बुधवार, 4 अक्तूबर 2017

सेकुलर निशाने पर 'महामना का मंदिर' [पांचजन्य में प्रकाशित]

  • पीयूष द्विवेदी भारत
काशी हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) अपनी शैक्षणिक गतिविधियों और भारतीय संस्कृति के संवर्द्धन के लिए पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है। शायद यही बात सेकुलर मीडिया में बैठे वामपंथियों और सेकुलरों को पसंद नहीं है। इसलिए ये लोग एक कथित छेड़छाड़ के मामले को लेकर पिछले कुछ दिनों से बीएचयू और उसके कुलपति के विरुद्ध गलत खबरें चला रहे हैं। इसके अनेक उदाहरण हैं। इस समाचार को जब लिखा जा रहा था तब एक चैनल खबर चला रहा था कि बीएचयू के कुलपति प्रो. गिरीश चंद्र त्रिपाठी को जबरन छुट्टी पर भेजा गया। वहीं सोशल मीडिया पर यह खबर भी चली कि कुलपति से सारे अधिकार छीन   लिए गए हैं।
 
इन खबरों के बारे में जब विश्वविद्यालय के प्रवक्ता डॉ. राजेश सिंह से पूछा तो उन्होंने कहा कि ये सारी खबरें फर्जी हैं। कुछ सत्ता विरोधी तत्व विश्वविद्यालय को घृणित राजनीतिक हथकंडों का अखाड़ा बनाना चाहते हैं। ये तत्व सोशल मीडिया पर गलत समाचार फैला रहे हैं और चैनल तथा वेबसाइट वाले सोशल मीडिया से ही खबरें लेकर चला रहे हैं। तो यह है इनका हाल। इसलिए पिछले दिनों बीएचयू में जो हंगामा हुआ और जिस तरह से उसकी खबरें चलाई गर्इं, उसके    पीछे की मंशा को समझना कोई मुश्किल   काम नहीं है।
 
पांचजन्य
कहा गया कि पीड़ित लड़की की बात को विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा गंभीरता से नहीं लिया गया। मगर, ये सब बातें सिर्फ कहे-सुने पर आधारित थीं, इनमें से किसी बात का कोई ठोस प्रमाण नहीं है। यहां तक कि पीड़ित लड़की द्वारा छेड़छाड़ के आरोपी लड़कों तक की भी शिनाख्त नहीं हो सकी है। लेकिन बिना जांच-पड़ताल और तथ्यों के परीक्षण के ही सुनी-सुनाई बातों के आधार पर  ऐसा हंगामा खड़ा किया गया जैसे कि देश के किसी विश्वविद्यालय में पहली बार इस तरह का कोई मामला सामने आया हो। खाली बैठे विपक्ष को भी अवसर मिल गया और विश्वविद्यालय के इस प्रकरण को आधार बनाकर अनर्गल ढंग से सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निशाना साधा गया। इसमें सेकुलर मीडिया से जुड़े लोगों और कुछ तथाकथित बुद्धिजीवियों का हाथ रहा। जेएनयू की पूर्व छात्रा ममता बीएचयू प्रकरण पर कहती हैं, ‘‘ये वही लोग हैं जो जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के ‘अनमोल रत्नों’ के बलात्कारी कारनामों, हिमाचल प्रदेश के जघन्य बलात्कार काण्ड, हैदराबाद में काजियों द्वारा शेखों को लड़कियां बेचे जाने आदि मामलों पर खामोशी की चादर ओढ़े रहते हैं, लेकिन बीएचयू में कथित तौर पर छेड़छाड़ की बात सामने क्या आ गई, पूरा आसमान ही सिर पर उठा लिया।’’
 
