रविवार, 24 जून 2018

पुस्तक समीक्षा : बासी कथानक की साधारण प्रस्तुति [दैनिक जागरण के राष्ट्रीय संस्करण में प्रकाशित]

  • पीयूष द्विवेदी भारत

नयी हिंदी और नयी हिंदी के लेखकों की इन दिनों चर्चा है अजीत भारती भी इसी नयी हिंदी की बिरादरी से सम्बन्ध रखते हैं और घर वापसी उपन्यास इनकी दूसरी किताब है। उपन्यास का नाम जरा विवादास्पद है, लेकिन किताब में कोई विवादास्पद कहानी नहीं है। 

उपन्यास की शुरूआत में लेखक ने इसके विषय में जो कुछ लिखा है, उससे लगता है कि ये गाँव से निकलकर शहर में मशीनी और सुविधाभोगी जीवन जी रहे उस मध्यमवर्ग की कहानी है, जो अपने मौजूदा जीवन से असंतुष्ट है और गाँव की ओर लौट जाना चाहता है जब कहानी की शुरूआत होती है, तो अगले कुछ पन्नों तक तो ऐसा लगता भी है कि कुछ नए तरह की कहानी बुनी जा रही है। 

लेकिन, फिर जैसे ही उपन्यास का मुख्य पात्र अनायास ही अपने बचपन में पहुँचता है, कहानी को लेकर पाठक की सारी उम्मीदें ध्वस्त हो जाती हैं इसके बाद उपन्यास का लगभग नब्बे प्रतिशत हिस्सा मुख्य पात्र के बचपन की शरारतों और प्रेम-प्रसंग की घटनाओं के नाम रहा है। बचपन की घटनाओं का जिस तरह से लम्बा फ्लैशबैक चलता है, वो किसी पुरानी हिंदी फिल्म की याद दिलाता है। बचपन के वर्णन की ऐसी कहानियों की हिंदी साहित्य में कमी नहीं है।    

उपन्यास के नाम से लेकर इसकी कहानी के विषय में ऊपर-ऊपर जो बातें कही गयी हैं, वे सब बेमतलब ही साबित होती दिखती हैं। विस्थापन जैसे गंभीर विषय को छूने का दावा करने वाला यह उपन्यास एक बच्चे की शैतानियों का दस्तावेज भर नजर आता है। शुरूआत की घटनाएं सिर्फ कहानी को फ्लैशबैक में ले जाने की कमजोर भूमिका भर साबित होकर रह जाती हैं।

भाषा-शैली, जिसे ‘नयी हिंदी’ की पहचान बताया जाता है, के मामले में भी पुस्तक कोई ख़ास प्रभाव नहीं छोड़ पाती। कुल मिलाकर इस उपन्यास को एक बासी कथानक की साधारण प्रस्तुति कह सकते हैं। हालांकि इसकी एकमात्र अच्छी बात ये है कि इसने नयी हिंदी के लेखकों की शहर केन्द्रित कृतियों से इतर गाँव का रुख किया है

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