मंगलवार, 4 अप्रैल 2017

साल दर साल बढ़ती गर्मी का संकट [अमर उजाला कॉम्पैक्ट और दैनिक जागरण राष्ट्रीय संस्करण में प्रकाशित]



  • पीयूष द्विवेदी भारत

अभी अप्रैल की शुरुआत हुई है, लेकिन गर्मी का आलम यह है कि मई-जून जैसी हालत हो रही है। मौसम विभाग की मानें तो इस साल मार्च महीने में पिछले सात साल से अधिक गर्मी रही है और आगे भी अबतक की सर्वाधिक गर्मी पड़ने की संभावना है। इसके अलावा गर्मी के साथ-साथ लू का भी भीषण प्रकोप रहने की आशंका व्यक्त की जा रही है। कई राज्यों में पिछले हफ्ते तापमान 40 के पार चला गया था। महाराष्ट्र में गर्मी ने कुछ ऐसा कहर बरपाया कि 5 लोगों की मौत तक हो गई. गर्मी का कहर झेलने वाले अधिकतर जिलों जो कि विदर्भ, तेलंगाना, उत्तरी कर्नाटक, मराठवाड़ा, मध्य प्रदेश, बिहार, झारखंड, ओडिशा, राजस्थान आदि के इलाकों में स्थित हैं, में तापमान 43-44 के पार जा रहा है। अब त्रासद और भयावह तथ्य यह है कि गर्मी का यह रौद्र रूप केवल इस वर्ष की कहानी नहीं है; वरन पिछले कई सालों से साल दर साल गर्मी का स्तर लगातार बढ़ता ही जा रहा है।
 
अमर उजाला कॉम्पैक्ट
गौर करें तो वर्ष 2016 में भी गर्मी में ऐसे ही भीषण वृद्धि देखने को मिली थी गर्मी का आलम ऐसा रहा था कि देश के तमाम राज्यों के जलाशय ही सूख गए थे और लोगों को पीने के पानी के लिए मुहाल होना पड़ा था। स्थिति इतनी खराब हुई थी कि पीने के लिए सरकार को टैंकर से पानी भिजवाना पड़ गया था। इस साल को भारत समेत पूरी दुनिया में सर्वाधिक गर्म वर्ष के रूप में दर्ज किया गया। इससे पहले २०१५ में भी गर्मी ने का प्रकोप पूरे उफान पर रहा था।  तब लू के कारण देश के विभिन्न राज्यों में ढाई हजार के आसपास लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी थी आंध्र प्रदेश, तेलंगाना जैसे देश के दक्षिण भारतीय राज्यों में लू ने सबसे ज्यादा आतंक मचाया था। उत्तर भारत के राजस्थान, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखण्ड आदि तमाम राज्यों में भी तब लगभग ३० से ३५ किलोमीटर प्रति घंटे की रफ़्तार से लू चली थी। ज्यादातर मौतों का कारण लू को ही माना गया था। अब इस बार भी लू का भीषण प्रकोप होने की आशंका मौसम विभाग द्वारा व्यक्त की गयी है, तो यह अत्यंत चिंताजनक स्थिति है। गर्मी से अधिक लू घातक होती है, क्योंकि ये केवल शरीर की ऊपरी त्वचा को जलाती है, बल्कि उससे कहीं अधिक हानि व्यक्ति के आंतरिक स्वास्थ्य को पहुंचाती है। 
दैनिक जागरण