इस मामले में बीएचयू के कुछ छात्रों का कहना है कि विश्वविद्यालय प्रशासन की सुस्ती तो रही, मगर उनका यह भी कहना है कि विरोध का कुछ लोगों ने जान-बूझकर राजनीतिकरण कर दिया। वहीं कुलपति गिरीश चंद्र त्रिपाठी (साक्षात्कार बॉक्स में पढ़ें) कहते हैं कि पीड़ित लड़की ने खुद उनसे मिलकर कहा कि वह सिर्फ उन लड़कों के विरुद्ध कार्रवाई चाहती है, जबकि बाहर विरोध कर रहे लोग जबरन उसे विरोध का हिस्सा बनाए हुए हैं। दूसरी चीज कि कुलपति जब छात्राओं से मिलने के लिए त्रिवेणी छात्रावास जा रहे थे, तो उनका रास्ता रोक दिया गया। उन्हें छात्राओं से मिलने नहीं दिया गया। लड़कियों के आंदोलन का नेतृत्व करने वाली एकता सिंह कहती हैं कि हमें लड़कियों ने बताया कि कुलपति को छात्रावास में बुलाया है और वे आ भी रहे हैं।  फिर जब मैं दो मिनट के लिए अपने कमरे में गई, तब मुझे पता चला कि कुलपति आए थे, मगर उनका इतना विरोध हुआ कि उन्हें लौटना पड़ा। यह विरोध उन लोगों ने किया जो जबरन इस आंदोलन का हिस्सा बने थे। उन्हीं लोगों ने कुलपति और लड़कियों के बीच संवाद नहीं होने दिया। एकता ने यह भी बताया कि उनके आंदोलन पर कुछ वामपंथी संगठनों ने कब्जा कर लिया। इस तरह आंदोलन का मुद्दा नेपथ्य में चला गया और इसे प्रधानमंत्री मोदी, भाजपा और राष्टÑीय स्वयंसेवक संघ के विरोध का उपक्रम बनाकर रख दिया गया।
 
यहां समझने वाली बात यह है कि जब कुलपति त्रिवेणी छात्रावास गए तब यदि उनकी छात्राओं से मुलाकात हो जाती तो यह बिगड़ा मामला फिर भी संभल जाता। लेकिन कुलपति से लेकर एकता तक की बातों से जाहिर है कि यह मुलाकात होने नहीं दी गई यानी यह उन तत्वों को पसंद नहीं था, जो इस बहाने संघ और भाजपा का विरोध करना चाहते थे। अब मीडिया पर प्रश्न यह उठता है कि जब कुलपति छात्राओं से मिलने गए थे, (यह अलग विषय है कि मुलाकात नहीं हो पाई), फिर ऐसी खबरें क्यों चलीं कि कुलपति छात्राओं से मिलने को तैयार नहीं हैं!
इन सब बातों को देखने से यही प्रतीत होता है कि विश्वविद्यालय प्रशासन के कुछ कर्मचारियों की भूलों के कारण इस मामले में छात्राओं को आंदोलन के लिए बाध्य होना पड़ा, मगर उसके बाद उनको नेपथ्य में करते हुए इसे पूरी तरह से राजनीतिक रंग देने का काम विशेष तौर पर वामपंथियों और दिल्ली में बैठ मीडिया के एक धड़े द्वारा किया गया। इसका वहां के छात्र और शिक्षक विरोध भी कर रहे हैं।
 
बीएचयू को बदनाम करने के विरोध में इन लोगों ने प्रदर्शन भी किया है। बहरहाल, अब इस मामले में प्रदेश सरकार द्वारा न्यायिक जांच का आदेश दिया गया है। उम्मीद है कि इस जांच से सभी वास्तविक दोषियों के चेहरे से नकाब उतर जाएगी।   

बीएचयू के कुलपति गिरीश चन्द्र त्रिपाठी से हुई बातचीत के कुछ अंश

छेड़खानी से शुरू हुआ मामला इतना अधिक कैसे बिगड़ गया ?

