रविवार, 21 दिसंबर 2014

आतंक से मिलकर लड़ने की जरूरत [डीएनए में प्रकाशित]

  • पीयूष द्विवेदी भारत 

डीएनए 
यूँ तो पाकिस्तान में आतंकियों का वर्चस्व ही ऐसा है कि वहां वे आए-दिन कहीं न कहीं छोटे-बड़े हमले करते ही रहते हैं, लेकिन पाकिस्तान के पेशावर स्थित आर्मी स्कूल पर हुआ ताज़ा आतंकी हमला तो अमानवीयता की सारी हदें पार करने वाला है। प्राप्त जानकारी के अनुसार बीते मंगलवार सुबह तकरीबन ११ बजे पाकिस्तानी रेंजर्स के ड्रेस में करीब ६-७ आतंकी स्कूल में घुस गए और अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दिए। उस वक्त विद्यालय में छात्र व शिक्षक मिलाकर कुल ५०० लोग मौजूद थे, जिनमे से १३२ बच्चों समेत १४० से ऊपर लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी। साथ ही तकरीबन २५० लोग घायल भी हुए हैं। सभी आतंकियों ने सुसाइड जैकेट पहन रखे थे जिनमे से चार ने खुद को धमाका करके उड़ा दिया, तो बाकी को पाक सुरक्षाबलों ने मार गिराया।  आतंकी संगठन तहरीके-तालिबान पाकिस्तान द्वारा इस बर्बर आतंकी हमले की जिम्मेदारी लेते हुए कहा गया है कि यह हमला उत्तरी वजीरिस्तान में पाक सेना द्वारा की गई कार्रवाई का नतीजा है। अब यहाँ सोचने वाली बात यह है कि आखिर मासूम बच्चों की जान लेने से आतंकियों का पाक सेना से कौन सा बदला पूरा हुआ ? अगर उन्हें बदला लेने की ऐसी बेचैनी थी तो सेना का सामना करके बदला ले लेते, मासूम बच्चों ने आखिर उनका क्या बिगाड़ा था, जो उनकी जान के दुश्मन बन गए। दरअसल, बात सिर्फ सेना से बदले की नहीं है, आतंकियों के हमले के लिए इस आर्मी स्कूल को चुनने के पीछे कई और वजहें भी हो सकती हैं। गौरतलब है कि अभी हाल ही में बच्चों की शिक्षा के लिए तालिबान के विरुद्ध आवाज उठाकर अपनी जान की बाजी लगा देने वाली मलाला युसुफजई को नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। कहीं न कहीं स्कूल पर हमले के जरिये आतंकियों ने मलाला को नोबेल मिलने का विरोध जताने की भी कोशिश की है। अब जो भी हो, पर इस आतंकी हमले ने एकबार फिर यह स्पष्ट कर दिया है कि आतंकियों के आगे पाकिस्तानी सेना समेत पाकिस्तान की पूरी सुरक्षा व्यवस्था बेहद बेबस और लाचार हो चुकी   है। आब चूंकि पाकिस्तान भारत का सबसे निकटवर्ती पड़ोसी देश है, ऐसे में पाकिस्तान में आतंकियों का ये बोलबाला भारत के लिए भी बड़ी चिंता का विषय है। इसी हमले को लें तो ये जिस पेशावर में हुआ है, वो भारत की राजधानी नई दिल्ली से महज ९०० किमी दूर है। कहने का मतलब यह है कि दूरी सिर्फ सरहदों की यानी नाम भर की है, वर्ना जमीन पर पाकिस्तान में मचने वाला आतंक भारत से बहुत दूर नहीं है। दरअसल, यह वो समय है जब अफ़गानिस्तान से नाटो सेनाएं जिन्होंने तालिबान पर काफी हद तक अंकुश कर रखा था, वापसी कर रही हैं। ऐसे में, तालिबानी आतंकी अब बेहद निरंकुश हो चुके हैं । इन आतंकियों की ये निरंकुशता न सिर्फ पाकिस्तान के लिए संकट का सबब है, बल्कि भारत के लिए भी बेहद चिंताजनक है । यह आतंकी जम्मू-कश्मीर सीमा पर अशांति फैलाने से लेकर भारत में तबाही मचाने तक अनेक घातक मंसूबों के साथ-साथ भारत की तरफ भी अवश्य ही बढ़ेंगे । और उनके इन मंसूबों को पूरा करने के लिए उन्हें पाकिस्तानी सेना से मदद नहीं मिलेगी, यह अब भी विश्वास से नहीं कहा जा सकता बहरहाल, पाकिस्तान में हुए इस बर्बर आतंकी हमले को देखते हुए भारत में सुरक्षा के स्तर पर भारी सजगता बरतने के निर्देश सुरक्षा एजेंसियों को दे दिए गए हैं।