इसी संदर्भ में मौसम विशेषज्ञों के शब्दों में लू को समझें तो जब किसी खास दिन पिछले तीन दशक की तुलना में औसत तापमान पांच डिग्री सेल्सियस से अधिक हो जाता है तो बहने वाली गर्म हवाएं लू कहलाती हैं।स्पष्ट है कि बढ़ती गर्मी ही लू की विकरालता का निर्धारित करती है। तापमान जितना अधिक होता है, लू उतनी ही घातक हो जाती है। यूँ तो लू हर जगह के लोगों के लिए हानिकारक  है; लेकिन गांवों की अपेक्षा शहरों में इसका अधिक प्रभाव होता है। इसका प्रमुख कारण शहरों में पेड़-पौधों का अभाव होना और ईंट-पत्थर के मकानों का बढ़ता जाना है। बढ़ते तापमान में ये मकान तपकर गर्म हो जाते हैं, जिससे शहरों के तापमान में तीन-चार फीसदी की बढ़ोत्तरी हो जाती है। जबकि गांवों मे पर्याप्त पेड़-पौधे होने के कारण ऐसी स्थिति नहीं होती। स्पष्ट है कि पेड़-पौधों का अभाव होना इस लू का एक प्रमुख कारण है। इस बात को और अच्छे से समझने के लिए अगर जलवायु परिवर्तन सम्बन्धी सेंटर फॉर साइंस एंड एन्वायरमेंट (सीएसई) द्वारा जारी एक रिपोर्ट  पर गौर करें तो भारत के दस सर्वाधिक गर्म वर्षों में से पिछले दशक यानी २००१ से २०१० के बीच के रहे हैं। यह दशक देश का सर्वाधिक गर्म दशक रहा। सीएसई के अनुसार पिछले १०० वर्षों में वैश्विक तापमान में औसतन . डिग्री सेल्सियस की बढ़ोत्तरी हुई है। इन तथ्यों के आधार पर ही इस रिपोर्ट में कहा गया है कि जिस तरह से वैश्विक तापमान बढ़ रहा है, दुनिया को भविष्य में तेज और लम्बी अवधि की लू के तैयार रहना चाहिए। पर्यावरण से सम्बंधित बॉम्बे आईआईटी की एक रिपोर्ट में भी यह दावा किया गया है कि आने वाले समय में विश्व का तापमान फीसदी तक बढ़ सकता है और तब दुनिया के लिए गर्मी नियमित सामान्य हो जाएगी। बेशक यह एक संभावना है, मगर वर्तमान में स्थिति की विकरालता को देखते हुए इससे इंकार नहीं किया जा सकता।  इन सभी बातों  को देखते हुए कहना गलत नहीं होगा कि  एक तरफ जलवायु परिवर्तन पर दुनिया के विकासशील और विकसित देश अड़ियल रुख अपनाए हुए हैं और दूसरी तरफ यह जलवायु परिवर्तन समाधान होने के कारण दुनिया में जीने की संभावनाओं को ही लगातार कम करता जा रहा है। उचित होता कि दुनिया के ये देश इसपर जल्द कोई आम सहमति बनाकर समाधान की दिशा में काम करते। क्योंकि किसी भी प्रगति का महत्व तभी है, जब धरती जीने लायक रहे। धरती पर जीवन की अनुकूलताओं को नष्ट करने की शर्त पर प्रगति चाहने वाला दुनिया में कौन है ? यक़ीनन कोई नहीं! लू बेशक एक प्राकृतिक आपदा या समस्या है, मगर यह भी उतना ही सच है कि इस समस्या को जन्म मनुष्य की गलतियों और प्रकृति के साथ की गई अनावश्यक छेड़-छाड़ ने दिया है। अतः अब भी समय है कि मनुष्य अपनी गलतियों को सुधार ले, अन्यथा आने वाला समय उसके लिए बहुत अच्छा नहीं रहने वाला।

बहरहाल, इतना तो साफ़ है कि हम लू को रोक नहीं सकते, मगर इससे बच जरूर सकते हैं। जरूरत है तो बस इससे बचाव के उपायों के विषय में समुचित जागरूकता ज्ञान की। लू का खतरा कमजोर व्यक्तियों को अधिक होता है। पसीना होने से शरीर का पानी निकल जाता है, जिससे कई दफे व्यक्ति चलते-चलते ही रास्ते में बेहोश होकर गिर भी जाता है। यह मुख्यतः ह्रदय, किडनी पर आघात करता है। मानसिक रूप से कमजोर व्यक्ति के लिए तो हृदयाघात का खतरा भी हो जाता है। साथ ही लू के कारण प्रदूषण भी बढ़ता है और  सांस सम्बन्धी बीमारियाँ भी पैदा होती हैं। लू से बचने के लिए आदर्श स्थिति  तो यह है कि घर से कम से कम निकला जाय, लेकिन आज की दौड़ती-भागती ज़िन्दगी में यह कहीं से संभव नहीं है। अतः इससे बचने कुछ हलके-फुल्के उपाय किए जा सकते हैं जैसे पानी और पानी वाले फलों का अधिकाधिक सेवन, कम और सादा खाना, धूप से बचने के लिए छाता-टोपी वगैरह का उपयोग, आदि और भी अनेकों छोटे-छोटे उपाय हैं जिनसे लू से बचा जा सकता है। यह दायित्व सरकार का है कि वो टीवी, अखबार आदि संचार माध्यमों के जरिये देश में लू के कुप्रभावों और  इससे बचने के उपायों से सम्बंधित जागरूकता अभियान चलाए। यह सरकार के वश में है और उसे  कम से कम इस दिशा में प्रयास करने ही चाहिए।

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