गुरुवार, 3 मार्च 2016

लवकेश मिश्रा की ‘जान’, ‘जान’ नहीं है क्या ?

  • पीयूष द्विवेदी भारत 


विगत फ़रवरी के आखिरी सप्ताह में लखनऊ के बीएनसीईटी कालेज में पढ़ने वाले एक छात्र की आत्महत्या का मामला सामने आया है। इस  छात्र  ने अपने सुसाइड नोट में ये स्पष्ट किया है कि अपने विभगाध्यक्ष की प्रताड़ना से परेशां होकर वो आत्महत्या कर रहा है। खबर के अनुसार, ये कबूलनामा न केवल लिखित है बल्कि रिकार्डेड भी। लेकिन अभी लगभग दस-बारह दिन पुराना ये मामला कुछेक अखबारों और वेबसाइटों की छोटी सी खबर भर बनकर समाप्त हो गया है। इसकी कहीं, कोई चर्चा नहीं है, जबकि इससे काफी पहले हुई कथित दलित छात्र रोहित वेमुला की आत्महत्या का मामला संसद, सड़क और मीडिया के प्राइम टाइम बहसों तक अब भी हंगामा मचाए हुए है। गौर करें तो ये दोनों छात्र ही थे, दोनों के सुसाइड नोट से भी यही स्पष्ट हुआ कि उनकी आत्महत्या की वजह कालेज प्रशासन का अनुचित और गैर-जिम्मेदाराना व्यवहार है..फिर सवाल यह उठता है कि जब सब कुछ एक जैसा है तो ऐसा क्यों हो रहा कि एक की आत्महत्या की चर्चा महीनों से थम ही नहीं रही और दूसरे की आत्महत्या का मामला बिना किसी शोर-शराबे या चर्चा-बहस के सप्ताह भर में ही गायब हो गया ? यह सवाल पूछा जाना चाहिए उन नेताओं और बुद्धिजीवियों से जो र्रोहित पर महीनों से विलाप करते नहीं थक रहे एवं जेएनयू के देशविरोधी छात्रों के हक़  की आवाज की पैरवी में कमर कसे खड़े हैं और लखनऊ के इस छात्र की आत्महत्या पर चू तक नहीं कर रहे ? नेता बताएं कि छात्र-हित के उनके मानक इतने दोहरे क्यों हैं कि एक छात्र की आत्महत्या पर वे न केवल उसके घर पहुँचते हैं बल्कि उसपर संसद में चर्चा की मांग भी उठा देते हैं और दूसरे छात्र की आत्महत्या पर क्रूर और निर्लज्ज मौन धारण करके बैठ जाते हैं ? कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी विशेष रूप से बताएं कि रोहित वेमुला के घर तो वे खूब गए थे और उसके लिए हो रहे प्रदर्शनों में भी पटर-पटर किए थे, तो लखनऊ क्यों नहीं गए या कब जा रहे हैं ? देश के तथाकथित बुद्धिजीवी और न्यूज चैनल्स के क्रांतिकारी एंकर लोग भी बताएं कि रोहित पर तो खूब मुबाहिसें किए थे, लखनऊ के छात्र पर ‘चू’ करने की भी योजना है या नहीं ? दावा है कि इन प्रश्नों पर ये सब या तो दोनों मामलों को अलग बताने का कुतर्की प्रलाप करेंगे या निर्लज मौन धारण किए रहेंगे क्योंकि, रोहित वेमुला पर बोलना इनके एजेंडे को लाभ देने वाला था, इसलिए बोले; जबकि लखनऊ के छात्र पर बोलना   इनके एजेंडे को कुछ नहीं देने वाला तो फिर ये अपना मुँह क्यों दुखाएं ? मतलब ये कि इनके लिए कोई छात्र-वात्र नहीं सिर्फ अपना एजेंडा महत्वपूर्ण है और ये सिर्फ उसीके लिए खाते-पीते-पहनते-ओढ़ते-उठते-बैठते-बोलते और जीते हैं।
  हाँ, एक सवाल आपके दिमाग में आ रहा होगा कि जब रोहित वेमुला इनके एजेंडे के लिए लाभप्रद था तो लखनऊ का छात्र क्यों नहीं ? तो इसे बस इतने से समझ लीजिए कि लखनऊ के छात्र का नाम रोहित ‘वेमुला’ नहीं था, वो तो बेचारा लवकेश ‘मिश्रा’ था। बस इसीलिए, उपर्युक्त लोगों के लिए उसकी जान, जान नहीं है!

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें