शुक्रवार, 10 नवंबर 2017

प्रदूषण के वास्तविक कारणों पर हो चोट [अमर उजाला कॉम्पैक्ट में प्रकाशित]



  • पीयूष द्विवेदी भारत

राजधानी दिल्ली भयंकर धुंध और धुंए की चपेट में है इस दौरान पूरी दिल्ली की वायु की गुणवत्ता की बात करें को सीपीसीबी वायु गुणवत्ता सूचकांक के मुताबिक सोमवार को यह 354 के स्तर पर था, जो 'बेहद खराब' की श्रेणी में आता है। इससे पहले रविवार को यह स्तर 368 दर्ज किया गया था। गत वर्ष दीपावली के बाद ऐसी ही स्थिति उत्पन्न हुई थी, तो पर्यावरणवादियों ने दलील दी कि ये पटाखों के कारण हुआ है। इस कारण अबकी सर्वोच्च न्यायालय ने दिल्ली में दीपावली पर पटाखों की बिक्री प्रतिबंधित कर दी थी। पटाखे के बराबर ही फोड़े गए, मगर बावजूद इसके दीपावली के लगभग बीस दिन बाद राजधानी का धुंध की चपेट में जाना स्पष्ट करता है कि पटाखों, पराली जैसे छोटे कारकों को महत्व देकर किस तरह प्रदूषण के वास्तविक कारणों से मुंह चुराया जा रहा है। ये चीजें साल में कभी-कभार बार होती हैं, मगर प्रदूषण की समस्या तो सार्वकालिक रूप से देश भर में मौजूद है। इसके खात्मे के लिए जरूरी है कि प्रदूषण के छोटे-छोटे कारकों पर रोक लगाकार मन बहलाने की बजाय इसके बड़े और वास्तविक कारणों से निपटने के लिए कुछ कड़े कदम उठाए जाएं।     

देश में प्रदूषण की स्थिति पर दृष्टि डालें तो गत वर्ष विश्व स्वास्थ्य संगठन ने वायु प्रदूषण को लेकर एक रिपोर्ट पेश की थी, जिसमें वायु प्रदूषण के मामले में भारत की स्थिति को काफी चिंताजनक बताया गया रिपोर्ट के अनुसार दुनिया के प्रत्येक दस में से नौ व्यक्ति प्रदूषित वायु में सांस लेने को मजबूर हैं और वायु प्रदूषण से होने वाली हर तीन में से दो मौतें भारत तथा दक्षिण-पूर्व एशिया में होती हैं समझा जा सकता है कि भारत में वायु प्रदूषण बेहद चिंताजनक स्तर पर है इस स्थिति को और अच्छे से समझने के लिए अगर गौर करें तो गत वर्ष ही केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा देश के २१ चुनिन्दा शहरों की वायु गुणवत्ता पर एक रिपोर्ट जारी की गयी थी, जिसके अनुसार उन २१ में से महज एक शहर हरियाणा का पंचकुला ही रहा, जहाँ वायु गुणवत्ता का स्तर संतोषजनक था इसके अतिरिक्त मुंबई और पश्चिम बंगाल के शहर हल्दिया में भी वायु की गुणवत्ता कुछ ठीक मिली, लेकिन शेष सभी शहरों की हवा का स्तर मध्यम और ख़राब से लेकर बहुत ख़राब तक पाया गया इनमें मुजफ्फरपुर, लखनऊ, राजधानी दिल्ली, वाराणसी, पटना, फरीदाबाद, कानपुर, आगरा आदि शहरों का प्रदूषण स्तर क्रमशः बहुत ख़राब पाया गया इन शहरों में दिल्ली तीसरे सबसे अधिक प्रदूषित शहर के रूप में मौजूद था प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के ये आंकड़े भले ही अभी सिर्फ चुनिन्दा २१ शहरों की तस्वीर पेश कर रहे हों, लेकिन वास्तविकता यही है कि वायु प्रदूषण दिन दिन पूरे देश के लिए भीषण संकट बनता जा रहा है। ये अलग बात है कि दिल्ली इससे कुछ अधिक प्रभावित है। दिल्ली चूंकि देश की राजधानी है, इसलिए उसका इस तरह से जहरीली हवा से युक्त होना चिंताजनक है


