- पीयूष द्विवेदी भारत
अगर आप प्रेम पर कुछ अलग जायके और ताजगी से भरी कहानियां पढ़ना चाहते हैं, तो डॉ कायनात क़ाज़ी का कहानी-संग्रह ‘बोगनवेलिया’ आपके लिए है। इस संग्रह में कुल नौ कहानियां हैं, जिनमें प्यार के अलग-अलग रंग बिखरे पड़े हैं। किसी कहानी को पढ़ते वक़्त ऐसा शायद ही कहीं महसूस
हो कि उसमें किसी कथ्य का दुहराव हो रहा है। हर कहानी में एकदूसरे से अलग एक ताजगी
सी महसूस होती है। हाँ, इन कहानियों में एकमात्र समानता यह है कि इन सबके कथानक का
आधार निर्विवाद रूप से प्रेम है।
संग्रह
की पहली कहानी ‘बोगनविला’ में लेखिका ने आदमी के जीवन में अकेलेपन की टीस और
पारिवारिक रिश्तों के महत्व को बड़ी खूबसूरती और रोचक ढंग से कथानक में पिरोया है। अपने
स्नेहिल व्यवहार, स्व-कथित कुलीन प्रतिष्ठा और भव्य जीवन के कारण आसपास के लोगों
में मशहूर बेगम साहिबा की मृत्यु के पश्चात् जब यह रहस्य खुलता है कि वास्तव में
वे एक तवायफ थीं और सिर्फ स्नेह-संबंधों की लालसा में झूठ बोलकर रह रही थीं, तो
हमारे समक्ष जीवन में परिवार न होने की पीड़ा की कारुणिक तस्वीर स्वतः साकार हो
उठती है। लेकिन, लेखिका सिर्फ समस्या ही रखकर नहीं छोड़तीं, वे अपने अनुसार इस
अकेलेपन का समाधान आस-पड़ोस के सामाजिक संबंधों के रूप में प्रस्तुत कर शेष सब पाठक
के विवेक पर छोड़ देती हैं। ये इस संग्रह की सर्वश्रेष्ठ कहानी हो सकती थी, मगर
इसकी एकमात्र कमी ये है कि इसका शुरूआती लम्बा हिस्सा बोगनविला के साज-सज्जा के
आवश्यकता से अधिक वर्णन में निकल जाता है, जिससे पाठक में ऊब पैदा हो सकती है। इस
एक कमी के कारण यह इस संग्रह की सर्वश्रेष्ठ कहानी नहीं बन पाती।
‘अनुराग’
इस कहानी का उल्लेख करना बेहद आवश्यक होगा। सड़क पर पड़ी एक सुन्दर स्त्री को अपने
घर लाकर उसकी चिकित्सा कर रहे विधुर डॉक्टर रोहित वर्मा के मन में उसके प्रति
अनुराग के बीज अंकुरित हो उठते हैं। परन्तु, वो तो होश में आने के साथ ही किसी
‘अनुराग’ नामक व्यक्ति की रट लगा देती है। डॉक्टर रोहित वर्मा चाहे-अनचाहे अनुराग
के प्रति ईर्ष्या का अनुभव करने लगते हैं। सोचने लगते हैं कि अनुराग में ऐसा क्या
है जो उनमें नहीं है। वे अनुराग की खोज में लग जाते हैं। परन्तु, कहानी के अंत में जब अनुराग का भेद
खुलता है और अनुराग से उस औरत की भेंट होती है, तो डॉ वर्मा तो अपनी सोच पर लज्जित
होते ही हैं, स्त्री-पुरुष संबंधों के प्रति समाज के संकीर्ण दृष्टिकोण की एक
स्याह सच्चाई से भी हम रूबरू हो उठते हैं। ‘अनुराग’ के चरित्र का रहस्य इस कहानी का
प्राण है। ये इसे रोचक और अत्यंत कौतूहल पूर्ण बना देता है। कथ्य और शिल्प दोनों
ही बिन्दुओं पर इसकी विशिष्टता को देखते हुए इसे संग्रह की सर्वश्रेष्ठ कहानी कहा
