बुधवार, 18 मई 2016

बोतलबंद पानी पर लगे पूर्ण प्रतिबन्ध [जनसत्ता, सामना, हरिभूमि और दैनिक जागरण राष्ट्रीय में प्रकाशित]

  • पीयूष द्विवेदी भारत 

सामना 
देश में बोतलबंद पानी के नफा-नुकसान को लेकर बहस तो जब-तब होती ही रहती है, लेकिन अबकी केंद्र सरकार द्वारा सरकारी कार्यक्रमों में बोतलबंद पानी का उपयोग नहीं करने का निर्णय लेने से यह विषय फिर एकबार प्रासंगिक हो गया है। सरकार का कहना है कि बोतलबंद पानी से बड़ी मात्रा में प्लास्टिक कचरा निकलता है, जो कि पर्यावरण के लिए हानिकारक है। इसके मद्देनज़र सरकार ने अपने मंत्रालयों, विभागों और सभी सार्वजनिक उपक्रमों में बोतलबंद पानी का उपयोग बंद करने का निर्णय लिया है। केन्द्रीय पेयजल और स्वच्छता मंत्रालय द्वारा इस सम्बन्ध में पहल की गई है। साथ ही, केंद्र सरकार राज्य सरकारों से भी अपने यहाँ बोतलबंद पानी का उपयोग बंद करने का अनुरोध करने की बात कह रही है। केंद्र सरकार का मानना है कि उसके ऐसा करने से आम लोगों के बीच एक सन्देश जाएगा जिससे वे भी बोतलबंद पानी का उपयोग करने से परहेज करेंगे। समझना आसान है कि यहाँ मामला मुख्यतः उदाहरण प्रस्तुत करने का है। 
इसमे कोई संदेह नहीं कि सरकारी स्तर पर बोतलबंद पानी के उपयोग से परहेज करने का केंद्र सरकार का निर्णय एक अच्छी पहल है लेकिन, ऐसा करके वो यदि यह सोचती है कि आम लोग भी बोतलबंद पानी का उपयोग करना कम या बंद देंगे तो निश्चित ही ये उसकी बहुत बड़ी गलतफहमी है। ये वो दौर नहीं है जब नेताओं के आह्वान पर जनता उनका अनुसरण कर लेती थी। अब न तो वैसे नेता रहे हैं और न ही जनता। दूसरी बात यह भी है कि सरकार का कार्य उपदेश देकर और आदर्श प्रस्तुत कर देश-समाज का सुधार करना नहीं होता है, बल्कि उपयुक्त सुधार के लिए कायदे-क़ानून बनाकर उनका अनुपालन सुनिश्चित करवाना होता है। ऐसे में केंद्र सरकार यदि बोतलबंद पानी को हानिकारक मानती है और उसके उपयोग की रोकथाम के प्रति वास्तव में गंभीर है, तो उसे इसके उपयोग को सिर्फ सरकारी कार्यक्रमों में ही नहीं बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर  क़ानून लाकर प्रतिवंधित करना चाहिए।
दैनिक जागरण 
दरअसल बोतलबंद पानी हर तरह से सिर्फ हानिकारक है। यह प्लास्टिक कचरे के रूप में न केवल पर्यावरण को हानि पहुंचाता है, बल्कि कई एक परीक्षणों के अनुसार इस पानी के सेवन से व्यक्ति के स्वास्थ्य पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट के एक शोध के मुताबिक़ भारत में मौजूद बोतलबंद पानी के अधिकांश ब्रांड स्वास्थ्य की दृष्टि से पूर्णतः सुरक्षित नहीं हैं। शोध में  कहा गया है कि देश के अधिकांश ब्रांडों के बोतलबंद पानी में उन खतरनाक कीटनाशकों की मिलावट पाई गई है, जो स्वास्थ्य के लिए बेहद हानिकारक हैं और जिन्हें भारत सरकार द्वारा पहले से ही प्रतिबंधित किया जा चुका है। एक आंकड़े के मुताबिक़ देश की राजधानी दिल्ली के बोतलबंद पानी के ब्राण्ड्स में कीटनाशकों की निर्धारित मात्रा ०.