प्रदूषण के वास्तविक कारणों पर गौर करें तो पूर्व केन्द्रीय पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर द्वारा राज्य सभा में जारी एक आंकड़े के मुताबिक़ देश की राजधानी दिल्ली में वायु प्रदूषण जनित बीमारियों से प्रतिदिन लगभग ८० लोगों की मौत होती है। नासा सैटेलाइट द्वारा इकट्ठा किए गए आंकड़ों से पता चलता है कि दिल्ली में पीएम-25 जैसे छोटे कण की मात्रा बेहद अधिक है। औद्योगिक उत्सर्जन और वाहनों द्वारा निकासित धुंए से हवा में पीएम-2.5 कणों की बढ़ती मात्रा घनी धुंध का कारण बन रही है। अभी बीते अक्टूबर में एनवायर्मेंट पॉल्यूशन बोर्ड द्वारा प्रस्तुत एक रिपोर्ट के मुताबिक़ दिल्ली की हवा में प्रति घन मीटर 200 माइक्रोग्राम पीएम2.5 प्रदूषक तत्व दर्ज किये गये. यह विश्व स्वास्थ्य संगठन की सेफ लिमिट से 8 गुना ज्यादा है 25 माइक्रोग्राम को सेफ लिमिट माना जाता है देश की राजधानी की ये स्थिति चौंकाती भले हो, लेकिन यही सच्चाई है। इंकार नहीं कर सकते  कि इसी कारण दिल्ली दुनिया के दस सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में शामिल है। यह हाल सिर्फ दिल्ली का नहीं है, वरन देश के अन्य महानगरों की भी कमोबेश यही स्थिति है। इन स्थितियों के कारण ही वातावरण में सुधार  के मामले में भारत की स्थिति में काफी गिरावट आई है। बीते दिनों एक अध्ययन में सामने आया था कि वायु प्रदूषण के मामले में भारत की स्थिति ब्रिक्स देशों में सबसे खस्ताहाल है।  इस वायु प्रदूषण के कारण देश में प्रतिवर्ष लगभग छः लाख लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ता है। इस पर तर्क यह दिया जा सकता है कि पाकिस्तान, श्रीलंका आदि देशों की जनसख्या, औद्योगिक प्रगति और वाहनों की मात्रा भारत की अपेक्षा बेहद कम है, इसलिए वहां वायु प्रदूषण का स्तर नीचे है। लेकिन इस तर्क पर सवाल यह उठता है कि स्विट्ज़रलैंड, आस्ट्रेलिया, सिंगापुर आदि देश क्या औद्योगिक प्रगति नहीं कर रहे या उनके यहाँ वाहन नहीं हैं, फिर भी वो दुनिया के सर्वाधिक वातानुकूलित देशों में कैसे शुमार हैं ? और क्या ऐसी दलीलों के जरिये देश के कर्णधार इसको प्रदूषण मुक्त करने की अपनी जिम्मेदारी से बच सकते हैं ?

बहरहाल, इन तथ्यों से स्पष्ट है कि भारत में वायु प्रदूषण अत्यंत विकराल रूप ले चुका है। दुर्योग यह है कि देश इसको लेकर बातों में तो चिंता व्यक्त करता है, पर इसके निवारण रोकथाम के लिए ठोस ढंग से कुछ करता नहीं दिखता। इन बातों के आलोक में हम प्रदूषण के वास्तविक कारणों की पहचान भी कर सकते हैं, परन्तु इन कारणों को रोकने के लिए सरकार से लेकर न्यायालय तक किसीके द्वारा कोई पहल कभी की गई हो, ऐसा याद नहीं आता।   

दरअसल वायु प्रदूषण औद्योगिक प्रगति से अधिक इस बात पर निर्भर करता है कि आप प्रगति और प्रकृति के मध्य कितना बेहतर संतुलन रख रहे हैं। अगर प्रगति और प्रकृति के बीच संतुलन स्थापित किया जाय तो केवल वायु प्रदूषण वरन हर तरह के प्रदूषण से निपटा   जा सकता है। पर इस संतुलन के लिए कानूनी स्तर से लेकर जमीनी स्तर पर तक मुस्तैदी दिखानी पड़ती है, जिस मामले में यह देश काफी पीछे है। प्रदूषण को लेकर हमारे हुक्मरानों की उदासीनता को इसीसे समझा जा सकता है कि देश का कोई भी राजनीतिक दल अपने घोषणापत्र में प्रदूषण नियंत्रण से सम्बंधित कोई वादा नहीं करता। ऐसे किसी वादे से इसलिए परहेज नहीं किया जाता  कि प्रदूषण नियंत्रण कठिन कार्य है, क्योंकि इससे कठिन-कठिन वादे हमारे हुक्मरानों द्वारा कर दिए जाते हैं। लेकिन वे प्रदूषण नियंत्रण जैसे वादे से सिर्फ इसलिए परहेज करते हैं कि उनकी नज़र में ये कोई मुद्दा नहीं होता।

उपर्युक्त सभी बातों को देखते हुए आज जरूरत यही प्रतीत होती है कि सरकार और नागरिक दोनों इस सम्बन्ध में चेत जाएं और वायु को जीवन के अनुकूल रखने के लिए केवल बातों से वरन अपने आचरण से भी गंभीरता का परिचय दें। इस सम्बन्ध में अपने-अपने स्तर पर अपने कर्तव्यों का निर्वहन करें। क्योंकि सारी प्रगति तभी होगी जब हम जीएंगे और हम जीएंगे तभी, जब धरती पर स्वच्छ और सांस लेने योग्य वायु होगी।

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