गुरुवार, 10 अक्तूबर 2019

बिग बॉस की लोकप्रियता के निहितार्थ (दैनिक जागरण में प्रकाशित)


  • पीयूष द्विवेदी भारत

3 नवम्बर, 2006 को बिग बॉस की शुरुआत सोनी टीवी पर हुई थी। ये इसका पहला सीजन था, जिसमें संचालक (होस्ट) की भूमिका बॉलीवुड अभिनेता अरशद वारसी ने निभाई थी। घर के भीतर पंद्रह लोगों के साथ लगभग तीन महीने चले इस कार्यक्रम ने ऐसी लोकप्रियता पाई कि इसके एक बाद एक सीजन आने शुरू हो गए। कार्यक्रम की बढ़ती लोकप्रियता के कारण अरशद वारसी बीती बात हो गए और सिनेमा जगत के बड़े नामों ने शो के संचालन (होस्टिंग) में दिलचस्पी लेनी शुरू कर दी। शिल्पा शेट्टी, संजय दत्त, सलमान खान और यहाँ तक कि सदी के महानायक अमिताभ बच्चन भी खुद को इससे दूर नहीं रख सके। अमिताभ बच्चन इसके तीसरे सीजन में संचालक की भूमिका में नजर आए। हालांकि ये शो उन्हें अपने लिए उपयुक्त नहीं लगा या कुछ और कारण रहा कि अगले सीजन में वे इससे अलग हो गए और फिर सञ्चालन का दारोमदार सलमान खान को मिल गया। पांचवे सीजन में सलमान के साथ संजय दत्त भी इससे जुड़े लेकिन ये प्रयोग इसी एक सीजन तक चला और छठे सीजन से सलमान ही इसका सञ्चालन कर रहे हैं।
सलमान खान के सञ्चालन में इसकी टीआरपी अधिक बेहतर रहने के कारण सलमान ने सबसे ज्यादा इसके नौ सीजन (अकेले) होस्ट किए हैं। अभी इसका तेरहवां सीजन टीवी पर प्रसारित हो रहा है, जिसके संचालक सलमान ही हैं। हालांकि इसबार अभिनेत्री अमीषा पटेल भी घर की मालकिनके रूप में कार्यक्रम से जुड़ी हैं।  
बिग बॉस में क्या होता है ये बताने की जरूरत नहीं है। सब जानते हैं कि विविध क्षेत्रों, ज्यादातर टीवी-सिनेमा से सम्बंधित, के प्रसिद्ध लोगों को एक निश्चित समयसीमा के लिए एक घर में बंद कर उनके व्यवहार को कैमरों के जरिये देखा जाता है, जिसका व्यवहार सबसे बेहतर रहता है और कुछ अभद्रता आदि नहीं करता, वो विजेता बनता है। उसे एक बड़ी धनराशि प्राप्त होती है।
मगर, यहाँ जानने वाली महत्वपूर्ण बात यह है कि इस शो की टीआरपी का असल कारण है - इसमें घुसे सेलेब्रिटियों के आपसी झगड़ों, विवादों, सनसनीखेज खुलासों और तरह-तरह की अन्तरंग चीजों का अश्लील प्रदर्शन और फिर उसपर बेमतलब का हल्ला व गाली-गलौज। इन चीजों के मद्देनज़र इस कार्यक्रम में प्रायः तमाम विवादित पृष्ठभूमि या विवादित रवैये वाले लोगों को ही लिया जाता है। बीते एक सीजन में इसमें विवादित स्वामी ओम को लिया गया था, जिसने बिग बॉस के घर में जाकर जो चाल-चलन और व्यवहार दिखाया, वो निर्लज्जता और अभद्रता की सारी सीमाएं तोड़ने वाला था। अनूप जलोटा और जसलीन का प्रकरण भी इसी बिग बॉस में घटित हुआ जिसे लेकर जलोटा साहब सोशल मीडिया पर खूब ट्रोल हुए और उनके चरित्र पर खूब आक्षेप लगे लेकिन कार्यक्रम खत्म होने के बाद ऐसी भी खबरें आईं कि ये सबकुछ केवल एक नाटक था। 
वर्तमान में चल रहा कार्यक्रम का यह तेरहवां सीजन भी चिर-परिचित अंदाज में अपनी शुरुआत के साथ ही विवादों में आ गया है। अश्लीलता के साथ-साथ धार्मिक भावनाओं को उकसाने की बात कहते हुए कार्यक्रम पर सवाल उठाए जा रहे। पिछले दिनों ट्विटर पर जेहाद फैलाता बिग बॉसट्रेंड करता रहा। जाहिर है, विवाद पैदा कर टीआरपी पाने की अपनी रणनीति में यह कार्यक्रम एकबार फिर कामयाब होता नजर आ रहा है।    
