मंगलवार, 22 मार्च 2016

रेल आधुनिकीकरण की दिशा में एक कदम [राज एक्सप्रेस में प्रकाशित]

  • पीयूष द्विवेदी भारत 

राज एक्सप्रेस 
भारतीय रेल और भारतीय अन्तरिक्ष अनुसन्धान संगठन यानी इसरो के बीच एक समझौता हुआ है जिसके तहत इसरो अब भारतीय रेल को विभिन्न स्तरों पर सहयोग प्रदान करेगा। समझौते के अनुसार  इसरो अपनी अंतरिक्ष तकनीक और रिमोट सेंसिस के जरिये भारतीय रेल की सुरक्षा और परिचालन के स्तर पर सहायता देगा। इसरो के सहयोग के बाद स्थिति यह होगी कि रेलवे सेटेलाइट के द्वारा अपनी चालित गाड़ियों पर आसानी से निगाह रख सकेगा। इसके अलावा यदि असावधानी के कारण कोई दो गाड़ियाँ एक ही साथ एक ही पटरी पर आ जाती हैं तो चालक को समय रहते इस बात की सूचना देकर  दुर्घटनाओं को रोका जा सकेगा। मानव रहित फाटक और क्रासिंग आदि पर भी सेटेलाइट के जरिये ही निगरानी रहेगी। दरअसल, इसरो रिमोट सेंसिस के मामले में दुनिया में अव्वल माना जाता है। इसरो की मदद से भारतीय रेलवे ऐसा सिस्टम डेवलप करने की योजना बना रहा है, जिससे पूरे देश में इस बात का सही पता रखा जा सकेगा कि कौन सी ट्रेन किस पटरी पर किस स्टेशन के पास से होकर निकल रही है। यह सब कार्य करने के लिए इसरो की तरफ से एक जीपीएस चिप तैयार की जा रही है, जिसे  गाड़ियों के इंजनों में लगाया जाएगा। यह चिप इसरो के सेटेलाइट सिस्टम से जुडी होगी और इसीके जरिये समस्त निगरानी प्रक्रिया को अंजाम दिया जाएगा। कहने की आवश्यकता नहीं कि इसरो द्वारा किए जाने वाले इन कार्यों से हमारी रेलवे को सुरक्षा के दृष्टिकोण से काफी राहत मिलेगी। रेलवे के आधुनिकीकरण जिसकी जब-तब चर्चा तो उठती रहती है लेकिन, जो पर्याप्त धन न होने के कारण लम्बे समय से अटका हुआ है, की दिशा में इसरो के साथ हुआ भारतीय रेल का यह समझौता एक अत्यंत समझदारी युक्त कदम है। हालांकि अभी इसे सिर्फ एक शुरुआत ही कहा जाना चाहिए और वो भी तबतक पूरी तरह से नहीं कहा जा सकता जबतक कि इसरो समझौते की इन बातों का क्रियान्वयन नहीं कर लेता। क्योंकि, इसरो ये सहयोग करने में यदि आज सक्षम हो पा रहा है तो इसके पीछे मुख्य कारण यह है कि इसरो स्वदेशी जीपीएस तकनीक पूरी तरह से हासिल करने के काफी निकट पहुँच चुका है। इसके लिए पांच उपग्रहों को इसरो द्वारा अन्तरिक्ष में स्थापित किया जा चुका है, लेकिन अभी भी इस श्रृंखला के दो और उपग्रहों का प्रक्षेपण शेष है। इसके उपरांत ही इसरो की ये स्वदेशी जीपीएस तकनीक एकदम बेहतर ढंग से काम करने में सक्षम हो सकेगी। अब इसरो ने रेलवे को जो तकनिकी सहयोग देने का भरोसा दिया है, वो सब संभवतः इसी जीपीएस तकनीक पर आधारित होंगे। ऐसे में, यह  देखना होगा कि इस स्वदेशी जीपीएस तकनीक द्वारा प्रदत्त सहयोग रेलवे के लिए कितने गुणवत्तापूर्ण ढंग से लाभकारी सिद्ध होते  हैं। चूंकि भारतीय रेल का नेटवर्क बहुत बड़ा है, इस नाते इसे उपर्युक्त प्रकार से आधुनिक बनाना इसरो के लिए काफी चुनौतीपूर्ण होगा।  
  इसरो द्वारा मिलाने वाले उपर्युक्त सहयोगों से बेशक हमारी रेलवे को काफी लाभ मिलेगा, लेकिन इसे सिर्फ एक शुरुआत के रूप में ही देखा जाना चाहिए। क्योंकि, अभी भी कई ऐसी समस्याएँ हैं, जिनसे रेलवे को पार पाना है। इन समस्याओं में सबसे प्रमुख हैं, रेल दुर्घटनाएँ जिनके कुछ कारणों का निवारण तो  इसरो से मिलने वाले सहयोग के जरिये हो जाएगा, लेकिन इनका जो प्रमुख कारण है, वो इसरो के सहयोग से दूर नहीं होगा। वो कारण है, रेल पटरियों की जर्जर हालत। एक आंकड़ें के अनुसार फिलहाल रेलवे का लगभग ८० फीसदी यातायात महज ४० फीसदी रेल नेटवर्क के भरोसे चल रहा है, जिससे भीड़-भगदड़ और असुरक्षा जैसी समस्याओं से रेलवे को दो-चार होना पड़ता है। यह क्षमता से अधिक का बोझ बड़ा कारण है रेल दुर्घटनाओं के लिए। इसके अतिरिक्त अधिकांश रेल पटरियों की हालत भी जर्जर हो चुकी है जो कि अक्सर दुर्घटनाओं का कारण बनती हैं। कहने की आवश्यकता नहीं कि रेल दुर्घटनाओं की समस्या इसरो के सहयोग के बाद कुछ कम जरूर हो सकती है लेकिन, यह पूरी तरह से दूर तभी होगी जब रेलवे रेल पटरियों की हालत सुधरने तथा इनकी संख्या बढ़ाने आदि के लिए प्रयास तेज करेगा। इसलिए कहना होगा कि इसरो और भारतीय रेलवे के बीच हुए उपर्युक्त समझौते के प्रति आशान्वित जरूर हुआ जा सकता है, पर अभी इससे बहुत ज्यादा उम्मीदें पालना जल्दबाजी होगी। फिलवक्त इसे रेल आधुनिकीकरण की दिशा में एक शुरूआती कदम मानते हुए उम्मीद की जानी चाहिए कि इसरो और रेलवे मिलकर न केवल इसका समुचित क्रियान्वयन करेंगे बल्कि इन सहयोगों को और भी आवश्यक विस्तार दिया जाएगा।

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