शनिवार, 14 अक्तूबर 2017

विनाश के ढेर पर बैठी दुनिया [दैनिक जागरण (राष्ट्रीय संस्करण) और जनसत्ता में प्रकाशित)

  • पीयूष द्विवेदी भारत

अभी बीते दिनों ही परमाणु हथियारों को समाप्त करने के लिए कार्य करने वाले संस्थान आइकैन को विश्व शांति के क्षेत्र में नोबल पुरस्कार दी जाने की घोषणा हुई। दुनिया भर से इस संस्थान के लिए बधाई और सराहना के संदेशों की बाढ़ आ गयी। इस पुरस्कार के बाद यह उम्मीद पैदा हुई कि अब संभवतः विश्व में परमाणु हथियारों के खात्मे को लेकर वातावरण बनेगा, मगर ये उम्मीद अधिक देर तक नहीं रह सकी। विश्व के महाशक्ति देश अमेरिका के विदेश मंत्रालय की तरफ से बयान जारी करते हुए कहा गया कि अमेरिका ‘परमाणु हथियार निषेध संधि’ जो पुरस्कृत संस्थान द्वारा समर्थित है, पर हस्ताक्षर नहीं करेगा। हालांकि अमेरिकी विदेश मंत्रालय की तरफ से यह भी कहा गया कि अमेरिका इस संधि के लिए वैश्विक वातावरण बनाने की दिशा में प्रयास करेगा। स्पष्ट है कि अमेरिका जिसके पास परमाणु हथियारों का भारी जखीरा है, खुद तो परमाणु हथियारों के खात्मे की दिशा में एक मामूली कदम भी नहीं बढ़ाना चाहता, लेकिन दुनिया के अन्य देशों से इस दिशा में बढ़ने के लिए प्रयास करने की बात कर रहा है। अब जबतक अमेरिका इस दिशा में कदम नहीं बढ़ाएगा, तबतक उसके जितने ही परमाणु हथियारों से संपन्न उसके विकट प्रतिस्पर्धी रूस से भी इस दिशा में कोई उम्मीद करना बेमानी ही होगा। ऐसे वक्त में फ़्रांस, ब्रिटेन, चीन, भारत आदि देश ऐसी किसी पहल के विषय में सोचें, ऐसी अपेक्षा करना इन देशों के साथ अन्याय ही होगा।

उपर्युक्त बातों को थोड़ा बेहतर ढंग से समझने के लिए यह देखना जरूरी होगा कि किस देश के पास कितने परमाणु हथियार हैं। हालांकि इसका कोई आधिकारिक आकड़ा उपलब्ध नहीं है, मगर सूत्रों के आधार पर कुछ आंकड़े जरूर सार्वजनिक रूप से मौजूद हैं। विकिपीडिया पर मौजूद एक आंकड़े के अनुसार इस वक़्त ७००० परमाणु हथियारों के साथ रूस परमाणु शक्ति के मामले में पहले स्थान पर है। इनमें से १९५० परमाणु हथियार प्रयोग के लिए एकदम तैयार अवस्था में हैं। रूस के बाद ६८०० परमाणु हथियारों के साथ अमेरिका इस सूची में दूसरे स्थान पर है, उसके भी १८०० परमाणु हथियार प्रयोग के लिए तैयार हैं। इसके बाद फ़्रांस, चीन, ब्रिटेन, पाकिस्तान और भारत की बारी आती है, जिनके पास क्रमशः ३००,  २७०, २१५, १२५ और १२० परमाणु हथियार हैं। इनमें फ़्रांस के २८० और ब्रिटेन के १२० परमाणु हथियार प्रयोग के लिए तैनात हैं। शेष किसी देश के परमाणु हथियारों के प्रयोग के लिए तैनात अवस्था में होने की जानकारी नहीं है। इसीसे मिलते-जुलते आंकड़े अन्य स्रोतों पर भी उपलब्ध हैं। संदिग्ध रूप से अब उत्तर कोरिया परमाणु हथियार रखने वालों की श्रेणी में आ चुका है, बल्कि कई दावे तो ऐसे भी सामने आए हैं कि उसके पास परमाणु बम से भी अधिक शक्तिशाली हाइड्रोजन बम है।

