बुधवार, 14 मई 2014

चुनौतियों से घिरी नई सरकार [डीएनए में प्रकाशित]



  • पीयूष द्विवेदी भारत
डीएनए

तमाम राजनीतिक उठापटक और जद्दोजहद के बाद आख़िरकार देश में लोकतंत्र का महापर्व कहे जाने वाले आम चुनाव के मतदान के सभी चरण सफलता पूर्वक संपन्न हो गए । अब आगामी १६ तारीख को परिणाम भी आ जाएंगे और तकरीबन ये साफ़ हो जाएगा कि अब केन्द्र में किसकी सरकार बनेगी । इन सबके बीच एक बात गौर करने लायक है कि केन्द्र में चाहें किसीकी भी सरकार बने, वर्तमान यूपीए-२ सरकार उसके लिए चुनौतियों का जखीरा छोड़ के जा रही है, जिनसे पार पाना आगामी सरकार के लिए कत्तई आसान नहीं होगा । इसमें कोई दोराय नहीं कि यूपीए २ सरकार ने अपने पाँच साल (यूपीए १ को छोड़ कर) के कार्यकाल में सिवाय चौतरफा नाकामियों के और कुछ नहीं हासिल किया है । अर्थव्यवस्था, क़ानून व्यवस्था, आतंरिक व वाह्य सुरक्षा, विदेश व रक्षा नीति, इत्यादि सभी मोर्चों पर मौजूदा सरकार पूरी तरह से विफल रही है । उसपर इस सरकार के कार्यकाल में भ्रष्टाचार अपने चरम पर रहा है । सीडब्लूजी घोटाले से लेकर २जी तथा कोयला घोटाला तक एक से बढ़कर एक भ्रष्टाचार के कारनामे  इस सरकार के मंत्रियों द्वारा अंजाम दिए गए हैं । इन चीजों के कारण इस सरकार ने जनता के बीच न सिर्फ अपनी साख गँवाई है, बल्कि देश को चौतरफा मुसीबतों के बीच लाकर खड़ा भी कर दिया है । ऐसे में १६ मई को चुनाव परिणाम आने के बाद यूपीए, एनडीए या चाहें जिस दल या गठबंधन की सरकार केन्द्र में आए, उसका सामना सीधे-सीधे इन चुनौतियों से होना तय है ।
   इसी संदर्भ में अगर नई सरकार की कुछ प्रमुख चुनौतियों पर एक नज़र डाले तो नई सरकार के लिए सबसे बड़ी चुनौती देश की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने की होगी । इसके अंतर्गत देश का राजकोषीय घाटा जो मौजूदा सरकार की गलत आर्थिक नीतियों के कारण आज आसमान छू रहा है, को नियंत्रित करना तथा डॉलर के मुकाबले रूपये की हालत में सुधार लाना आदि प्रमुख है । अब चूंकि, इस चुनाव अपने-अपने घोषणापत्र में कांग्रेस, भाजपा आदि सभी दलों ने एक से बढ़कर एक लोक लुभावने वादे किए हैं । ऐसे में नई सरकार के लिए देश की इन आर्थिक चुनौतियों से निपटते हुए अपने घोषणापत्र में किए वादों को पूरा करने के लिए धन-प्रबंधन करना भी कत्तई आसान नहीं होगा । इसके अलावा आगामी सरकार की  दूसरी सबसे बड़ी चुनौती भ्रष्टाचार के खिलाफ कड़ा रुख रखते हुए उसके रोकथाम के लिए कुछ ठोस कदम उठाने व व्यवस्था को पारदर्शी बनाने की होगी । देश की आतंरिक व वाह्य सुरक्षा के लिए ठोस नीतियां बनाना व उन्हें अमलीजामा पहनना भी नई सरकार के लिए बेहद चुनौती पूर्ण कार्य होगा । आतंरिक सुरक्षा के मसले पर हमेशा की तरह नक्सल समस्या प्रमुख है । मौजूदा यूपीए सरकार की नीतियां नक्सलियों के रोकथाम में पूरी तरह से विफल रही हैं । ये सरकार न तो नक्सलियों से बातचीत के जरिए ही कुछ कर सकी है और न ही सशस्त्र कार्रवाई के द्वारा ही उनपर कोई विशेष नियंत्रण स्थापित करने में सफल हो सकी है । परिणामतः देश के नक्सल प्रभावित इलाकों के हालात अब भी जस के तस ही हैं । ऐसे में नई सरकार के लिए ये बड़ी चुनौती होगी कि वो नक्सलियों के प्रति क्या रुख रखती है और इस समस्या से किस नीति के तहत निपटती है । अब बात वाह्य सुरक्षा की तो यहाँ भी वर्तमान सरकार नाकाम और लाचार ही नज़र आती है । कभी चीनी सैनिक हमारी सीमा में घुस आते हैं तो कभी पाकिस्तानी सैनिक हमारी सीमा में आकर हमारे सैनिकों का सिर काट के ले जाते हैं और इन सब पर मौजूदा सरकार कुछ ठोस कदम उठाने की बजाय ढुलमुल रवैया ही अपनाती रही है । इस सरकार की ढुलमुल नीतियों के कारण हालत ये है कि आज चीन और पाकिस्तान जैसे पड़ोसी देश हमारी वाह्य सुरक्षा के लिए बेहद खतरा बन चुके हैं । इसके अलावा आतंकवाद भी वाह्य सुरक्षा से ही जुड़ा हुआ विषय है । लिहाजा नई सरकार के लिए पाकिस्तान-चीन समेत आतंकवाद से निपटने पर अपना रुख स्पष्ट करते हुए देश की वाह्य सुरक्षा सुनिश्चित करने सम्बन्धी कोई ठोस नीति निर्धारित करना भी एक बड़ी चुनौती होगा । नई सरकार ही एक और बड़ी चुनौती कमजोर और खोखली हो रही भारतीय सेनाओं के आधुनिकीकरण की भी होगी । भारत की तीनों सेनाएं आज आवश्यक हथियारों व उपकरणों के अभाव से जूझ रही है । अब चूंकि, भारतीय सेनाओं के हथियारों आदि की अधिकाधिक आपूर्ति विदेशों से आयात के द्वारा होती है, लेकिन मौजूदा सरकार के दौरान कुछ तकनीकी दिक्कतों तो कुछ आपसी मतभेदों के कारण तमाम रक्षा सौदे लंबित पड़े रहे हैं । इस कारण आज हालत ये है कि हमारी थल सेना के पास पर्याप्त गोले बारूद तक नहीं हैं, नौ सेना के पोत तकनीकी खराबियों के कारण आए दिन डूब जा रहे हैं और खराबियों के चलते ही वायु सेना के जहाजों का  क्रेश होना भी सामान्य सी बात हो गया है । ऐसे में नई सरकार के लिए ये अत्यंत चुनौतीपूर्ण होगा कि वो भारत की ढाल हमारी सेनाओं को किस तरह से और कितनी शीघ्रता से सशक्त बनाती है । इनके अलावा भ्रष्टाचार और महंगाई पर नियंत्रण, सरकारी काम-काज की सुस्ती को खत्म करना, रोजगार के अवसर पैदा करना तथा महिला सुरक्षा आदि तमाम और भी ऐसी चुनौतियाँ हैं, जिनसे आगामी सरकार को रूबरू होना पड़ेगा । इन चुनौतियों के बीच ही नई सरकार चाहें वो किसी भी दल की हो, के लिए महत्वपूर्ण होगा कि वो अपने घोषणापत्र में किए वादों को कैसे पूरा करती है । साफ़ है कि १६ मई के बाद बनने वाली संभावित नई सरकार के लिए सत्ता सम्हालने के बाद जन भावनाओं पर खरा उतरना कत्तई आसान नहीं रहने वाला । लिहाजा ये देखना दिलचस्प होगा कि वो कैसे इन चुनौतियों से पार पाती है और जनता की उम्मीदों को पूरा करती है ।

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