जा सकता है।
इसके
अलावा संग्रह की अन्य कहानियों में ‘एक थी रूमाना’, ‘आसरा’, ‘अरविन्द की सुधा’ आदि
भी उल्लेखनीय हैं। इनमें प्रेम के विविध रंगों का चित्रण देखने को मिलता है। विशेष
बात यह है कि इन कहानियों के कथानक में किसी भी तरह का दोहराव नहीं महसूस होता।
लेखिका इस बात के लिए प्रशंसा की पात्र हैं कि उन्होंने प्रेम कहानियों के नाम पर
लड़का-लड़की खड़े कर उनमें फिजूल का फ़िल्मी रोमांस, फ़िल्मी परिस्थितियाँ और घिसे-पिटे
संवाद नहीं गढ़े हैं। ये प्रेम कहानियाँ कहीं-कहीं थोड़ी अतिवादी हो जाती हैं, तो
कहीं बेहद सामान्य परिस्थतियों वाली रहती हैं; परन्तु, हर हाल में इनके कथानक में
ताजगी बरक़रार रहती है। जहां-जहां कहानियों में अतिवाद प्रतीत होता है, वहाँ भी वो
इस रूप में है कि हम उससे बहुत असहज नहीं होते। हम इस अतिवाद को इस रूप में
स्वीकार लेते हैं कि प्रेम में बहुत कुछ असंभव भी संभव हो उठता है।
भाषा
की बात करें तो लेखिका इस मामले में बेहद उदार रही हैं। ज्यादातर कहानियों की भाषा
आधुनिक हिंदी है, जिसमें उर्दू, फ़ारसी के साथ-साथ अंग्रेजी के भी शब्दों का बेहिचक
प्रयोग दिखाई देता है। वैसे, लेखिका की भाषा कहानी के परिवेश के साथ परिवर्तित
होती रहती है। मुस्लिम समाज के पात्रों की कहानी में जहां लेखिका उर्दू शब्दों के
बाहुल्य वाली हिंदी में बहती जाती हैं, तो अन्य परिवेश की कहानियों में उनकी भाषा
अंग्रेजी आदि के शब्दों से भरी सामान्य बोलचाल वाली हिंदी होती है। शैली के स्तर
पर विशेष बात यह है कि लेखिका अपनी कहानियों में यथासंभव रोचकता बनाए रखने में
कामयाब रही हैं।
लेखिका
के साथ जो एक समस्या रही है, वो ये कि वे कहानियों के परिवेश के वर्णन के प्रति
कहीं-कहीं आवश्यकता से अधिक ही मोहित दिखाई देती हैं। घरों, क्षेत्रों आदि की
भौतिक संरचना का वर्णन अवसर मिलते ही करने में वे नहीं चूकी हैं। ऐसा वर्णन
कहानियों में वर्जित तो नहीं है, मगर जब यह एक सीमा से अधिक होने लगता है तो अच्छे
से अच्छे कथानक को भी अनावश्यक रूप से उबाऊ बना देता है। ऐसी स्थिति में या तो
पाठक कहानी को छोड़ देता है अथवा टुकड़ों में पढ़ने लगता है। ‘बोगनविला’, ‘एक थी
रूमाना’, ‘ठीकरे की मांग’ जैसी कहानियों में यह समस्या कमोबेश दिखाई देती है।
इस एक दिक्कत को छोड़ दें तो प्रेम की बहुरंगी
कहानियों से सजा ये कहानी-संग्रह प्रेम की कई परतें खोलता है। प्रेम कहानियों में
रूचि लेने वाले गंभीर पाठकों के लिए तो ये पठनीय है ही, प्रेम पर लिखने वालों को
भी इसमें काफी नयी लेखन सामग्री मिल सकती है।
बहुत खूब पियूष जी
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