  इसमें तो कोई संदेह नहीं कि पेशावर में जो हुआ है, वो बेहद दुखद है और इस मामले में भारत की संवेदनाएं पूरी तरह से पाकिस्तान के साथ हैं, लेकिन बावजूद इसके इस तथ्य से भी  इंकार नहीं किया जा सकता कि आज जो आतंक पाकिस्तान के लिए नासूर बन चुका है, उसे पालने-पोषने वाला वो खुद ही है अब इस ताज़ा मामले में ही देखें तो भारत जहाँ पाक में हुए इस आतंकी हमले पर शोकाकुल है तो वहीं पाक में बैठा २६/११ का मास्टर माइंड हाफिज सईद इस आतंकी हमले के लिए भारत को ही दोषी ठहरा रहा है । विडम्बना यह है कि हाफिज सईद के इस बयान पर पाकिस्तान खामोश है । अभी हाल ही में पेंटागन की एक रिपोर्ट में भी कहा गया कि भारत की मजबूत व शक्तिशाली सेना का मुकाबला करने के लिए पाकिस्तान आतंकियों की मदद लेता रहा है । इन तथ्यों से स्पष्ट है कि आज पाकिस्तान वही काट रहा है, जो कभी उसने बोया था। पाकिस्तानी ख़ुफ़िया एजेंसी आईएसआई हो, पाकिस्तानी सेना हो या पाकिस्तानी हुकूमत हो, इनमे से कोई ऐसा नहीं है, जिसने भारत में आतंक फैलाने के लिए आतंकियों को शह नहीं दी हो। भारत में होने वाले अधिकांश आतंकी हमलों में किसी न किसी तरह आईएसआई आदि का हाथ सामने आता रहा है। फिर चाहें वो संसद भवन पर हुआ हमला हो या मुंबई में हुआ २६/११ का हमला या और भी तमाम आतंकी हमले, सभी में पाकिस्तानी ख़ुफ़िया एजेंसी, सेना व पाकिस्तानी हुकूमत की भूमिका पाई गई है। पर दुर्भाग्य तो ये है कि इतने के बाद भी अबतक इस संबंध में पूरी तरह से पाकिस्तान की अक्ल पर से परदा नहीं हटा  है। वो अब भी आतंकवाद को लेकर भारत के साथ मिलकर लड़ने की बजाय भारत में आतंकी हमले करवाने की अपनी कोशिशें जारी रखे हुए है। सीमा पर पाकिस्तानी सेना द्वारा जो आए दिन संघर्ष विराम का उल्लंघन किया जाता है, उसका उद्देश्य यही होता है कि गोलीबारी के बीच कुछ आतंकियों को भारतीय सीमा में घुसा दिया जाए। इसके अलावा अभी कुछ समय पहले ही भारतीय सुरक्षा एजेंसियों द्वारा टुंडा आदि जो कुछ आतंकी पकड़े गए हैं, उनके तार भी पाकिस्तानी ख़ुफ़िया एजेंसी से ही जुड़ते नज़र आ रहे हैं। स्पष्ट है कि भारत को तबाह करने के लिए उपजाए अपने आतंकवाद के चक्र में बुरी तरह पिसने के बावजूद पाकिस्तान के रवैये में अब तक कोई विशेष सुधार नहीं आया है। उचित तो ये होता कि आतंकियों व तमाम हथकण्डों के जरिये भारत को मिटाने का ख्वाब देखने की बजाय पाकिस्तान पूरी इच्छाशक्ति से भारत के साथ मिलकर आतंक के खिलाफ लड़ता। ऐसा करके ही वो आतंक के चंगुल से स्वयं को बचा सकता है, वरना वो स्वयं तो आतंक से जूझेगा ही, समूची दुनिया को भी परेशानी में डाले रहेगा।

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