सोमवार, 10 अप्रैल 2017

अल्प-कालिक राजनीति करने वालों पर लगे लगाम [राज एक्सप्रेस में प्रकाशित]

  •  पीयूष द्विवेदी भारत
कांग्रेस नेता नवजोत सिंह सिद्धू अक्सर अपने बड़बोलेपन के लिए चर्चा में रहते हैं, लेकिन पंजाब सरकार में मंत्री बनने के बाद वो अब एक नए विवाद में फंस गए हैं। दरअसल मंत्री बनने के बाद उन्होंने कपिल के लोकप्रिय हास्य कार्यक्रम कपिल शर्मा शोमें भी काम करते रहने की इच्छ जताई थी। इसे उन्होंने अपनी आय का मुख्य माध्यम बताया था, जिसके बाद पंजाब सरकार की तरफ से उन्हें मंत्री रहते हुए कार्यक्रम में काम करने के लिए अनुमति मिल गयी। मगर, बात इतने पर नहीं रुकी। इस सम्बन्ध में पंजाब उच्च न्यायालय में चंडीगढ़ के एक वकील द्वारा एक जनहित याचिका दायर कर दी गयी। याचिका में कहा गया है कि एक जनसेवक को व्यक्तिगत व्यापर करने की इजाजत नहीं होनी चाहिए। इसी याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायालय ने केवल सिद्धू को कार्यक्रम में काम करने के लिए पंजाब सरकार से मिली अनुमति को निरस्त कर दिया है, बल्कि सिद्धू से कई सवाल भी पूछे हैं। न्यायालय ने पूछा कि क्या ये आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन नहीं है ? न्यायालय ने सिद्धू से यह भी कहा है कि अगर आप कानून का पालन नहीं करेंगे तो कौन करेगा ? नैतिकता और शुचिता का क्या होगा न्यायालय ने मामले की अगली सुनवाई के लिए ११ मई की तारीख निश्चित की है।


बहरहाल, अब सिद्धू का मामला तो जनहित याचिका के कारण चर्चा में गया; वर्ना ऐसे तमाम नेता आज राजनीति में सक्रिय हैं, जो किसी किसी संवैधानिक पद या दायित्व का निर्वहन करते हुए भी अन्य कार्य करते हैं। इस संदर्भ में उल्लेखनीय होगा कि अभी हाल ही में राज्यसभा में सपा सांसद नरेश अग्रवाल ने क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर और फिल्म अभिनेत्री रेखा के संसद में उपस्थित रहने को लेकर सवाल उठाया था। ये दोनों राज्यसभा के मनोनीत सदस्य हैं। नरेश अग्रवाल के सवाल उठाने के बाद इसपर काफी बवाल मचा था, मगर ठोस कुछ भी नहीं हुआ। इन दोनों राज्यसभा सदस्यों पर किसी तरह की कोई कार्रवाई नहीं हुई। हालांकि सचिन ने क्रिकेट से सन्यास ले लिया है और अभी वे कोई अन्य दायित्व भी नहीं संभाल रहे हैं; मगर फिर भी राज्यसभा में उनकी उपस्थिति के बराबर रही है। रेखा का भी यही हाल है। गौर करेंगे तो पूरी राजनीति में ऐसे अनगिनत नाम मिलेंगे जो अन्य कार्य-क्षेत्रों में कार्यरत हैं, मगर साथ ही राजनीति में भी किसी किसी दल के जरिये कोई कोई पद ग्रहण कर अपना नाम बनाए हुए हैं। ऐसे लोग लगभग हर दल में मिल जाएंगे। सचिन के नाम का प्रस्ताव कांग्रेस द्वारा रखा गया था, तब वो सत्ता में थी। सचिन ने कांग्रेस के लिए प्रचार भी किया था। इसी क्रम में उल्लेखनीय होगा कि हेमा मालिनी मथुरा सीट से भाजपा की लोकसभा सांसद हैं, मगर सदन में उनकी उपस्थिति भी बहुत उत्साहजनक नहीं रहती है। इसी तरह भाजपा नेता और गायक बाबुल सुप्रियो भी लोकसभा में कम ही दिखाई देते हैं। सपा की डिम्पल यादव की उपस्थिति भी के बराबर रही है। इस तरह के और भी तमाम नाम राजनीति में सक्रिय मिल जाएंगे, जो सांसद या विधायक के पद पर तो हैं, मगर संसद या विधानसभा में उपस्थिति के मामले में फिसड्डी नज़र आते हैं। वैसे एक तथ्य यह भी है कि यदि ये लोग किसी नियम-क़ानून के तहत सदन में उपस्थित रहने को विवश हो जाएं, तो भी बेमन की इस उपस्थिति से जनता का क्या हित कर पाएंगे।

दरअसल ऐसे लोगों की आय और कार्य का मुख्य माध्यम अन्य क्षेत्र होते हैं; लेकिन राजनीति में भी खुद की एक जगह बनाए रखने के लिए ये किसी किसी राजनीतिक दल में पद पर बने रहते हैं। सवाल यह उठता है कि भारतीय राजनीति में इस तरह के अनुत्पादक नेताओं को बनाए रखने का क्या औचित्य है ? यदि ये सांसद या विधायक होते हुए सदन में नियमित रूप से अपनी उपस्थिति तक दर्ज नहीं करा सकते, तो इनका उस पद पर बने रहने का क्या अर्थ है ? यह सवाल उन दलों से भी पूछे जाने चाहिए जो अन्य क्षेत्रों में काम करने वाले लोगों को राजनीति में लाए हैं। हर व्यक्ति की अपनी एक योग्यता होती है, जिसके हिसाब से वो कार्य करता है; उसकी योग्यता से अलग काम उससे लेने पर वो शायद बेहतर कर पाए। यहाँ भी यही स्थिति है। सचिन क्रिकेट में सर्वश्रेष्ठ हैं, रेखा और हेमा मालिनी सिनेमा में श्रेष्ठ योगदान दिए हैं; मगर इसका यह कत्तई अर्थ नहीं कि वे राजनीति में भी वैसा ही श्रेष्ठ प्रदर्शन करेंगी। इन अल्प-कालिक नेताओं को राजनीति में लाने वाले दलों को यह बात समझनी चाहिए।
 
बहरहाल, समय की आवश्यकता है कि नियम बनाय जाय जिसके तहत सांसद, विधायक या किसी भी संवैधानिक पद पर आसीन व्यक्ति आय के लिए अन्य कोई कार्य करे। नियम के तहत इन अल्प-कालिक राजनीति करने वाले नेताओं को अनुशासित किए जाने की सख्त आवश्यकता है।

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