- पीयूष द्विवेदी भारत
दैनिक जागरण |
इसे विडम्बना नहीं तो और क्या कहेंगे कि आज जहाँ
एक तरफ दुनिया की आबादी के एक बड़े हिस्से को खाने के लिए भरपेट अन्न नहीं मिल रहा
और वो भुखमरी से अभिशप्त जीवन गुजारने को विवश है, तो वहीँ दूसरी तरफ इसी दुनिया
की आबादी के एक दुसरे बड़े हिस्से में बढ़ रहा मोटापा धीरे-धीरे इसके लिए एक बड़ा संकट बनता जा रहा है।
यह बात चौंकाने वाली अवश्य है किन्तु सत्य है कि आज मोटापा दुनिया के लिए धूम्रपान
और आतंकवाद के बाद तीसरा सबसे बड़ा संकट बन चुका है। इस तथ्य का खुलासा मैकेंजी
ग्लोबल इंस्टिट्यूट (एमजीआई) द्वारा अभी हाल ही में जारी की गई एक अध्ययन रिपोर्ट से हुआ है। रिपोर्ट के अनुसार
आज दुनिया में सामान्य से अधिक वजन वाले लोगों समेत पूरी तरह से मोटापे से ग्रस्त
लोगों की संख्या लगभग २.१ अरब है जो कि वैश्विक आबादी का ३० प्रतिशत है।
रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि लोगों में बढ़ रहे मोटापे के चलते आज वैश्विक अर्थव्यवस्था को प्रतिवर्ष तकरीबन
२००० अरब डॉलर का नुकसान उठाना पड़ रहा है। रिपोर्ट में यह आशंका भी जताई गई
है कि अगर दुनिया में इसी तरह मोटापा बढ़ता रहा तो अगले डेढ़ दशक में दुनिया की आधी
आबादी पूरी तरह से इसकी चपेट में आ सकती है। गौर करने वाली बात यह भी है कि
विकासशील देशों में मोटापे की समस्या का प्रकोप कुछ अधिक ही है। आंकड़े के
मुताबिक विकासशील देशों में स्वास्थ्य के मद में होने वाले कुल खर्च में मोटापे की
हिस्सेदारी यों तो अधिकतम ७ प्रतिशत है, लेकिन अगर इसमें मोटापाजनित बीमारियों के खर्च को भी जोड़ दें तो
ये आंकड़ा २० प्रतिशत के पास पहुँच जाता है। इन तथ्यों को देखते हुए सर्वाधिक चिंताजनक प्रश्न यह उठता है कि अभी जब
दुनिया में ३० फीसद लोग कमोबेश मोटापे से ग्रस्त हैं, तब ये समस्या वैश्विक
अर्थव्यवस्था को २००० अरब डॉलर यानि वैश्विक जीडीपी के २.८ प्रतिशत का नुकसान पहुँचा
रही है। ऐसे में उक्त रिपोर्ट के अनुसार अगर अगले डेढ़ दशक में दुनिया की
आधी आबादी पूरी तरह से इसकी चपेट में आ गई, तब यह वैश्विक अर्थव्यवस्था को कितनी
हानि पहुंचाएगा ? संभव है कि तब मोटापा दुनिया के लिए सबसे बड़ी और चुनौतीपूर्ण समस्या
बन जाय। एक ऐसी समस्या जिसके लिए दुनिया किसी भी तरह से तैयार न हो।
इसी
क्रम में अगर इस बात पर विचार करें कि आखिर मोटापा किस प्रकार वैश्विक
अर्थव्यवस्था को कुप्रभावित करता है तो कई चीजे हमारे सामने आती हैं।
दरअसल, मोटापा एक ऐसी समस्या है जो न सिर्फ ग्रस्त व्यक्तियों के निजी व्यक्तित्व
को बल्कि उनके समग्र कार्य-कलापों, कार्य-क्षमताओं व गतिविधियों को बुरी तरह से प्रभावित करता है।
इसको थोड़ा और अच्छे से समझने की कोशिश करें तो एक तरफ तो मोटे व्यक्तियों की खाद्य
आवश्यकता सामान्य व्यक्ति से कहीं अधिक होती है, वहीँ दूसरी तरफ वे अपने सामान्य से अधिक वजन के कारण सामान्य वजनी
लोगों की अपेक्षा काफी सुस्त व ढुलमुल रवैये वाले हो जाते हैं। अर्थात उनकी
स्वास्थ्य सम्बन्धी लागत जहाँ सामान्य से बहुत अधिक होती है, वही सुस्त व ढुलमुल
रवैये के कारण उनकी उत्पादकता का स्तर
