शुक्रवार, 28 अक्तूबर 2016

भारत-न्यूजीलैंड संबंधों में नई ताज़गी की उम्मीद [राज एक्सप्रेस में प्रकाशित]

  • पीयूष द्विवेदी भारत
विगत दिनों न्यूजीलैंड के प्रधानमंत्री जॉन की भारत दौरे पर आए थे। रूस, चीन, अमेरिका आदि तमाम देशों के राष्ट्राध्यक्षों की तुलना में उनका यह भारत दौरा मीडिया कवरेज के लिहाज से काफी शांत रहा, लेकिन इससे ऐसा नहीं समझना चाहिए कि इसका महत्व कम है। न्यूजीलैंड के प्रधानमंत्री के इस दौरे में दोनों देशों के बीच बातचीत के लिए दो बिंदु सबसे महत्वपूर्ण माने जा रहे थे। पहला तो ये कि भारत परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (एनएसजी) की सदस्यता के लिए न्यूजीलैंड का समर्थन प्राप्त करने की दिशा में पहल करेगा और दूसरा ये कि आतंकवाद के खिलाफ युद्ध में दोनों देशों के बीच आम सहमति बनेगी। जब भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और जॉन की ने संयुक्त प्रेस कांफ्रेंस को संबोधित किया तो स्पष्ट हो गया कि इन बिन्दुओं पर न केवल बातचीत हुई है, बल्कि भारत न्यूजीलैंड को अपने पक्ष में करने में संभवतः सफल भी रहा है। न्यूजीलैंड के प्रधानमंत्री जॉन की ने इस संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (एनएसजी) में भारत के शामिल होने को लेकर बातचीत हुई है और एनएसजी में भारत के शामिल होने की महत्ता को वे स्वीकार करते हैं। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि भारत की सदस्यता को लेकर वर्तमान में एनएसजी में जारी प्रक्रिया में न्यूजीलैंड रचनात्मक रूप से योगदान करना जारी रखेगा तथा एनएसजी सदस्यों के साथ मिलकर इस सम्बन्ध में जल्द से जल्द किसी नतीजे पर पहुंचा जाएगा। इसके अलावा उन्होंने एक महत्वपूर्ण बात यह भी कही कि न्यूजीलैंड संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का सदस्य बनने के सम्बन्ध में भी भारत का समर्थन करेगा। इसके अलावा आतंकवाद के मसले पर भी दोनों देशों के बीच सहमति बनी है। इस सम्बन्ध में भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्पष्ट किया कि आतंकवाद और कट्टरपंथ समेत साइबर हमलों के खतरे के विरुद्ध दोनों देश एक-दुसरे का सहयोग करने पर सहमति बनी है। ये बातें सुनने में तो काफी अच्छी लगती हैं और आशा जगाती हैं, मगर व्यावहारिकता में ये न्यूजीलैंड अपनी इन बातों पर कितना खरा उतरता है, ये तो समय ही बताएगा। 
 
राज एक्सप्रेस
अब जो भी, मगर वर्तमान वैश्विक परिदृश्य में न्यूजीलैंड का भारत के लिए बेहद महत्व है। अब चूंकि, ऐतिहासिक रूप से न्यूजीलैंड से भारत के सम्बन्ध अगर बहुत विद्वेषपूर्ण नहीं रहे तो बहुत अच्छे भी नहीं रहे हैं। न्यूजीलैंड भारत से कहीं अधिक भारत के सबसे बड़े प्रतिद्वंद्वी चीन के निकट है। चीन और न्यूजीलैंड के बीच सम्बन्ध बेहद गर्मजोशी वाले हैं। इसी नाते जब चीन ने भारत की एनएसजी सदस्यता की राह में रोड़ा लगाया था, तो उसके रुख का समर्थन करने वाले नौ देशों में न्यूजीलैंड भी था। न्यूजीलैंड ने भी चीन के इस रुख का समर्थन किया था कि भारत की सदस्यता पर और विचार किया जाना चाहिए। तबसे भारत चीन का साथ देने वाले उन नौ देशों को अपनी तरफ करने को प्रयासरत है।  अब न्यूजीलैंड समेत चीन का समर्थन करने वाले देशों में से जितने अधिक देश भारत के समर्थन में उतरेंगे चीन का विरोध उतना ही कमजोर पड़ेगा और वो बेहद अकेला पड़ जाएगा। ऐसे में, स्पष्ट है कि एनएसजी सदस्यता की दृष्टि से भारत के लिए न्यूजीलैंड का समर्थन बेहद महत्व रखता है।
 
वैसे यहाँ आवश्यकता सिर्फ भारत की ही नहीं है, दुनिया के अधिकांश देशों की ही तरह न्यूजीलैंड के लिए भी व्यापार की दृष्टि में  भारत एक बेहतर बाजार के रूप में दिख रहा है। प्रधानमंत्री मोदी इस बात बाखूबी जानते हैं और भारतीय बाजार की इस शक्ति के समुचित प्रयोग के ही जरिये दुनिया के तमाम विरोधी देशों को भी एक साथ साधकर चल भी रहे हैं। गौर करें तो रूस और अमेरिका जैसे दो विकट प्रतिद्वंद्वी देशों से इसवक़्त भारत के सम्बन्ध लगभग समान रूप से मधुर और गतिशील हैं तथा इससे इनमें किसी भी देश को कोई समस्या नहीं है। उदाहरण के तौर पर उल्लेखनीय होगा कि एक तरफ भारत रूस से एयर डिफेन्स सिस्टम का सौदा किया, तो दूसरी तरफ अमेरिका से अत्याधुनिक होव्तिजर तोपों के खरीद पर सहमति कायम की। इस तरह दोनों देशों से भारत के व्यापारिक सम्बन्ध कायम हो गए  और इन व्यापारिक संबंधों के जरिये अन्य सम्बन्ध भी दुरुस्त ही रहने हैं। यही भारतीय बाजार की शक्ति है। अब न्यूजीलैंड को भी भारत अपने इसी बाजार के जरिये चीन की तुलना में खुद के अधिक करीब लाने की कवायदें करने की दिशा में प्रयास करेगा। चीन और न्यूजीलैंड के बीच व्यापारिक सम्बन्ध ही तो उनके संबंधों को मजबूत किए हुए हैं। भारत और न्यूजीलैंड के बीच बिलकुल भी व्यापार नहीं हो, ऐसा नहीं है। लेकिन, वो चीन की अपेक्षा बेहद कम है, जिसे बढ़ाने की दिशा में अब भारत जोर दे रहा है। इसीलिए न्यूजीलैंड के प्रधानमंत्री जॉन की की इस ताज़ा यात्रा में दोनों देशों के बीच व्यापक मुक्त व्यापार समझौते को लेकर भी प्रतिबद्धता जताई गई।
 
वैसे, चीन से न्यूजीलैंड के सिर्फ व्यापारिक सम्बन्ध हैं, जबकि भारत से उसका सांस्कृतिक जुड़ाव भी है। भारत के लगभग बीस हजार से ऊपर छात्र न्यूजीलैंड में पढ़ते हैं। इस तरह भारतीय संस्कृति अपनी मौजूदगी वहाँ जमाए हुए है। अब बस एकबार न्यूजीलैंड को भारतीय बाजार का स्वाद मिल जाय, फिर उसके लिए स्वतः ही भारत का महत्व चीन से कहीं अधिक हो जाएगा।

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