शुक्रवार, 30 अगस्त 2019

सेक्रेड गेम्स : कला की आड़ में एजेंडा (दैनिक जागरण में प्रकाशित)

  • पीयूष द्विवेदी भारत

बीते पंद्रह अगस्त को फिल्म निर्माता-निर्देशक अनुराग कश्यप की चर्चित वेब सीरिज ‘सेक्रेड गेम्स’ का दूसरा सीजन नेटफ्लिक्स पर प्रसारित हुआ। इसका पहला भाग पिछले साल जून में आया था, जिसे समीक्षकों की सराहना और दर्शकों का रुझान तो मिला था, लेकिन साथ ही इसकी विषयवस्तु और सामग्री को लेकर कई सवाल भी उठे थे। गाली-गलौज भरे संवाद, वीभत्सता की सीमा तक हिंसा एवं एकदम नग्न सेक्स दृश्यों के कारण तो ये वेब सीरिज सवालों के घेरे में आई ही थी, कहानी में मौजूद धर्म और राजनीति से सम्बंधित मनमानी व्याख्याओं व टिप्पणियों ने भी इसके पीछे की नीयत को संदिग्ध बनाने का काम किया था। अब जब इसका दूसरा सीजन आया है, तो ये भी पूर्ववत ढंग से सवालों के घेरे में ही नजर आता है। 
सेक्रेड गेम्स के इस सीजन की कहानी हिन्दू आतंकवाद की वायवीय धारणा पर आधारित है, जिसका केंद्र गुरुजी (पंकज त्रिपाठी) का चरित्र है। गुरुजी पहले भाग में भी थे, लेकिन उन्हें कम संवाद और दृश्य मिले थे। मगर, इस सीजन में सब प्रमुख चरित्रों का सूत्र गुरुजी के ही हाथ में दिखाया गया है। गुरुजी का एक बड़ा-सा आश्रम है, जिसकी आड़ में ड्रग्स का कारोबार चलता है और वहां जाने वाले भक्तों को नशे से सम्मोहित कर लिया जाता है। उनके साथ अप्राकृतिक यौन क्रियाएं की जाती और करवाई जाती हैं। गुरुजी धरती पर पुनः ‘सत्ययुग’ लाना चाहते हैं और इसके लिए उनका तरीका यह है कि वर्तमान जगत को नष्ट कर दिया जाए। उनका मानना है कि अभी दुनिया के अलग-अलग भागों में जो संघर्ष चल रहा है, उसे और बढ़ाया जाए जिससे दुनिया के ख़त्म होने की प्रक्रिया तेजी से बढ़े। गुरुजी की इस योजना की एक प्रमुख कड़ी मुंबई में परमाणु विस्फोट करना है, जिससे भारत-पाकिस्तान सहित बाकी दुनिया में भी संघर्ष पैदा हो और विनाश की प्रक्रिया तीव्र हो जाए। यहाँ तक कि भारत विरोधी आतंकियों से भी गुरुजी के शिष्य अपने मिशन को पूरा करने के लिए मिल जाते हैं।
जाहिर है, गुरुजी के चरित्र के माध्यम से यह वेब सीरिज हिन्दू आतंकवाद की निराधार धारणा को स्थापित करने के प्रयास में दिखती है। मगर दिक्कत यह है कि जब आप सत्य से परे केवल अपने दुराग्रहों से उपजी किसी धारणा को स्थापित करने का प्रयास करते हैं, तो उसमें अतार्किकता और कृत्रिमता आ जाती है। यहाँ भी यही हुआ है। गुरुजी को पूरी साज़िश का सूत्रधार बनाए रखने के चक्कर में कहानी कई स्थानों पर एकदम अतार्किक हो गयी है। गुरुजी की हत्या के बाद गायतोंडे के कान में जादुई ढंग से जब-तब उनकी आवाज गूंजते रहना और उसीके प्रभाव में उसका बिना पूरी साज़िश का खुलासा किए  आत्महत्या कर लेना इस अतार्किकता का ही उदाहरण है। जिस तरह से आश्रम में नशे के द्वारा सम्मोहित कर लोगों को सत्ययुग लाने के मिशन के लिए तैयार किया जाता है, वो भी विचित्र ही लगता है। असल में गुरूजी के चरित्र को सर्वशक्तिमान दिखाने के अन्धोत्साह में कहानी कई तकनीकी खामियों का शिकार हुई है।  
