रविवार, 5 अप्रैल 2015

किसान आत्महत्या पर गंभीर होने की जरूरत [अमर उजाला कॉम्पैक्ट, कल्पतरु एक्सप्रेस और नेशनल दुनिया में प्रकाशित]

  • पीयूष द्विवेदी भारत
अमर उजाला
असमय बारिश और ओलावृष्टि के कारण हुई फसल की भारी बर्बादी ने देश के खासकर उत्तर भारत के किसानों की मुश्किलें और बढ़ा दी हैं, जिस कारण हाल-फ़िलहाल किसान आत्महत्या के मामलों में भारी वृद्धि हुई है। सरकार की तरफ से इसपर चिंता तो जताई जा रही है, लेकिन इस सम्बन्ध में किसानों को राहत देने के लिए कुछ ठोस किया जा रहा हो, ऐसा नहीं कह सकते। इसे विडम्बना ही कहेंगे कि जो खेती इस देश की अर्थव्यवस्था में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, उसको करने वाले किसान की हालत इतनी ख़राब है कि देश का पेट भरने वाली उसकी खेती खुद उस का पेट नहीं भर पाती। एक आंकड़े की मानें तो आज देश के ९० फीसदी किसानों के पास खेती योग्य भूमि २ हेक्टेयर से भी कम है और इनमे से ५२ फीसदी किसान परिवार भारी कर्ज में डूबे हुए हैं। इसी सन्दर्भ में उल्लेखनीय होगा कि अभी कुछ ही समय पहले  भारतीय ख़ुफ़िया ब्यूरों (आईबी) द्वारा राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल को देश के किसानों की समस्याओं व उनकी दुर्दशा से सम्बंधित एक ख़ुफ़िया रिपोर्ट सौंपते हुए सरकार को  इस विषय में चेताया गया । आम तौर पर सरकार से देश की सुरक्षा से जुड़ी अत्यंत संवेदनशील सूचनाएं साझा करने वाली आईबी ने जब इस दफे किसानों की समस्याओं जैसे मसले पर सरकार को ख़ुफ़िया रिपोर्ट दी है, तो इस मसले की गंभीरता अपने आप में और बढ़ जाती है। इस रिपोर्ट में आईबी की तरफ से सरकार को किसान आत्महत्या को लेकर विशेष तौर पर चेताया गया है और इस विषय में गंभीर होने की सलाह दी गई है। कहा गया है कि महाराष्ट्र, केरल, पंजाब आदि राज्यों में तो किसानों की आत्महत्याओं का बाहुल्य है ही, यूपी और गुजरात जैसे राज्यों में भी अब इस तरह के मामले ठीकठाक संख्या में सामने आने लगे हैं। इस  रिपोर्ट में सरकार द्वारा किसान आत्महत्या को रोकने के लिए किए जाने वाले ऋण माफ़ी, बिजली बिल माफ़ी समेत राहत पैकेज आदि उपायों का उल्लेख करते हुए कहा गया है कि ये उपाय किसानों को फौरी राहत देते हैं न कि उनकी समस्याओं का स्थायी समाधान करते हैं। परिणामतः किसानों की समस्याएँ बनी रहती हैं जो देर-सबेर उन्हें आत्महत्या को मजबूर करती हैं।
कल्पतरु 
  आईबी की इस रिपोर्ट पर विचार करें तो ये रिपोर्ट किसानों के लिए राहत पैकेजों का ऐलान कर उनके हितों का दावा करने वाली राज्य सरकारों समेत केंद्र सरकार को भी आइना दिखाने वाली है। इस रिपोर्ट के जरिये संभव है कि हमारे हुक्मरानों की आँखें खुलें और वे किसानों की समस्याओं के प्रति वास्तव में गंभीर हों। यह सही है कि इस देश के किसान की हालत कभी बहुत अच्छी नहीं रही, लेकिन वह इतनी बुरी नहीं रहती थी कि किसानों को आत्महत्या करनी पड़े। लेकिन, आज अगर देश में किसान आत्महत्या अपने आप में एक बड़ी व राष्ट्रव्यापी समस्या बन चुकी है तो इसके लिए सबसे प्रमुख कारण हमारी सरकारों का इस समस्या को समय रहते न पहचान पाना तथा इसके प्रति अ-गंभीर रहना ही है। किसान आत्महत्या की शुरुआत मुख्यतः २० वी सदी के अंतिम दशक में महाराष्ट्र में हुई, जब महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र में कपास किसानों की आत्महत्याओं के मामले सामने आए। इन आत्महत्याओं को रेखांकित करते हुए अंग्रेजी अख़बार द हिन्दू में इसपर खबर भी आई। इसके बाद उस दशक के कुछ वर्षों में प्रतिवर्ष लगभग दस हजार किसानों के आत्महत्या करने के मामले दर्ज किए गए। लेकिन, किसान आत्महत्या के इन भयावह आंकड़ों के बावजूद तत्कालीन हुकूमतों का ध्यान इस समस्या की विकरालता की तरफ नहीं गया और