- पीयूष द्विवेदी भारत
कोरोना वायरस के
रूप में आज विश्व एक ऐसी चुनौती से दो-चार हो रहा है, जिसका उसे अभी पूरी तरह से
अंदाजा नहीं है। चीन से उपजी इस महामारी के मरीजों की संख्या के मामले में पहले
स्थान पर पहुँच चुके महाशक्ति अमेरिका द्वारा इस स्थिति को अदृश्य शत्रु के खिलाफ
लड़ाई बताया जा रहा है। स्वास्थ्य व्यवस्था के मामले में अग्रणी फ़्रांस, इटली और
स्पेन जैसे देश भी इस आपदा के आगे घुटने टेक चुके हैं। कुल मिलाकर अब दुनिया की
निगाहें भारत पर टिकी हैं, जो अबतक खुद को कोरोना के तीसरे और बेहद खतरनाक चरण में
जाने से बचाए हुए है, लेकिन चीन को छोड़ अन्य सभी देशों के मुकाबले अपनी विशाल
जनसंख्या के कारण स्थिति बिगड़ने पर होने वाले भारी नुकसान से आशंकित भी है।
देश में गत 25
मार्च से आगामी 14 अप्रैल
तक के लिए लॉकडाउन किया जा चुका है और इसे सफल बनाने के लिए सभी स्तरों पर प्रयास
किए जा रहे हैं। देश की अधिकांश आबादी अपने घरों में बैठी हुई है और खुद को तथा
देश को इस तीव्र संक्रमण वाली महामारी से बचाने में लगी है। लेकिन इस लॉकडाउन में
भी देश के चिकित्सक, पुलिस बल और पत्रकार जिस प्रकार से अपनी जान हथेली पर लेकर
लोगों के लिए कार्य कर रहे हैं, उस योगदान के लिए कोई भी शब्द कम है, लेकिन इसके
साथ ही यह स्थिति भविष्य के लिए हमारे समक्ष कुछ प्रश्न भी छोड़े जा रही है।
अबतक हम यही मानते आए हैं कि देश की सरहद पर खड़े सेना के जवानों को ही हर
हाल में अपनी ड्यूटी निभानी पड़ती है। इस बात का ध्यान सैन्य बलों के प्रशिक्षण में
भी रखा जाता है और उन्हें इस बात के लिए शरीर और मन से तैयार किया जाता है कि कैसी
भी स्थिति में वो अपने दायित्व का निर्वाह कर सकें। लेकिन मौजूदा स्थिति ने हमें
यह सोचने पर विवश कर दिया है कि सेना के साथ-साथ कुछ अन्य क्षेत्र भी हैं, जिनको
आपात स्थिति की सेवाओं के लिए तैयार करने पर काम किया जाना चाहिए।
आज जो हालात हैं, वो किसी सैन्य युद्ध से कम नहीं हैं बल्कि इस मायने में
उससे बढ़कर ही है कि इसमें एक अदृश्य शत्रु जिसको खत्म करने का उपाय भी हमारे पास
नहीं है, से निपटना है। इस युद्ध में कोई सेना नहीं लड़ रही बल्कि यहाँ लड़ाई हमारे
स्वास्थ्यकर्मी, पुलिसकर्मी और पत्रकार लड़ रहे हैं। आज ये लोग जिस स्तर पर और जिस
जोखिम के साथ अपने कर्तव्य के निर्वाह में में जुटे हैं, वो सेना के जवानों से
बिलकुल भी कम नहीं है। लेकिन क्या ऐसी चुनौती के लिए इनको प्रशिक्षित किया गया है?
क्या ये शारीरिक-मानसिक रूप से इस तरह की आपदा में काम करने के लिए तैयार हैं?
जैसे सेना के पास युद्ध की स्थिति के लिए सदैव गोला-बारूद और जरूरी उपकरण अतिरिक्त
रूप से तैयार होते हैं, क्या स्वास्थ्य-पुलिस जैसे क्षेत्रों में ऐसी आपात स्थिति
में काम करने के लिए जरूरी संसाधन हैं? दुर्भाग्यवश इन प्रश्नों के उत्तर काफी हद
तक नकारात्मक ही हैं।
भारत में चिकित्सकों की कमी की बात किसी से छिपी नहीं है। विश्व स्वास्थ्य
संगठन के अनुसार प्रति एक हजार व्यक्तियों पर एक चिकित्सक का होना अच्छी स्थिति
होती है। लेकिन फिलहाल भारत इस अनुपात से दूर है। कारण आबादी की विशालता और उसके
मुकाबले कम चिकित्सक होना ही है। इसके अलावा जब यह आपदा आई तो स्वास्थ्य से जुड़ी
अन्य चीजों यथा मास्क, चिकत्सकीय गाउन, अस्पतालों में बिस्तर आदि की कमी भी समस्या
के रूप में सामने आए। कोरोना की ‘टेस्टिंग किट’ तैयार करने में हमें वक़्त लगा जिस
कारण इसकी जांच तेजी से नहीं हो पाई। हालांकि अब इसमें गति आई है।
पुलिसकर्मियों की बात करें तो वे सड़क पर लॉक डाउन को सफल बनाने और
अव्यवस्था न होने देने के लिए खड़े हैं, लेकिन इस स्थिति से निपटते हुए उनकी जान को
जो जोखिम है, उसे कम करने के लिए क्या हमारे पास कोई योजना है? इसी प्रकार पत्रकारों
को भी अपना काम करना ही है, क्योंकि इस स्थिति में लोगों तक सही सूचनाएं पहुंचाने
और उन्हें जागरूक रखने में उनकी भूमिका महत्वपूर्ण है, लेकिन क्या उनकी सुरक्षा और
हितों को लेकर कोई ठोस आश्वासन है?
कहने की आवश्यकता नहीं कि फिलहाल इन सब सवालों के स्पष्ट और संतुष्टिदायक
उत्तर किसी के पास नहीं हैं। उक्त चुनौतियों के लिए सरकार पर दोषारोपण कर देना एक
बहुत आसान रास्ता हो सकता है, लेकिन इसका कोई औचित्य नहीं है, क्योंकि यह समस्या
इतनी आकस्मिक और विकट है कि बड़े-बड़े समर्थ देश खुद को नहीं संभाल पा रहे, फिर भारत
जैसे विशाल आबादी वाले एक विकासशील देश के लिए चीजें आसान रहने की अपेक्षा करना
बेमानी होगी। निश्चित ही फिलहाल हमारा पूरा ध्यान सभी संभव विकल्पों को आजमाते हुए
और जितना हो सके अपने स्वास्थ्यकर्मियों-पुलिसकर्मियों को सुरक्षित रखते हुए इस
आपदा से निपटने पर होना चाहिए। लेकिन इस आपदा से निपटने के बाद हमें अपनी
तैयारियों को ऐसी नयी चुनौतियों जो भविष्य में और भी आ सकती है, के अनुरूप पुख्ता
करने की दिशा में काम करना होगा।
इस आपदा ने हमें इस सत्य
से अवगत करा दिया है कि आज केवल सेना को सुसज्जित व मजबूत रखके कोई देश अपनी
सुरक्षा के प्रति आश्वस्त नहीं रह सकता, क्योंकि इस नए समय में लड़ाई के और मोर्चे
भी खुल गए हैं, जहां जीत हासिल करने के लिए नयी रणनीति और तैयारी की जरूरत है। आगे
दुनिया को मिलकर इन तैयारियों पर काम करना होगा।
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