रविवार, 8 जुलाई 2018

पुस्तक समीक्षा : प्रेम की जटिलताओं का निरुद्देश्य आलाप [दैनिक जागरण के राष्ट्रीय संस्करण में प्रकाशित]

  • पीयूष द्विवेदी भारत

संदीप नैयर के उपन्यास ‘डार्क नाईट’ में प्रेम संबंधों की जटिलताओं से जूझते युवा मन की कथा कही गयी है। इस उपन्यास का मुख्य पात्र कबीर जब पंद्रह वर्ष की उम्र तक वड़ोदरा में रहने के बाद अपने माता-पिता के साथ लंदन पहुँचता है, तो वड़ोदरा की मानसिकता से लंदन की मानसिकता में ढलने की चुनौती उसके सामने आ खड़ी होती है। 

इसके बाद जो कुछ घटित होता है, उसे पढ़ते हुए पाठक के दिमाग में पहला सवाल ये उठ सकता है कि लंदन में किशोरों से लेकर युवाओं तक के मन में लड़कियों से इतर और कोई गुत्थी या समस्या नहीं होती क्या ? लगता तो ऐसा ही है, क्योंकि किशोर मन की गुत्थियों के नाम पर कबीर के मन में लड़कियों के प्रति उपज रही विविधवर्णी फंतासियों के अलावा उपन्यास में और किसी गुत्थी की चर्चा नहीं दिखाई देती। बहरहाल, इस सम्बन्ध में माना जा सकता है कि यह उपन्यास स्त्री-पुरुष के प्रेम संबंधों पर आधारित है, इसलिए लेखक ने अन्य बातों को अनदेखा कर सिर्फ उसीके इर्द-गिर्द कथानक बुना है। निश्चित ही इतनी छूट लेखक ले सकता है, लेकिन देखना यह भी होगा कि ये छूट लेने के बाद लेखक कथानक के मूल विषय के साथ कितना न्याय कर सका है ?

उपन्यास में मौजूद प्रेम और देह के संबंधों का जो रूप नजर आता है, वो फ़िल्मी कहानियों की ही याद दिलाता है। उसपर कहानी का जो अति-नाटकीय अंत होता है, वो इसे पूरा ही सिनेमाई बना देता है। इन सबके बीच अवसाद और अध्यात्म जैसे विषय तो पूरे उपन्यास में लगभग गुम ही रहे हैं। 

निष्कर्षतः कह सकते हैं कि लंदन की पृष्ठभूमि पर बुनी गयी इस कहानी में प्रेम के भौतिक और मानसिक दोनों ही स्वरूपों के अर्थ और महत्व सहित युवा ह्रदय में उठने वाली प्रेम सम्बन्धी फंतासियों को रेखांकित करने का प्रयास तो किया गया है, लेकिन कथानक के स्तर पर अपने इस प्रयास को तार्किक आधार और सार्थक परिणति देने में लेखक को कामयाबी नहीं मिल सकी है। अपनी उद्देश्यपरकता को स्पष्टतापूर्वक संप्रेषित न कर पाना इस उपन्यास के कथानक की सबसे बड़ी कमजोरी है, जिस कारण कुछ हिस्सों के ध्यान खींचने के बावजूद समग्रतः ये कोई विशेष प्रभाव नहीं छोड़ पाता।

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