धार्मिक प्रतीकों को लेकर भी सेक्रेड गेम्स-2 में कई आपत्तिजनक बातें दिखती हैं।  ‘अहम् ब्रह्मास्मि’ इस मंत्र का गुरुजी जाप करते हैं। ये यजुर्वेद से निकला एक महामंत्र है, जिसका अर्थ है कि मैं ही ब्रह्म हूँ। ऐसे महामंत्र का जाप गुरुजी अपनी अप्राकृतिक यौन क्रियाओं के दौरान भी करते हैं, जो कि भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाली बात ही है। इसी तरह ‘भगवान’ शब्द को लेकर अनेक आपत्तिजनक संवाद इस वेब सीरिज में मिलते हैं। उदाहरण के तौर पर गायतोंडे एक जगह अपने पिता के प्रति कहता है, ‘वो खुद को भगवान की …. का बाल समझता था’। ये संवाद इतना अनुचित और आपत्तिजनक है कि यहाँ पूरा लिखा तक नहीं जा सकता। सेक्रेड गेम्स-2 में भगवान के विषय में ऐसे अनेक अनुचित संवाद आए हैं। इसी तरह सरताज सिंह का गुस्से में अपना कड़ा निकालकर फेक देना भी अनुचित लगता है, जिसे लेकर भाजपा नेता तेजिंदर बग्गा की तरफ से केस भी कर दिया गया है। उल्लेखनीय बात ये है कि धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाली ये सब बातें वेब सीरिज की मूल कहानी से कोई ताल्लुक नहीं रखतीं और न ही उसमें कोई अतिरिक्त प्रभाव उत्पन्न करती हैं। अगर ये बातें इस वेब सीरिज में न होतीं तो भी इसकी कहानी को कोई विशेष फर्क नहीं पड़ता यानी कि इनसे बचा जा सकता था। लेकिन इसके बावजूद इन चीजों को वेब सीरिज में रखा जाना निर्माता-निर्देशकों की नीयत पर प्रश्नचिन्ह ही लगाता है। यह ठीक है कि देश में सबको अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है, लेकिन उसके साथ नैतिकता की एक मर्यादा भी होती है। यह अपेक्षा भी होती है कि आप अपनी इस स्वतंत्रता का उपयोग किसीकी भावनाओं को ठेस पहुँचाने के लिए नहीं करेंगे। मगर, दुर्भाग्यवश सेक्रेड गेम्स के दोनों ही सीजनों में कमोबेश यह किया गया है। 
बात इतने पर ही खत्म नहीं होती, बल्कि इस वेब सीरिज में यह स्थापित करने की भी कोशिश की गयी है कि देश में मुसलमान बड़ी बुरी दशा में हैं। इंस्पेक्टर माज़िद को मुसलमान होने के कारण घर न मिलने, कामकाज के दौरान अक्सर उसपर शक किए जाने जैसे प्रसंग हों या साद नामक मुस्लिम लड़के को सरेआम मार दिया जाना हो या यह संवाद कि ‘मुसलमान को उठाने के लिए वजह की जरूरत होती है क्या?’ हो, इन सब चीजों के माध्यम से यही धारणा गढ़ने की कोशिश हुई है कि भारत में मुस्लिम समुदाय बड़ी बुरी स्थिति में है। इस वेब सीरिज के निर्देशक अनुराग कश्यप अभी हाल ही में मुस्लिमों की मोब लिंचिंग को लेकर पीएम को पत्र लिखने वाले उनचास लोगों में शामिल रहे थे, ऐसा लगता है कि उन्होंने जिन पूर्वाग्रहों के आधार पर वो पत्र-अभियान चलाया था, इस वेब सीरिज में उन्हीं पूर्वाग्रहों को परोस दिए हैं। 

कितना विचित्र है न कि आज दुनिया में छाती ठोंक के जिस मजहब के नाम पर आतंकवाद चल रहा है, उसके विषय में खुलकर अनुराग कश्यप कुछ नहीं कहते, लेकिन जो हिन्दू आतंकवाद कहीं किसी रूप में अबतक सिद्ध नहीं हुआ है, उसकी एक कपोल-कल्पित कहानी बना डालते हैं। इसी तरह मोब लिंचिंग जैसी विशुद्ध आपराधिक समस्या का साम्प्रदायिकरण कर डालते हैं। यह सब चीजें समाज में गलत सन्देश देने वाली हैं। इनसे बचा जाना चाहिए था।

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