०५ से ३६.४ फीसदी अधिक कीटनाशक पाए गए हैं तो आर्थिक राजधानी मुंबई में यह मात्रा तय सीमा से ७.२ फीसदी अधिक रही है। इसके अलावा नेचुरल रिसोर्सेज डिफेंस काउंसिल का अध्ययन है कि बोतलबंद पानी और साधारण पानी लगभग समान है। मिनरल वाटर के नाम पर बेचे जाने वाले बोतलबंद पानी के बोतलों को बनाने के दौरान एक खास किस्म के रसायन पैथलेट्स का प्रयोग  किया जाता है जो बोतलों को मुलायम बनाता है। यही रसायन सौंदर्य प्रसाधनों, इत्र, खिलौनों आदि के निर्माण में भी प्रयुक्त होता है। सामान्य से थोड़ा अधिक तापमान होते ही यह रसायन पानी में घुलने लगता है और हमारे शरीर में जाकर अनेक प्रकार के दुष्प्रभाव डालता है।  ऐसे रसायनों से बनी बोतल में बंद पानी जितना पुराना होता जाता है उसमें रसायन की मात्रा बढ़ने से उसका उपयोग करने वाले को जी मचलना, उल्टी और डायरिया की शिकायत हो सकती है।  ऐसे में, बोतलबंद पानी की कंपनियों द्वारा भले ही यह दावा किया जाता रहा हो कि उनका पानी स्वास्थ्य के लिए हर तरह से सुरक्षित है लेकिन, उपर्युक्त तथ्यों को देखने के बाद समझना आसान है कि वास्तविकता उनके दावे के एकदम विपरीत है। 
हरिभूमि 
गौर करें तो भारत में बोतलबंद पानी के कारोबार की शुरुआत १९९० के आखिर में हुई। तब बिसलेरी ने देश में पहली बार बोतलबंद पानी को बाजार में उतारा था। इसके साथ ही अंधाधुंध विज्ञापन चलाकर यह साबित करने की कोशिश की गई कि बोतलबंद पानी पूरी तरह से सुरक्षित है। दरअसल बोतलबंद पानी का कारोबार सस्ता और बेहद कम जोखिमवाला होता है, जिस कारण इसमे मोटा मुनाफा कमाने की भरपूर संभावना होती है, इसलिए इससे सम्बद्ध कम्पनियाँ हर हाल में इस कारोबार को बढ़ाना चाहती हैं। इसी कारण वे इसकी गुणवत्ता के सम्बन्ध में बढ़ा-चढ़ाकर दावे करती रहती हैं। अपने-अपने ब्रांड के प्रचार पर अच्छा-ख़ासा निवेश करती रहती हैं और उन्हें इसका लाभ भी मिलता  है, जिसका उदाहरण देश में बोतलबंद पानी के कारोबार की २२ फीसदी जैसी उच्चस्तरीय   वृद्धि दर है। आज देश में बोतलबंद पानी का कारोबार काफी तेजी से अपने पैर पसार रहा है। सन २०१३ में  इसका कारोबार लगभग ६० अरब रूपये का रहा और अनुमान व्यक्त किया जा रहा है कि २०१८ तक यह डेढ़ ख़रब से अधिक हो सकता है। आश्चर्य है कि हम मुफ्त पानी की बात तो करते हैं और सरकारों द्वारा इसका वादा किए जाने को मान भी लेते हैं, लेकिन बोतलबंद पानी के लिए पंद्रह से बीस रुपए चुकाते समय एक क्षण के लिए भी सोचते तक नहीं। क्या कभी किसी ने भारत में बोतलबंद पानी की मनमानी कीमत के विरोध में जन आंदोलन का समाचार सुना है? शायद नहीं। स्पष्ट है कि अन्य वस्तुओं के मूल्यों में मामूली वृद्धि तो हमें बेशक आंदोलित करती है, परंतु बोतलबंद पानी के अनियंत्रित दाम से हमें कोई शिकायत नहीं। समझना आसान है कि लोग बोतलबंद पानी की गुणवत्ता के भ्रमजाल में एकदम उलझे हुए से हैं, जिसका भरपूर लाभ इनसे सम्बंधित कंपनियों को मिल रहा है।   ऐसे में, वे कम्पनियाँ कभी नहीं चाहेंगी कि उनके इस कारोबार पर कोई लगाम लगे। लेकिन, पर्यावरण और जनता के स्वास्थ्य के लिए सरकार को तो इस सम्बन्ध में ठोस कदम उठाने ही चाहिए।  