बहरहाल, इन आंकड़ों से ये बात साफ़ है कि विश्व के लगभग नब्बे प्रतिशत से अधिक परमाणु हथियार अमेरिका और रूस के पास हैं। हालांकि एक तथ्य यह भी है कि परमाणु हथियारों की संख्या का कोई महत्व नहीं होता, क्योंकि बड़े से बड़े देश के सम्पूर्ण विनाश के लिए बमुश्किल आधा दर्जन परमाणु बम ही काफी हैं। ऐसे में किस देश के पास कितने परमाणु हथियार हैं, इससे कोई विशेष फर्क नही पड़ता। कम हो या ज्यादा, हर स्थिति में परमाणु बम विश्व के लिए चिंताजनक है।

आज जो वैश्विक परिदृश्य है, उसमें राष्ट्रों के बीच परस्पर संदेह और प्रतिस्पर्धा का भाव भयंकर रूप से मौजूद है। हालांकि ऐसी स्थिति में भी यदि ये देश अक्सर एक दूसरे से मित्रता और सौहार्दपूर्ण संबंधों की बात करते हैं, तो उसका मुख्य कारण अर्थव्यवस्था का वैश्वीकरण हो जाना है। इस बात को भारत-चीन के उदाहरण से समझें तो चीन जैसा अड़ियल और आक्रामक देश यदि संघर्ष की बजाय डोकलाम में चुपचाप पीछे हट गया तो इसका मुख्य कारण यही था कि भारत से उसके गहरे आर्थिक हित जुड़े हुए हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि अर्थव्यवस्था के वैश्वीकरण ने राष्ट्रों के बीच सशस्त्र संघर्ष की स्थिति को फिलहाल रोक रखा है, मगर इससे अधिक समय तक उम्मीद नहीं की जा सकती। विश्व में उत्तर कोरिया, पाकिस्तान जैसे विफल राष्ट्र भी हैं; इनके लिए आर्थिक हित जैसी चीजें कतई महत्व नहीं रखतीं, अतः ये कभी भी युद्ध की स्थिति ला सकते हैं। अब यदि कोई व्यापक संघर्ष हुआ तो दुनिया ने ये जो परमाणु हथियार जुटा रखे हैं, उनका प्रयोग लगभग तय है। क्योंकि, आज का युद्ध इन्हीं हथियारों से लड़ा जाएगा।

क बड़ी आशंका यह भी है कि कहीं परमाणु हथियार आतंकियों के हाथ न लग जाएं। अब पाकिस्तान जैसे अपने ही द्वारा पैदा किए हुए आतंक के चंगुल में बुरी तरह से फंसे देश के पास जब १२५ परमाणु हथियार हैं, तो परमाणु हथियारों का आतंकियों के हाथों लग जाना कोई बहुत मुश्किल नहीं है। वो भी तब जब पाकिस्तान की सेना और सुरक्षा एजेंसियों, जिनके जिम्मे वहाँ के परमाणु ठिकानों की सुरक्षा का दायित्व होगा, के तार आतंकियों से जुड़े होने की बातें अक्सर सामने आती रहती हैं।

उपर्युक्त समस्त बातों को देखते हुए समझा जा सकता है कि परमाणु हथियार विश्व समुदाय के लिए किस तरह से एक मौन किन्तु भीषण संकट के रूप में उपस्थित हैं। विश्व के सभी विकसित व विकासशील राष्ट्र इस संकट से परिचित हैं, परन्तु प्रश्न यही है कि इनके खात्मे की पहल कौन करे। नैतिकता का तकाजा तो यही कहता है कि इस संबंध में पहल अमेरिका और रूस जैसे देशों को करनी चाहिए, क्योंकि उनके पास ही परमाणु हथियारों का जखीरा है। ये देश अपने परमाणु हथियारों को नष्ट करने की दिशा में बढ़ें तो अन्य देशों में भी साहस आएगा। विश्व के महाशक्ति देशों को यह समझ लेना चाहिए कि परमाणु हथियार किसी भी प्रकार से लाभप्रद नहीं हैं। यहाँ तक कि किसी युद्ध में भी इनसे कोई लाभ नहीं हो सकता, क्योंकि ये सिर्फ विनाश कर सकते हैं। ये विजित क्षेत्र की ऐसी दशा कर देंगे कि विजेता राष्ट्र के लिए उसका कोई उपयोग नहीं रह जाएगा। ऐसे में मानवता की बड़ी-बड़ी बातें करने वाले और सभ्य हो जाने का दंभ भरने वाले हमारे वर्तमान विश्व समाज को यह समझना चाहिए कि परमाणु हथियार केवल और केवल पशुता की निशानी हैं, मानवों के समाज में इनके लिए कोई स्थान नहीं है।

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