शनिवार, 6 अक्तूबर 2018

तनुश्री दत्ता प्रकरण : मीडिया ट्रायल बनाम क़ानून [दैनिक जागरण के राष्ट्रीय संस्करण में प्रकाशित]


  • पीयूष द्विवेदी भारत

भारतीय सिनेमा में स्त्रियों की स्थिति को लेकर चर्चा लम्बे समय से होती रही है। अभिनेत्रियों को अभिनेताओं की तुलना में कम पारिश्रमिक मिलने, उनकी भूमिका अभिनेता से कमतर रखने और नयी अभिनेत्रियों का यौन शोषण किए जाने जैसे विषय इस चर्चा के केंद्र में होते हैं। सिनेमा जगत में मौजूद कास्टिंग काउच की समस्या को भी कई अभिनेत्रियों द्वारा अक्सर उठाया जाता रहा है। निस्संदेह इस प्रकार के भेदभाव और शोषण को किसी भी आधार पर सही नहीं ठहराया जा सकता। हालांकि संतोषजनक बात यह है कि समय के साथ धीरे-धीरे स्त्रियाँ अन्य क्षेत्रों की ही तरह सिनेमा उद्योग में भी अपनी मजबूत मौजूदगी दर्ज करा रही हैं। आज नायिका प्रधान फ़िल्में बनने लगी हैं। ऐसी कई अभिनेत्रियाँ हैं जो बहुतेरे अभिनेताओं से अधिक मेहनताना लेती हैं। दीपिका पादुकोण, प्रियंका चोपड़ा आदि अभिनेत्रियों ने हॉलीवुड तक अपने अभिनय का झंडा गाड़ा है। जाहिर है कि सिनेमा जगत में स्त्रियों की स्थिति में सकारात्मक बदलाव रहा है, लेकिन इसीमें जब-तब कुछ ऐसे मामले सामने जाते हैं जिनको आधार बनाकर इस पूरे बदलाव पर प्रश्न खड़ा किया जाने लगता है। ऐसा ही एक मामला इन दिनों चर्चा में है।

पिछले दिनों काफी समय से मुख्यधारा सिनेमा में निष्क्रिय एक अभिनेत्री ने अचानक बॉलीवुड के एक वरिष्ठ और प्रसिद्ध अभिनेता पर आज से दस वर्ष पूर्व एक फिल्म की शूटिंग के दौरान यौन शोषण की कोशिश करने का आरोप लगाया। दस साल बाद इस मुद्दे को उठाने के सवाल पर अभिनेत्री का कहना है कि उन्होंने तब भी इस विषय में आवाज उठाई थी, पुलिस से लेकर सिन्टा (सिने एवं टीवी कलाकार संघ) तक  शिकायत की थी, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। सिन्टा की तरफ से इसपर अपनी गलती तो मानी गयी है, लेकिन उसने अपने आंतरिक संविधान का हवाला देते हुए इस मामले में अब कुछ कर पाने में असमर्थता भी जता दी है। निस्संदेह यह दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है कि एक संस्था अपनी गलती तो मानती है, लेकिन उसे सुधारने को तैयार नहीं है। अभिनेत्री ने एक वरिष्ठ निर्देशक पर भी एक फिल्म के दौरान कपड़े उतारकर नाचने के लिए दबाव बनाने का आरोप लगाया है। इन आरोपों पर अभिनेता और निर्देशक का कहना है कि ये सब आरोप सरासर झूठ और उनकी छवि खराब करने वाले हैं। इसलिए वे अभिनेत्री के खिलाफ कानूनी कार्यवाही करेंगे।

ये पूरा मामला सोशल मीडिया पर छाया हुआ है, जहां कुछ लोग अभिनेत्री की बातों को सच बताते हुए उनके प्रति समर्थन जता रहे, तो बहुत-से लोग इन आरोपों को नकारात्मक प्रसिद्धि पाने की कोशिश कहते हुए अभिनेता और निर्देशक के पक्ष में खड़े हैं। यहाँ तक कि सिनेमा जगत भी इस मामले पर दो खेमों में बंटा नजर रहा है। ऐसे मामलों में यह स्थिति नयी नहीं है। लेकिन दिक्कत यह है कि अभिनेता-अभिनेत्री के समर्थन में उतरे लोग अपने पक्ष को सही और दूसरे को गलत ठहराने के लिए सब सीमाएं तोड़ देने पर आमादा नजर रहे। एक पक्ष जहां अभिनेता को गुस्सैल, सनकी आदि कहने में लगा है, वहीं दूसरा पक्ष अभिनेत्री के चरित्र से लेकर मंशा पर तक सवाल उठाने में नहीं हिचक रहा। राज ठाकरे के संगठन मनसे ने तो अभिनेत्री को धमकी तक दे डाली है।

