- पीयूष द्विवेदी भारत
देश के 74 वे स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर लाल किले की प्राचीर से अपने संबोधन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तमाम राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय विषयों के बीच लड़कियों के विवाह की नयी न्यूनतम उम्र तय करने की सरकार की मंशा को भी प्रकट किया। उन्होंने कहा कि लड़कियों की शादी की उपयुक्त उम्र क्या होनी चाहिए, इस बारे में सरकार विचार कर रही है और इस सिलसिले में समिति भी गठित की गई है, उसकी रिपोर्ट आते ही बेटियों की शादी की उम्र के बारे में उचित फैसले लिए जाएंगे। लाल किले से मोदी अक्सर इस तरह के छोटे किन्तु महात्वपूर्ण मुद्दे उठाते रहे हैं। अपने पहले भाषण में उन्होंने खुले में शौच और इससे महिलाओं को होने वाली समस्याओं का जिक्र किया था जिसके पश्चात् धीमे-धीमे इस स्थिति में सुधार आया और आज देश खुले में शौच की समस्या से लगभग मुक्त हो चुका है। अब इस बार जब उन्होंने लड़कियों के विवाह की न्यूनतम उम्र जो अभी 18 साल है, में बदलाव का संकेत दिया है, तो इसके मायने तलाशे जाने लगे हैं।
गौर करें तो अमेरिका, जर्मनी, फ़्रांस आदि विश्व के
अधिकांश देशों में विवाह की न्यूनतम उम्र सीमा 18 साल ही है, लेकिन हमें भारतीय
परिस्थितियों के मद्देनजर ही चीजों को देखना और उसके अनुरूप निर्णय लेना होगा। अब प्रश्न
यह है कि आखिर किन परिस्थितियों के मद्देनजर लड़कियों के विवाह की न्यूनतम उम्र में
सरकार परिवर्तन लाना चाहती है?
दैनिक जागरण |
लड़कियों के विवाह की न्यूनतम उम्र सीमा को बढ़ाने की
जरूरत इसलिए भी महसूस होती है कि अब वो समय धीरे-धीरे अतीत की बात होने की ओर बढ़
रहा जब लड़कियों का जीवन प्रायः गृह-केन्द्रित हुआ करता था और इससे इतर उनके लिए
संभावनाओं के द्वार एक हद तक बंद होते थे। आज लड़कियां सार्वजनिक जीवन के सभी
कामकाजी क्षेत्रों में अपनी सक्रिय भूमिका निभा रही हैं। शिक्षा, स्वास्थ्य,
शोध-अनुसंधान, प्रशासनिक ढाँचे से लेकर देश की राजनीति और सुरक्षा से जुड़े
क्षेत्रों तक में आज लड़कियों-महिलाओं की भागीदारी बढ़ रही है और इनमें से प्रत्येक
क्षेत्र में उन्होंने स्वयं को सिद्ध भी किया है। ऐसी स्थिति में 18 की उम्र, जो लड़का-लड़की
किसी के भी शिक्षा और कैरियर के लिए निर्णायक समय मानी जाती है, में लड़की के
विवाहयोग्य होने को वैधानिक स्वीकृति मिल जाना उसपर विवाह के लिए परिवार व
सगे-सम्बन्धियों के दबाव का रास्ता ही खोलता है। इस दबाव में तमाम लड़कियां शादी कर
भी लेती हैं और अपेक्षित प्रगति से वंचित रह जाती हैं।
एक आंकड़े के मुताबिक़, बीते पाँच सालों में भारत में 3 करोड़ 76 लड़कियों की शादी
हुई, जिनमें से 1 करोड़ 37 लाख लड़कियों की उम्र 18-19 साल थी। वहीं 75 लाख लड़कियों की
शादी के वक्त उम्र 20-21 के आसपास रही थी। विशेष बात ये कि इनमें कमोबेश ग्रामीण और शहरी दोनों तरह
की लड़कियां शामिल हैं। इन आंकड़ों से जमीनी स्थिति का अनुमान लगाया जा सकता है।
दरअसल तमाम प्रगति के बावजूद भी भारतीय समाज ‘लड़की पराया धन’ वाली मानसिकता से अभी
पूरी तरह से मुक्त नहीं हो पाया है और इस कारण अक्सर माता-पिता न्यूनतम उम्र पार करते
ही जल्दी से जल्दी लड़की की शादी कर अपने दायित्व से मुक्त हो जाना चाहते हैं। यही
कारण है कि उक्त आंकड़े में 18 की उम्र पार करते ही लड़कियों की शादी की बहुलता दिखाई
देती है। यह जल्दबादी लड़कियों के जीवन को बुरी तरह से प्रभावित करती है। ऐसे में
सरकार का उनके विवाह की न्यूनतम उम्र में परिवर्तन लाए जाने के विषय में सोचना
एकदम ठीक है।
माना जा रहा है कि सरकार इस न्यूनतम उम्र सीमा को 18 से बढ़ाकर 21 कर सकती है। 21 की उम्र तय होने
का पहला लाभ तो ये है कि ये विवाह के वक्त स्त्री-पुरुष समानता को उम्र के धरातल
पर भी सिद्ध करेगी। अभी पुरुष के लिए न्यूनतम वैवाहिक उम्र 21 साल ही है,
लड़कियों की भी यही उम्र होने की स्थिति में विवाह के वक्त लड़का-लड़की की उम्र में
अधिक अंतर होने की सम्भावना नहीं रहेगी।
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