकर चर्चा बैठक की थी। फिल्म सिटी के लिए विश्वस्तरीय सलाहकार कंपनी का चयन करने के लिए निविदा जारी करने पर भी चर्चा चल रही है। ख़बरों के मुताबिक़, मुख्यमंत्री योगी चाहते हैं कि यथाशीघ्र इसकी औपचारिकताएं पूरी कर फिल्म सिटी के निर्माण का काम शुरू कर दिया जाए।

दरअसल यूपी में फिल्म सिटी बनाने की बात दो हजार के दशक से ही हो रही है। 1993 में यह बात उठी लेकिन हुआ कुछ नहीं। इसी प्रकार अखिलेश सरकार के कार्यकाल में भी फिल्म सिटी का विषय आया था, लेकिन कुछ भी ठोस रूप में आकार नहीं ले सका। राज्य की फिल्म नीति में फिल्म सिटी की घोषणा मिलती है। अब योगी सरकार की सक्रियता देखकर उम्मीद जगती है कि शायद अबकी यह घोषणा सिर्फ घोषणा बनकर ही न रहे। यूँ तो अभी यूपी में फिल्म सिटी का काम प्राथमिक चरण में ही है, लेकिन एकबार के लिए यदि मान लें कि सरकार की सक्रियता से राज्य में फिल्म सिटी बनकर खड़ी हो जाएगी तो भी ऐसी कई बातें हैं, जिनपर काम किए बिना फिल्म सिटी के बहुत सफल होने की संभावना नहीं है।

दैनिक जागरण
दरअसल किसी भी फिल्म के निर्माण अभिनेता-अभिनेत्री से बड़ी भूमिका परदे के पीछे काम करने वाले तकनीशियनों की होती है। अब उत्तर प्रदेश ने फिल्म जगत को कलाकार तो खूब दिए हैं और अब भी दे ही रहा है, लेकिन फिल्म निर्माण के अन्य पक्षों से सम्बंधित प्रतिभाएं राज्य में पर्याप्त विकसित नहीं हो पाई हैं। कारण कि यहाँ उसके लिए आवश्यक व्यवस्था ही नहीं है। फिल्म निर्माण में छायांकन, संपादन जैसी चीजें महत्वपूर्ण होती हैं। आज के समय में लगभग हर फिल्म के लिए वीएफएक्स का काम भी आवश्यक हो चुका है। उत्तर प्रदेश में फिल्म निर्माण की इन जरूरतों को लेकर अभी तक कोई ठोस तैयारी नजर नहीं आती। फिल्म निर्माण से सम्बंधित इन तकनीकी विषयों के शिक्षण-प्रशिक्षण की कोई पुख्ता व्यवस्था अभी राज्य में विकसित नहीं हो पाई है। ऐसे में, केवल फिल्म सिटी का ढांचा खड़ा हो जाने से फिल्म निर्माण के वातावरण का निर्मित होना संभव नहीं है

उत्तर प्रदेश में 1999 में फिल्म नीति की घोषणा की गयी थी, जिसमें वर्तमान सरकार ने हाल ही में कुछ संशोधन कर नयी नीति जारी की है। इस फिल्म नीति का उद्देश्य ‘उत्तर प्रदेश में फिल्म उद्योग के समग्र विकास हेतु एक सुसंगठित ढांचा और एवं उपयुक्त वातावरण उपलब्ध कराना’ निर्धारित किया गया है। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए राज्य सरकार ने ‘उप्र फिल्म बंधु’ का गठन किया है, जिसका दायित्व फिल्म-निर्माण के लिए उपयुक्त वातावरण सृजित कर, फिल्म संबधी गतिविधियों को बढ़ावा देकर प्रदेश को फिल्म निर्माण के हब के रुप में विकसित करना है। इसके अलावा नयी फिल्म नीति में राज्य में फिल्म प्रशिक्षण की व्यवस्था से लेकर स्टूडियो-लैब जैसी व्यवस्थाएं स्थापित करने की बात भी कही गयी है, लेकिन धरातल पर यह चीजें कब उतरेंगी, कहा नहीं जा सकता। फिलहाल होता केवल ये दिख रहा है कि कम बजट वाली फिल्मों के निर्माता यूपी में शूटिंग कर राज्य सरकार से सब्सिडी बटोरने में लगे हैं। इस साल की शुरुआत में ही फिल्म विकास परिषद और यूपी फिल्म बंधु द्वारा हिंदी-भोजपुरी की बाईस फिल्मों को ग्यारह करोड़ की सब्सिडी आवंटित की गयी है। फिल्म निर्माता-निर्देशक फिल्मों की कुछ शूटिंग यूपी में करते हैं, सब्सिडी लेते हैं और फिर ‘पोस्ट प्रोडक्शन’ का काम मुंबई में करवाने निकल जाते हैं, क्योंकि राज्य में इसके लिए जरूरी व्यवस्था अभी नहीं बन पाई है। ऐसे में राज्य को शूटिंग का कोई लाभ नहीं मिल पाता।  

उक्त तथ्यों से दो बातें साफ़ होती हैं। एक कि राज्य में फिल्म निर्माण के लिए जरूरी वातावरण अभी नहीं है और दूसरी कि इस वातावरण को तैयार करने से सम्बंधित लगभग सभी बातें राज्य की फिल्म नीति में सम्मिलित हैं। यानी कि यदि फिल्म नीति का समुचित क्रियान्वयन हो जाए तो उत्तर प्रदेश फिल्म निर्माण की भरपूर संभावनाओं से युक्त हो सकता है। फिल्म नीति के क्रियान्वयन का काम मुख्यमंत्री नहीं देख सकते। इसके लिए फिल्म विकास परिषद् की स्थापना की गयी है। लेकिन राज्य की फिल्म विकास परिषद् का अध्यक्ष पद राजनीतिक रेवड़ी के रूप में बंटता आया है। सपा सरकार में अमर सिंह के दबाव में जया प्रदा को इसका उपाध्यक्ष बनाया गया था। फिलहाल इसके अध्यक्ष स्टैंडअप कॉमेडियन राजू श्रीवास्तव हैं। राजू उम्दा हास्य कलाकार हैं, लेकिन यह प्रतिभा उन्हें इस महत्वपूर्ण पद के लिए योग्य नहीं बनाती। जरूरत है कि इस पद पर फिल्म जगत की आवश्यकताओं की गंभीर समझ रखने वाले किसी अनुभवी व्यक्ति को होना चाहिए, ताकि राज्य की फिल्म नीति को सही ढंग से धरातल पर उतारने में यह परिषद् अपनी भूमिका का समुचित निर्वहन कर सके। अतः फिल्म सिटी निर्माण के समानांतर योगी सरकार को इन बिंदुओं पर भी काम करने की आवश्यकता है। ऐसा होने की स्थिति में, जबतक फिल्म सिटी बनकर तैयार होगी तबतक राज्य में फिल्म निर्माण के लिए जरूरी आधार और वातावरण भी तैयार हो चुका होगा। निश्चित रूप से इसका लाभ उत्तर प्रदेश को मिलेगा।

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