जनसत्ता 
यह तो स्पष्ट है कि बोतलबंद पानी प्लास्टिक कचरे के रूप में पर्यावरण और पेय के रूप में व्यक्ति के स्वास्थ्य को हानि पहुंचाता है। ऐसे में, एक बड़ा और महत्वपूर्ण सवाल यह उठता है कि सरकार अगर बोतलबंद पानी पर प्रतिबन्ध लगा देती है तो क्या उसके स्थान पर उपयोग करने के लिए सरकार के पास कोई बेहतर और हर तरह से सुरक्षित विकल्प है ? बिलकुल है और इससे कहीं बेहतर विकल्प है। ऐसा विकल्प जो न केवल हर तरह से सुरक्षित है बल्कि कई मायनों में लाभकारी भी है। सरकार पानी के पात्र के रूप में प्लास्टिक बोतल की जगह मिटटी के बर्तनों को उपयोग में लाने पर विचार कर सकती है। ये बर्तन मिटटी के होने के कारण न केवल पर्यावरण की दृष्टि से एकदम सुरक्षित हैं बल्कि इनको अपनाने से देश को आर्थिक दृष्टि से भी लाभ होगा। मिटटी के बर्तन प्लास्टिक की तरह नाशहीन नहीं होते, वे तो नष्ट होने पर मिटटी के मिटटी में मिल जाएंगे यानी इनसे कोई कचरा नहीं होगा और पर्यावरण को कोई नुकसान नहीं पहुंचेगा। 
दरअसल मिटटी के बर्तन बनाना भारत का प्राचीन कुटीर उद्योग रहा है, जो अब मांग न के बराबर होने के कारण आज काफी हद तक शिथिल पड़ चुका है। अब यदि सरकार मिटटी के बर्तनों में पैक्ड पानी उपलब्ध कराने की व्यवस्था लागू कर दे तो उससे बोतलबंद पानी का एक देशी और सुरक्षित विकल्प तो मिल ही जाएगा, देश के मिटटी बर्तन के कुटीर उद्योग में नवीन प्राणशक्ति का संचार भी हो सकेगा। साथ ही, इससे सम्बंधित लोगों को रोजगार भी मिलेगा। निश्चित ही सुराही, छोटे आकार के मटके आदि मिटटी के बर्तनों में पानी उपलब्ध कराना बोतलबंद पानी से कई गुना बेहतर विकल्प होगा। कम्पनियाँ और ब्रांड जो हैं वही रहें, बस किया यह जाय कि वे बोतल की जगह मटके और सुराही में पैक्ड पानी को प्रयुक्त करें। सरकार को यह करना होगा कि मिटटी बर्तन के कुटीर उद्योग को आर्थिक व तकनिकी सहयोग देकर पुनर्स्थापित करे और फिर प्लास्टिक बोतल की जगह विकल्प के रूप में रखकर उसके लिए एक बड़ा बाजार उपलब्ध करवा दे। कहने की जरूरत नहीं कि यह करना हर तरह से देश और समाज के हित में होगा।  
अब जहाँ तक बात पानी की गुणवत्ता की है तो इस सम्बन्ध में सरकार को अवश्य सजग रहना होगा। उचित होगा कि इस सम्बन्ध में एक निगरानी तंत्र ही स्थापित कर दिया जाय जो पैक्ड पानी के सुरक्षा मानकों की निगरानी करता रहे। अगर गंभीरता के साथ और मजबूत इच्छाशक्ति का परिचय देते हुए सरकार इस सम्बन्ध में आगे बढे तो यह सब करना कुछ कठिन नहीं है। सरकार के पास शक्ति और साधन दोनों हैं, अतः उचित होगा कि सरकार सिर्फ सरकारी स्तर पर बोतलबंद पानी का उपयोग रोककर अपने दायित्वों की इतिश्री न समझे और उपर्युक्त कदम उठाते हुए इस समस्या का समूल समाधान करे।

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