उन्होंने इस समस्या को बढ़ने से रोकने के लिए सिवाय जांच समितियां गठित करने के कुछ ख़ास नहीं किया। परिणाम यह हुआ कि महाराष्ट्र से शुरू हुई यह समस्या देश के अन्य हिस्सों में भी फैलती गई और धीरे-धीरे इतना विकराल रूप ले ली कि सन १९९७ से लेकर २००६ तक यानी नौ सालों में डेढ़ लाख से ऊपर किसानों की आत्महत्याओं के मामले सामने आए। आज किसान आत्महत्या की समस्या महाराष्ट्र, केरल, कर्नाटक, पंजाब आदि देश के तमाम राज्यों में फ़ैल चुकी है। हमारे सियासतदां इस समस्या को इसके शुरूआती समय में ताड़ने में तो विफल रहे सो रहे, लेकिन आज के हुक्मरान जो  इस समस्या व इसके कारणों आदि से पूरी तरह से वाकिफ हैं, वे भी इसके समाधान के लिए बहुत गंभीर नहीं दिख रहे।
  यह जानने के लिए आज किसी शोध की जरूरत नहीं कि कि
नेशनल दुनिया 
सान आत्महत्या काफी हद तक खेती की समस्याओं व हमारे किसानों की दुर्दशा से सम्बद्ध है। इसी क्रम में अगर भारत के किसानों की समस्याओं पर नज़र डालें तो उनकी एक लम्बी फेहरिस्त सामने आती है। चूंकि, भारत में खेती का उद्देश्य व्यावसायिक नहीं, जीविकोपार्जन का रहा है। इस नाते किसान की स्थिति तो हमेशा से दयनीय ही रहती आई है। तिसपर यहाँ खेती लगभग भाग्य भरोसे ही होती है कि अगर सही समय पर आवश्यकतानुरूप वर्षा हो गई, तब तो ठीक, वर्ना फसल बेकार। आज पेड़-पौधों में कमी के कारण वर्षा का संतुलन बिगड़ रहा है और इसका बड़ा खामियाजा हमारे किसानों को उठाना पड़ रहा है। हाल के कुछ वर्षों में तो कोई ऐसा साल नहीं गया, जिसमे कि देश में कुछ इलाके पूरी तरह से तो कुछ आंशिक तौर पर सूखे की चपेट में न आएं हों। हालांकि उपकरणों की सहायता से सिंचाई करने की तकनीक अब हमारे पास है। लेकिन, एक तो यह सिंचाई काफी महँगी होती है, उसपर इस सिंचाई से फसल को बहुत लाभ मिलने की भी गुंजाइश नहीं होती। क्योंकि एक तरफ आप सिंचाई करिए, दूसरी तरफ धूप सब सुखा देती है। सूखे की समस्या के अलावा कुछ हद तक जानकारी व जागरूकता का अभाव भी हमारे किसानों की दुर्दशा के लिए जिम्मेदार है। हालांकि किसानों में जानकारी बढ़ाने के लिए सरकार द्वारा किसान कॉल सेंटर जैसी व्यवस्था की गई है, मगर जमीनी स्तर पर यह व्यवस्था किसानों को बहुत लाभ दे पाई हो, ऐसा नहीं कह सकते। ये तो किसानों की कुछ प्रमुख समस्याओं की बात हुई, इसके अलावा और भी अनेकों छोटी-बड़ी समस्याओं से संघर्ष करते हुए हमारे किसान खेती करते हैं।  ऐसे किसान जिनकी पूरी आर्थिक निर्भरता केवल खेती पर ही होती है, खेती के लिए बैंक अथवा साहूकार आदि से कर्ज लेते हैं, लेकिन मौसमी मार के चलते अगर फसल ख़राब हुई तो फिर उनके पास कर्ज से बचने के लिए आत्महत्या के सिवाय शायद और कोई रास्ता नहीं रह जाता। आईबी की उक्त रिपोर्ट में किसानों की ऐसी ही समस्याओं को रेखांकित करते हुए इनके कुछेक समाधान भी सरकार के समक्ष रखे गए हैं। सिंचाई के लिए सस्ती व्यवस्था उपलब्ध कराने, किसानों को साहूकारों के चंगुल से निकालने के लिए सरकारी बैंकों के जरिये सस्ता कर्ज उपलब्ध कराने तथा खेती उत्पादों के लिए सही मूल्य व बाजार तय कर किसानों को आर्थिक शोषण से बचाने आदि तमाम उपाय आईबी ने सरकार को सुझाए हैं। उचित हो कि केंद्र व राज्य सरकारें सिर्फ कुछ कर्ज माफ़ कर या राहत पैकेज देकर किसानों के प्रति अपने कर्त्तव्यों की इतिश्री न समझें,  बल्कि आईबी की इन बातों को गंभीरता से लेते हुए इनके क्रियान्वयन के लिए भी ठोस कदम उठाएं। क्योंकि, इन उपायों को ठीक ढंग से अमल में लाकर  देश के किसानों को दुर्दशा से बाहर निकाल एक सम्मानित व स्तरीय जीवन देने की दिशा में बढ़ा जा सकता है। यह भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए बेहद आवश्यक है।

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