जवाब - यह मामला बेहद संवेदनशील है। लेकिन, लोग इसे मेरे पास लाने की बजाय सड़क पर ले गए। इस मामले में लड़की को न्याय दिलाने का प्रयास होना चाहिए, लेकिन इसपर फिजूल हंगामा मचाया गया जिसमें पहले दिन से बाहरी तत्व शामिल थे। मैं उसदिन प्रधानमंत्री के लोकार्पण कार्यक्रम में था, जब लौटा तो विरोध कर रहे लोगों से बार-बार आग्रह किया कि आइये, हम जो कर सकते हैं, करेंगे। लेकिन, ये लोग नहीं आए। बाद में (संभवतः २३ तारीख को) पीड़ित लड़की और उसकी कुछ सहेलियां मुझसे मिले। लड़की ने अपनी पूरी बात बताई साथ ही यह भी बताया कि मैं ये नहीं चाहती जो ये लोग कर रहे हैं। लेकिन, ये मुझे वहाँ से आने नहीं दे रहे, जबरदस्ती बिठाए हुए हैं। मैं वाशरूम का बहाना बनाकर यहाँ आई हूँ। खैर, उन लड़कियों से मेरी बात हुई। लड़की सिर्फ अपने साथ बदतमीजी करने वालों पर कार्यवाही चाहती थी, हमने उसे भरोसा दिया और एफआईआर की बात कही। उसके साथ मौजूद लड़कियां चाहती थीं कि ये सुनिश्चित किया जाए कि आगे से फिर ऐसा नहीं होगा। मैंने कहा कि हम अपने सुरक्षा इंतजामों का पुनरावलोकन करेंगे और उसमें लड़कियों को भी शामिल करेंगे। फिजिकल और स्पोर्ट्स की लड़कियों से हमारी बात भी हुई और उन्हें सुरक्षा प्रणाली में शामिल करने को लेकर राय बनी। लड़कियां चाहती थीं कि मैं होस्टल में जाकर सभी लड़कियों से ये सब बातें कहूँ। ये तय हुआ कि मैं त्रिवेणी संकुल जाऊँगा और लड़कियों से बात करूँगा। इसके बाद महिला महाविद्यालय की लड़कियां भी मुझसे मिलीं। मैंने कहा कि मैं आपके यहाँ भी आऊंगा। मैं जब त्रिवेणी संकुल जा रहा था, तो अचानक पता नहीं कहाँ से कुछ चालीस-पचास लड़के-लड़कियों का दल आकर उसके बाहर धरने पर बैठ गया। मुझे लौटना पड़ा। मैंने महिला महाविद्यालय जाने की सोचा तभी वहाँ पथराव होने लगा। आगजनी हुई, पेट्रोल बम चले।  

बाहरी तत्वों के शामिल होने की बात किस आधार पर कह रहे ?

जवाब - पहले दिन से बाहरी लोग थे। कुछ नाम बताऊँ तो आम आदमी पार्टी के संजीव सिंह, आइसा दिल्ली से जुड़े सुनील यादव आदि लोग पहले दिन से लगे हुए थे। मेरे पास विडियोग्राफी है, जिसमें संजीव सिंह पहले दिन भाषण दे रहे हैं। बाहरी लड़कियां भी थीं। पहले दिन हमारे डीन, विश्वविद्यालय के कई अधिकारी उन्हें समझाते रहे। लड़कियां मान जातीं, लेकिन ये जो बाहरी लोग थे, उन्हें रोक रहे थे। आखिर वे जाकर उस जगह धरने पर बैठ गए जहां से प्रधानमंत्री गुजरने वाले थे। एक और मामले पर ध्यान दीजिये, जब धरना दे रहे लोगों में से कुछ ने महामना की प्रतिमा पर कालिख पोतने की कोशिश की (पोती नहीं गयी) और विश्वविद्यालय के नाम की जगहशेम बीएचयूका बैनर लगाना चाहा तो उनके बीच ही दो गुट हो गए। विद्यार्थी ऐसा करने वालों को रोकने लगे कि विश्वविद्यालयों के प्रति हम ऐसी अभद्रता नहीं होने देंगे। मैं अपने कार्यकाल के अनुभव के आधार पर कह रहा कि बीएचयू का विद्यार्थी महामना और बीएचयू के प्रति सम्मान का भाव रखता है, वो उनके प्रति अपमान कभी बर्दाश्त नहीं कर सकता। इस मामले से भी जाहिर है कि उसमें बाहरी लोग थे। मैंने प्रशासन को दो पत्र लिखे कि यहाँ बाहरी लोग गए हैं, जो स्थिति को बिगाड़ सकते हैं। लेकिन, पुलिस २३ की रात में तब आई जब स्थिति काफी बिगड़ चुकी थी।