विचित्र बात यह है कि टीवी मीडिया की भी इस कार्यक्रम भारी दिलचस्पी होती है। प्रिंट तो नहीं, मगर टीवी और डिजिटल मीडिया में बिग बॉस शुरू होने के बाद बिग बॉस के घर में हुई घटनाओं को ऐसे दिखाया जाता है जैसे कोई बड़ी महत्वपूर्ण खबर हो। डिजिटल मीडिया में कार्यक्रम में हुई प्रत्येक गतिविधि का लिखित विवरण तक उपलब्ध कराया जाता है। ये स्थिति पत्रकारिता के इन आधुनिक धड़ों की नैतिकता पर प्रश्नचिन्ह ही खड़े करती है।
बिग बॉस की लोकप्रियता को लेकर भी कई सवाल उठते हैं। सोचिये जरा कि थक-हारकर कुछ पल टीवी के सामने बैठ दिमाग हल्का करने के लिए कुछ अच्छा देखने की बजाय बिग बॉस के घर में दूसरों के झगड़े देखने में लोगों का दिलचस्पी लेना किस प्रवृत्ति का सूचक है? दरअसल ये दिखाता है कि हम में दूसरों के जीवन में झाँकने और दूसरों के यहाँ होने वाले कलह-क्लेश का आनंद लेने की बुरी लत इतनी बढ़ चुकी है कि अब बाकायदा इसका खाते-पीते टीवी पर आनंद लेने लगे हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो हमारे मनोरंजन का स्वाद दिन-प्रतिदिन फूहड़ से फूहड़तम होता जा रहा है। दुर्भाग्यवश ये स्थिति शहरी और शिक्षित कहे जाने वाले तबके में अधिक है।
मगर इन सबसे बड़ी चिंता की बात यह है कि ये कार्यक्रम टीवी पर आता है, जिसे बच्चे भी देखते हैं, ऐसे में उनकी मानसिकता पर इसका क्या प्रभाव पड़ता होगा? क्या सीखेंगे वे सेलेब्रिटियों के झगड़ों, कामुक क्रियाकलापों और गाली-गलौज से? कितनी विचित्र बात है न कि एक तरफ अभिभावक बच्चों को गाली-गलौज और झगड़ों आदि से बचने की नसीहतें देते हैं और दूसरी तरफ खुद टीवी पर यही सब मजा ले-लेकर देखते हैं, तो उनके प्रति बच्चों में क्या राय बनेगी?
बिग बॉस तो एक उदाहरण है, ऐसे और भी तमाम शो हैं जो अलग-अलग चैनलों पर प्रसारित होते हैं जिनमें कुछ के नाम पर कुछ और दिखाकर टीआरपी बटोरी जाती है, मगर उन शोज का परिवारों और बच्चों पर क्या प्रभाव पड़ता होगा इसपर कभी विचार नहीं किया जाता। क्राइम पेट्रोल, सावधान इण्डिया, होशियार जैसे शो की रूपरेखा अलग है, मगर अपराध के प्रति जागरूकता फैलाने के नाम पर वे भी सामाजिक विकृति पैदा करने का ही काम कर रहे हैं।
इन आपराधिक कार्यक्रमों में रहस्य, रोमांच और सेक्स को मिला एक ऐसा कॉकटेल तैयार करके घरों में पहुँचाया जा रहा जिससे अपराध के प्रति जागरूकता आए न आए, मगर लोगों को अपराध करने के दस तरीके जरूर आ जाएंगे। अच्छा तो ये है कि लोग इस तरह कार्यक्रमों को देखने से परहेज करें। जब वे नहीं देखेंगे तो इनके निर्माता टीआरपी के अभाव में स्वतः इनपर विराम लगाएंगे। मगर इन कार्यक्रमों की सफलता इसका प्रमाण है कि ये लोगों को भा रहे हैं और लोग इसे देखना बंद करे देंगे, इसकी उम्मीद कम ही है। ऐसे में उपाय यही है कि सरकार ही बिग बॉस जैसे कार्यक्रमों में दिखाई जा रही सामग्री का गंभीरतापूर्वक संज्ञान ले और टीवी पर इनके प्रसारण को लेकर या तो कुछ कड़े नियम निर्धारित करे अथवा इनपर पूर्ण रोक लगाए।

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