काफी कम होता है। सीधे शब्दों में कहें तो मोटे व्यक्तियों में खपत बहुत
अधिक होती है जबकि उनसे उत्पादकता बेहद कम। अब मोटे लोगों में खपत और उत्पादकता के बीच का यह असंतुलन ही वो
कारण है कि आज मोटापा वैश्विक अर्थव्यवस्था को भारी हानि पहुँचा रहा है।
हालांकि ऐसा नहीं है कि आज दुनिया इस समस्या को लेकर बिलकुल भी सचेत नहीं
है। दुनिया में मोटापे को नियंत्रित करने के लिए कमोबेश प्रयास किए जा रहे
हैं। एमजीआई के उपर्युक्त अध्ययन में ही दुनिया में मोटापे की रोकथाम के
लिए किए जा रहे करीब छः दर्जन प्रयासों का उल्लेख किया गया है। इनमे खाद्य पदार्थों पर कैलोरी व पोषण की जानकारी
देने से लेकर जन स्वास्थ्य जैसे अभियान चलाने तक के उपायों की लम्बी फेहरिस्त है।
हालांकि अध्ययन में पाया यही गया है कि इनमे से अधिकाधिक प्रयास मोटापे की रोकथाम
में कोई ख़ास कारगर नहीं हो रहे। विचार करें तो इन उपायों के विशेष रूप से
कारगर न रहने के पीछे मूल कारण जागरूकता का अभाव ही है। होता ये है कि
मोटापा उन्ही लोगों को सर्वाधिक चपेट में लेता है जो खान-पान के विषय में अजागरूक,
केवल स्वादलोभी व बेहद आलसी होते हैं। ऐसे लोग स्वाद लेने के चक्कर में
उच्च कैलोरीयुक्त खाना तो खूब खाते हैं, लेकिन आलस के मारे उस कैलोरी की मात्रा
को नियंत्रित करने के लिए कोई विशेष
व्यायाम आदि नहीं करते। परिणाम यह
होता है कि उनके शरीर में धीरे-धीरे कैलोरी की मात्रा काफी अधिक हो जाती है और वे
मोटापे की समस्या से ग्रस्त हो जाते हैं। अतः कुल मिलाकर स्पष्ट है कि मोटापे की समस्या पर रोकथाम के लिए सबसे
पहली आवश्यकता जागरूकता लाने की है। अब चूंकि मोटापा किसी एक देश की समस्या
नहीं है, इससे दुनिया का कमोबेश हर देश प्रभावित है। ऐसे में इसकी रोकथाम
के लिए जागरूकता लाने को वैश्विक स्तर पर प्रयास किया जाना चाहिए। जागरूकता
अभियानों के जरिये लोगों को यह समझाने की जरूरत है कि मोटापा न सिर्फ उनके निजी
व्यक्तित्व को बेढंग कर देता है, बल्कि उनकी कार्य क्षमता पर भी काफी बुरा असर
डालता है। इसके अतिरिक्त मोटापे से बचने के लिए खुराक सम्बन्धी तमाम जानकारियों
समेत नियमित व्यायाम आदि के बारे भी लोगों
को बताया जाना चाहिए। इस दिशा में प्रधानमंत्री मोदी द्वारा यूएन में रखी
गई ‘अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस’ की सोच को यूएन की मान्यता मिलना काफी कारगर सिद्ध
हो सकता है। अंतर्राष्ट्रीय योग
दिवस जैसी चीज से योग व व्यायाम आदि को
लेकर लोगों में स्वतः ही काफी जागरूकता आएगी। अब अगर लोग अपने जीवन में
नियमित योग व व्यायाम को स्थान देने लगें तो मोटापे की समस्या को छूमंतर होने में
ज्यादा समय नहीं लगेगा। अतः कुल मिलाकर कहने का आशय यही है कि अगर दुनिया
को मोटापे की इस समस्या जो काफी विकराल रूप ले चुकी है तथा आगे और विकराल हो सकती
है, से बचना है तो उसे अभी से इस दिशा में गंभीर होते हुए उपर्युक्त प्रयास करने
की जरूरत है। क्योंकि अगर अभी इसको लेकर गंभीरता न दिखाई गई तो संभव है कि
एक समय ऐसा आ जाएगा जब दुनिया के लिए मोटापे की इस समस्या से मुक्ति पाना तो दूर,
इसको झेलना मुश्किल हो जाएगा।
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