बुधवार, 2 नवंबर 2016

जीत के जश्न के साथ हॉकी की समस्याओं को भी देखा जाए [राज एक्सप्रेस में प्रकाशित]

  • पीयूष द्विवेदी भारत
गत 30 अक्टूबर को एक तरफ देश दीपावली के उत्सव में डूबा हुआ था, तो दूसरी तरफ देश के राष्ट्रीय खेल हॉकी के खिलाड़ी एशियन चैम्पियंस ट्राफी में अपने चिर प्रतिद्वंद्वी पाकिस्तान के साथ टूर्नामेंट का निर्णायक मुकाबला खेलने में लगे थे। देश की नज़रें उधर भी थीं और इतंजार भी था कि कब हॉकी टीम की तरफ से जीत के रूप में दीपावली का उपहार दिया जाता है। भारत-पाकिस्तान के बीच होने वाले ज्यादातर मुकाबलों की तरह ही यह मुकाबला भी बेहद टक्कर का रहा। पहले दोनों टीमों की तरफ से बारी-बारी से दो-दो गोल कर लिए गए थे, इसके बाद मैच एकदम रोमांचक स्थिति में आ गया था। लेकिन फिर भारत की तरफ से आकाशदीप सिंह एवं निकिम तमैया ने गेंद को अपने बीच से बाहर नहीं जाने दिया और आखिर खले के 51वें मिनट में तीसरा और निर्णायक गोल दागकर भारत को पाकिस्तान पर 3-2 की बढ़त दिला दी। यह बढ़त मैच के अंत तक बरक़रार रही और इस तरह भारत दूसरी बार एशियन चैंपियंस ट्राफी का विजेता बना। बता दें कि इससे पहले सन २०११ में भारत ने पाकिस्तान को ही हराकर यह खिताब अपने नाम किया था, लेकिन फिर २०१२ में पाकिस्तान ने ये खिताब भारत से छीन लिया। अबकी फिर ऐसा ही एक मुकाबला था, जिसे जीत भारतीय हॉकी खिलाड़ियों ने दिखा दिया कि चाहें कोई भी क्षेत्र में अब एशिया में तो दबदबा भारत का ही रहेगा। यहाँ यह भी उल्लेखनीय होगा कि इस टूर्नामेंट में भारतीय टीम ने अपना सफ़र अपराजेय रहते हुए पूरा किया है। भारतीय टीम लीग मैचों में जापान, चीन और पाकिस्तान को मात देते हुए फाइनल तक पहुँची थी। जापान को 1०-2 से तो चीन को 9-० से बुरी तरह से पटकनी देते हुए एशियन चैंपियंस ट्राफी में भारत की जीत का ये सफ़र बेहद शानदार रहा।
 
राज एक्सप्रेस
अब कोई राजनीतिक मंच हो या खेल का मैदान, अगर भारत-पाकिस्तान आमने-सामने हों तो तल्खी और तकरार स्वाभाविक रूप से बढ़ जाती है। लेकिन, इस टूर्नामेंट में भारत के खिलाड़ी लाकड़ा ने बड़ा जोखिम लेते हुए भी जिस उदारता और ईमानदारी का परिचय दिया, वो भारत की उस महान परम्परा जिसमें भारत ने हमेशा पाकिस्तान के प्रति उदार, सहिष्णु और स्नेहिल रुख रखा है, का ही एक श्रेष्ठ उदाहरण है। दरअसल हुआ यूँ कि मैच के दौरान भारतीय खिलाड़ी वीरेंद्र लाकड़ा के पैर में गेंद जा लगी, जिसके बाद पाकिस्तान खिलाड़ियों ने रेफरी से पेनल्टी कॉर्नर की मांग कर दी। मगर, रेफरी को इस बात पर संदेह था कि गेंद लाकड़ा के पैर से लगी है, ऐसे में पाकिस्तानी टीम द्वारा अपना फाइनल रेफ़रल लेने का निर्णय लिया गया। अभी वे रेफरल लेते कि तभी खुद लाकड़ा रेफरी के पास गए और जाकर बताए कि उनके पैर से गेंद लगी है, इसलिए पाकिस्तानी टीम के रेफरल का उपयोग न करें। पाकिस्तानी टीम का फाइनल रेफरल बच गया और उसे पेनल्टी कॉर्नर भी मिल गया। हालाकि इसका वे फायदा नहीं उठा सके और भारतीय गोल कीपर ने गोल नहीं होने दिया। मगर ऐसे निर्णायक मैच के अंतिम समय में भारतीय खिलाड़ी लाकड़ा की हार-जीत से बेपरवाह इस ईमानदारी ने सबको स्तब्ध कर दिया। मैच खत्म होने के बाद खुद पाकिस्तानी टीम के कोच ने आकर लाकड़ा को गले लगाकर धन्यवाद किया। इससे पहले एफआईएच चैंपियंस ट्राफी में भारत जब पाकिस्तान से हारा था, तो वहाँ पाकिस्तानी खिलाड़ियों द्वारा बेहद अभद्र इशारे किए गए थे। लेकिन, बावजूद इसके भारतीय खिलाड़ी वीरेंद्र लाकड़ा की इस उत्कृष्ट खेल भावना से भरे व्यवहार ने सभी का दिल जीत लिया।
बहरहाल, हॉकी टीम की इस जीत पर हमें खुश तो होना चाहिए, मगर इस सचाई से भी मुंह नहीं चुराना चाहिए कि अभी हमारी हॉकी वैश्विक प्रतिस्पर्धा में काफी कमजोर है। एशिया में पाकिस्तान के अलावा कोई टक्कर का प्रतिस्पर्धी न होने के कारण हम जीत जाते हैं, लेकिन जब हमारा मुकाबला वैश्विक टूर्नामेंट्स में ऑस्ट्रेलिया आदि टीमों के साथ होता है, तो हमारी टीम कमजोर पड़ जाती है। कारण यह कि जिस स्तर का ध्यान हम क्रिकेट पर देते हैं, उसकी तुलना में हॉकी पर न के बराबर ही ध्यान दिया जाता है। रूपये-पैसे से लेकर अन्य खेल सम्बन्धी सुविधाओं तक देश में हॉकी की दुर्दशा की बातें अक्सर सामने आती रहती हैं। जरूरत है कि हॉकी की तरफ भी हम वैसा ही ध्यान दें, जैसा कि क्रिकेट की तरफ देते हैं। ऐसा करके ही हम अपनी हॉकी टीम के प्रदर्शन को उस स्तर का बना सकेंगे, जैसा कि हॉकी को राष्ट्रीय खेल मानने वाले एक देश का होना चाहिए।

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