इस पूरे प्रकरण के दौरान मीडिया का रवैया कैसा रहा ?
जवाब - मीडिया का रवैया बेहद नकारात्मक रहा है। मामले पर मीडिया का एकपक्षीय नजरिया रहा। बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी में कुछ अच्छा है, ऐसा कहीं नहीं दिखा। बस बुराई की गई। मेरे कई बयानों को गलत ढंग से प्रस्तुत किया गया। अभी कुछ महीने पहले यहाँ राजदीप सरदेसाई आए थे, लैंगिक भेदभाव की बात का खुलासा कर रहे थे। और भी कई अफवाहें उड़ाई। वास्तव में, लड़कियों को आगे करके संस्थान का माहौल ख़राब करने की कोशिश लगातार की जा रही है। इस मामले में अवसर मिल गया तो मीडिया के एक धड़े ने इसे बढ़ा-चढ़ाकर दिखा दिया कि देखो, हम जो पहले से कह रहे थे, वही बात है। बिना बात मामले को राष्ट्रीय रूप दे दिया गया। 

देश के अन्य शिक्षण संस्थानों के छात्रों की राय

इस मुद्दे पर बीएचयू प्रशासन की कुछ लापरवाही तो सामने आती है,पर सबसे ग़लत बात है इसका राजनीतिकरण। वहाँ की कुछ छात्राओं से बात करने पर पता चला कि किस तरह उनका विरोध प्रदर्शन हाईजैक कर राजनीतिकरण किया जा रहा है। देश के हर हिस्से में आंदोलन करने वाले लोग, इसी तरह की अन्य घटनाओं पर चुप क्यों हो जाते हैं? क्या ये आंदोलनकारी चुने हुए मुद्दों पर आंदोलन करते हैं?
अनुराग सिंह
शोधार्थी
दिल्ली विश्वविद्यालय

छात्राओं और महिलाओं के हित की बात अगर है तो उसे वहीं तक रहने दीजिए ना, हमारी लड़ाई विश्वविद्यालय प्रशासन से होनी चाहिए। हर बात में विरोध के लिए प्रधानमंत्री मोदी को बीच में लिए चले आना महिलाओं के स्वयं के मुद्दे को ही कमज़ोर करेगा।
श्रुति गौतम
जामिया मिल्लिया इस्लामिया 

बाहर के तत्व आये और हिंसा फैली, इतने लोग एक तो गए उसपर से तब जब प्रधानमंत्री की रैली होनी थी। इसमें साज़िश की बू आती है।
कनिष्का तिवारी
भारतीय जनसंचार संस्थान  

यह आंदोलन शांतिपूर्ण ढंग से चल रहा था फिर कौन लोग आकर आंदोलन को हिंसक बनाए ? यह गंभीर मामला है। एक के बाद एक विश्वविद्यालयों को बदनाम करने का षड्यंत्र रचा जा रहा है। इस षड्यंत्र को उजागर करने की जरूरत है।
आदर्श तिवारी 
माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय, नोएडा

कई वर्षों से कम्युनिस्टों की कुदृष्टि राष्ट्रवादी चिंतन की प्रधानता वाले विश्वविद्यालय पर थी। इस बार ये काफी हद तक छात्र-छात्राओं को गुमराह कर उसमें सफल भी हुए, लेकिन इस सांस्कृतिक भूमि को कोई क्षति नहीं पहुंचेगी। बीएचयू कल भीसेफ था, आज भी है और आगे भी रहेगा।
शिवदत्त द्विवेदी
वर्धा विश्वविद्यालय

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