- पीयूष द्विवेदी भारत
ज्यों-
ज्यों बिहार चुनाव की घड़ियाँ नज़दीक आती जा
रही हैं, त्यों-त्यों बिहार में सियासी पारा गर्म होता जा रहा है। लड़ाई भाजपा और
उसके घटक दलों तथा महागठबंधन के बीच है, लिहाजा इनके बीच तरह-तरह के सियासी
दाँव-पेंच भिड़ाए जा रहे हैं। इन्ही दाँव-पेंचों के क्रम में महागठबंधन के दलों ने
चुनाव आयोग से मांग कर दी कि बिहार चुनाव तक प्रधानमंत्री के ‘मन की बात’
कार्यक्रम पर रोक लगाईं जाए। विगत १५ सितम्बर को महागठबंधन के नेताओं के एक
प्रतिनिधिमंडल द्वारा चुनाव आयोग को इस सम्बन्ध में ज्ञापन सौंपा गया। प्रतिनधिमंडल
में केसी त्यागी, केसी मित्तल आर एस सुरजेवाला, पवन वर्मा और मनोज झा आदि महागठबंधन
के सभी दलों के नेता शामिल थे। इन नेताओं का कहना था कि बिहार चुनाव के मद्देनज़र
‘मन की बात’ आचार संहिता का उल्लंघन है, इसलिए इसपर रोक लगनी चाहिए। चुनाव आयोग
द्वारा इस मांग को खारिज तो कर दिया गया, लेकिन पीएम की मन की बात के साथ कुछ
शर्ते लगा दीं गईं, जैसे कि मन की बात में मतदाताओं को लालच देने सम्बन्धी व बिहार सम्बन्धी
बातों का जिक्र न हो। इसके बाद बीते रविवार को प्रधानमंत्री की मन की बात का पूरे
देश में प्रसारण हुआ। प्रधानमन्त्री ने अपने आधे घंटे के कार्यक्रम में न तो
केंद्र सरकार उपलब्धियों का जिक्र किया और न ही बिहार का ही नाम लिया, लेकिन इशारों-इशारों
में ही मन की बात रोकने सम्बन्धी मांग करने वाले महागठबंधन पर निशाना जरूर साध
दिया। बहरहाल महागठबंधन नेताओं की मांग भले खारिज हो गयी हो, लेकिन फ़िलहाल इतना तो
साफ़ दिख रहा है कि इस चुनाव के परिणाम चाहें जो आएं, पर सियासी दाँव-पेंचों में इस
महागठबंधन से पार पाना भाजपा के लिए आसान नहीं रहने वाला।
दैनिक जागरण राष्ट्रीय |
गौर करें तो अबसे पहले दिल्ली, महाराष्ट्र,
हरियाणा, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ आदि तमाम राज्यों के चुनाव हुए, मगर उस दौरान
कांग्रेस या किसी अन्य दल ने पीएम के ‘मन की बात’ पर रोक लगाने की मांग नहीं की।
अब ऐसा तो है नहीं कि मन की बात का प्रसारण केवल बिहार में होता हो, यह तो पूरे
देश में प्रसारित होता है। लिहाजा सवाल यह उठता है कि जब और राज्यों के चुनावों
में मन की बात से कोई दिक्कत नहीं हुई तो फिर अभी बिहार चुनावों में ऐसा क्या हो
गया है कि महागठबंधन के दल मन की बात रोकने की मांग करने लगे ? दरअसल
यहाँ मामला यह है कि बिहार चुनाव में भाजपा का चेहरा मोदी ही हैं और भागलपुर में
हुई परिवर्तन रैली के बाद मोदी की बिहार में कोई रैली नहीं हुई है। आचार संहिता
लगने के बाद प्रचार-प्रसार भी ठप्प है। इस नाते महागठबंधन के दलों को आशंका है कि
मन की बात कार्यक्रम के माध्यम से मोदी बतौर पीएम बिहार की जनता से जुड़ने की कोशिश
कर सकते हैं। लिहाजा मन की बात पर रोक लगवाकर महागठबंधन के कांग्रेस आदि दलों
द्वारा बिहार चुनाव के दौरान मोदी के जनसंपर्क को ख़त्म करने की मंशा के तहत काम किया
गया था। कांग्रेस जो कि ‘मन की बात’ पर रोक लगवाने के लिए विशेष जोर लगाती दिख रही
थी, की हालत को समझा भी जा सकता है। वो पिछले तमाम चुनावों से लगातार हारती आ रही
है, इस नाते इस चुनाव जरा सा भी खतरा नहीं लेना चाहतीं होगी।
इसमे
तो कोई संदेह नहीं कि महागठबंधन की ‘मन की
बात’ रोकने की मांग काफी हद तक राजनीति
प्रेरित है, मगर चुनाव आचार संहिता के दृष्टिकोण से विचार करें तो कहीं न कहीं इस
मांग में कुछ दम भी नज़र आता है। चूंकि अभी हाल ही में अपनी एक चुनावी रैली में
मोदी ने बिहार को १.२५ लाख करोड़ का पैकेज
देने की घोषणा की थी। अब इसकी संभावना है कि मन की बात कार्यक्रम के जरिये वे
केंद्र सरकार द्वारा राज्यों को दी जाने वाली सहायता के उल्लेख के क्रम में बिहार
को दिए इस पैकेज समेत बिहार के लिए की जाने वाली अन्य केन्द्रीय पहलों का जिक्र कर
सकते हैं। केन्द्रीय योजनाओं का उल्लेख करते समय बिहार को लाभ पहुंचाने वाली
योजनाओं की बात भी कर सकते हैं। ये बातें वे बेशक बतौर प्रधानमंत्री करेंगे, लेकिन
इनका असर बिहार की जनता पर बतौर भाजपा के नेता के रूप में नहीं पड़ेगा, ऐसा नहीं कह
सकते। हालांकि एक दूसरी बात यह भी है कि यह पूरे देश में प्रसारित होने वाला
कार्यक्रम है, अतः सिर्फ बिहार के लिए इसे नहीं रोका जा सकता। ऐसे में बिहार का
जिक्र न करने व मतदाताओं को लुभाने वाली बातों से परहेज करने जैसी शर्ते लगाकर तो
चुनाव आयोग ने अच्छा समाधान दिया है। साथ ही अगर तकनिकी रूप से संभव हो तो यह भी
किया जा सकता है कि बिहार चुनाव तक के लिए इसका प्रसारण बिहार को छोड़ बाकी पूरे
देश में होना निश्चित कर दिया जाए। इससे महागठबंधन के दल भी संतुष्ट हो जाएंगे, बिहार
की आचार संहिता का मान भी निर्विवाद रूप से सुरक्षित रह जाएगा और देश के
प्रधानमंत्री का जनसंपर्क भी नहीं टूटेगा।
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