गौरतलब है कि अभी इस मामले में कुछ भी सिद्ध नहीं हुआ है। अभिनेत्री के आरोपों की सत्यता या असत्यता को लेकर कोई प्रमाण सामने नहीं आए हैं। ऐसे में, इस मसले पर कोई भी निर्णायक राय बनाकर टीका-टिप्पणी करना उचित नहीं कहा जा सकता। यह एक लोकतान्त्रिक देश है, जहां न्याय देने के लिए न्यायपालिका जैसी सशक्त संस्था मौजूद है। अतः किसी भी मामले पर सम्बंधित व्यक्तियों कामीडिया और पब्लिक ट्रायलचलाना कतई ठीक नहीं है। लेकिन दुर्भाग्यवश आरोप लगाने वाली अभिनेत्री इसके पक्ष में हैं और कह रही हैं कि उन्हेंमीडिया ट्रायलके जरिये ही न्याय मिलेगा। उन्हें समझना चाहिए कि मीडिया सिर्फ मुद्दा उठा सकता है, न्याय देने का काम क़ानून और न्यायपालिका का है। भारत जैसे लोकतान्त्रिक देश में अपनी समस्त विसंगतियों के बावजूद न्याय पाने का यही मार्ग है।

अभिनेत्री के पक्ष में एक वीडियो सोशल मीडिया पर प्रसारित हो रहा जिसमें कुछ लोग उनकी कार पर हमला करने की कोशिश करते नजर रहे। लेकिन इस वीडियो से यह सिद्ध नहीं होता कि उनके साथ अभिनेता ने यौन शोषण की कोशिश की थी। ठीक होता कि उन्होंने प्राथमिक स्तर पर कुछ प्रमाण जुटाकर ये आरोप लगाए होते तब उनका पक्ष ज्यादा बेहतर ढंग से सुना जाता। कुछ लोग इसे अभिनेत्री का साहस बता रहे, लेकिन बिना प्रमाण यूँ किसी पर आरोप लगा देना साहस तो दूर, समझदारी की भी बात नहीं कही जा सकती। क्या उन्हें समझ नहीं रहा कि प्रमाणों के अभाव में अब अगर उनके आरोप झूठे सिद्ध हुए तो स्त्री-संघर्षों के प्रति अविश्वास का ही वातावरण पैदा होगा।

अभिनेत्री का कहना है कि दस साल पूर्व उन्होंने अभिनेता के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराई थी, लेकिन बदले में उनके खिलाफ भी प्राथमिकी दर्ज करवा दी गयी। ऐसे में पुलिस को बताना चाहिए कि उन दोनों प्राथमिकियों पर क्या कार्यवाही हुई? अगर नहीं हुई तो क्यों नहीं हुई?

इसके अलावा आज जब यह मामला उठ रहा है, तो इसकी पुनः गंभीरतापूर्वक जांच होनी चाहिए जिससे दूध का दूध और पानी का पानी हो सके। महाराष्ट्र के गृह राज्य मंत्री दीपक केसरकर ने एक प्रमुख अंग्रेजी अखबार से बातचीत में कहा है, ‘अगर वह  सही सबूतों के साथ एफआईआर दर्ज कराती हैं तो मैं इस पर जांच के आदेश दूंगा। कानून के सामने सभी लोग समान हैं और अगर अभिनेता ने गलती की है तो हम उन्हें भी नहीं छोड़ेंगे।' गृह राज्य मंत्री की इस टिप्पणी के बाद तो अभिनेत्री कोमीडिया ट्रायलका भरोसा छोड़कर पुलिस के पास जाना ही चाहिए। दस साल पूर्व उनकी शिकायत पर भले कार्यवाही नहीं हुई, लेकिन अब समय बदल चुका है। आज महिलाओं की सुरक्षा के लिए और भी कड़े क़ानून प्रभाव में चुके हैं। उनकी आवाज को हर जगह महत्व मिल रहा है। ऐसे में अभिनेत्री महोदया को क़ानून के प्रति विश्वास व्यक्त करना चाहिए। वैसे भी क़ानून व्यवस्था पर अनास्था रखकर न्याय की उम्मीद नहीं की जा सकती।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें