मंगलवार, 26 सितंबर 2017

संयुक्त राष्ट्र में सशक्त भारत का संबोधन [अमर उजाला कॉम्पैक्ट में प्रकाशित]

  • पीयूष द्विवेदी भारत
संयुक्त राष्ट्र महासभा के ७२वें सत्र में भारतीय विदेश मंत्री सुषमा स्वराज का संबोधन कई मायनों में महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक रूप से उल्लेखनीय है। सुषमा के संबोधन से पूर्व पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शाहिद खाकन अब्बासी ने अपने संबोधन में भारत पर आतंक प्रायोजित करने और कश्मीर में अत्याचार फैलाने का आरोप लगाया था। उनके भाषण का लम्बा हिस्सा भारत की बुराई करने में ही बीता था। इसके जवाब में जब भारतीय राजनयिक ईनम गांधी ने पाकिस्तान को टेररिस्तान बताते हुए सख्त रुख दिखाया, तभी स्पष्ट हो गया था कि सुषमा स्वराज के वक्तव्य की रूपरेखा क्या रहेगी। सुषमा स्वराज ने अपने वक्तव्य में न केवल आजादी के बाद से अबतक भारत की विकासयात्रा की तस्वीर विश्व के समक्ष रखी बल्कि पाकिस्तान के आतंक पोषक चेहरे को भी बाखूबी उजागर किया। सुषमा ने कहा कि भारत और पाकिस्तान एक ही साथ आजाद हुए, लेकिन आज भारत अपने आईटी क्षेत्र के लिए मशहूर है, तो पाकिस्तान अपने आतंकी संगठनों के लिए जाना जाता है। उन्होंने यह भी कहा कि हम गरीबी से लड़ रहे हैं, जबकि पड़ोसी पाकिस्तान हमसे लड़ रहा है। आतंकवाद पर संदिग्ध रुख रखने वाले विश्व के चीन आदि देशों को आड़े हाथों लेते हुए सुषमा ने संयुक्त राष्ट्र के सांगठनिक विस्तार पर भी बल दिया। सुषमा के वक्तव्य में स्पष्ट दिखा कि भारत अब किसीके समक्ष दबकर बोलने वाला नहीं, अब वह विश्व पटल पर मजबूती से अपनी बात रख सकता है। 


देखा जाए तो पाकिस्तान के प्रति अबकी संयुक्त राष्ट्र महासभा में ईनम गांधी से लेकर सुषमा स्वराज तक भारत की तरफ से जैसा सख्त और स्पष्ट रुख दिखाया गया, वो अभूतपूर्व है। निश्चित तौर पर भारत अबसे पहले भी इस मंच के माध्यम से पाकिस्तान की कारिस्तानियों को उजागर करता रहा है, लेकिन उसके स्वर इतने सख्त और स्पष्ट अबसे पहले कभी शायद ही रहे हों। प्रधानमंत्री मोदी ने भी जब संयुक्त राष्ट्र महासभा को संबोधित किया था, तो पिछले संबोधनों की तरह ही इशारों-इशारों में ही पाकिस्तान पर निशाना साधे थे। लेकिन, अबकी इशारों-इशारों में नहीं, एकदम खुले तौर पर पाकिस्तान का नाम लेकर न केवल उसे ‘टेररिस्तान’ बताया गया बल्कि खुलेआम उसकी कारिस्तानियों की काली तस्वीर भी दुनिया के सामने रखी गयी।

सुषमा के वक्तव्य से पूर्व बांग्लादेश और अफगानिस्तान ने भी पाकिस्तान पर आतंक का प्रायोजक होने का आरोप लगाया, जो कि भारत के पक्ष को मजबूती देने वाला था। जाहिर है, अफगानिस्तान और बांग्लादेश भी अब पाकिस्तान का साथ पूरी तरह से छोड़ चुके हैं। इतना ही नहीं, चीन को अपना खास दोस्त और बड़ा हितैषी समझने वाले पाकिस्तान को तब और बड़ा झटका लगा, जब चीन ने भी पाक के द्वारा कश्मीर में अंतराष्ट्रीय हस्तेक्षेप की मांग पर इसे द्विपक्षीय मामला कहकर कन्नी काट ली। इसके अलावा जब संयुक्त राष्ट्र महासभा में चर्चा हो रही थी, उसी समय संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय के सामने बलूचिस्तान और सिंध के लोग पाकिस्तान के खिलाफ नारे लगा रहे थे, इसने पाकिस्तान की पोल खोल के रख दी। संभव है कि इन सब घटनाक्रमों के पश्चात् ही सुषमा स्वराज ने पाकिस्तान की स्थिति का आकलन करके उसके आतंक प्रायोजक रूप को उजागर करने का निश्चय किया होगा।

विचारणीय यह है कि ऐसा क्या हो गया कि इशारों-इशारों में बात करने वाला भारत अब वैश्विक मंच से खुलेआम पाकिस्तान का नाम लेकर उसे आतंक का पोषक बता रहा है। दरअसल जब मोदी सरकार सत्ता में आई थी, तो इस सरकार ने भी पिछली सभी सरकारों की तरह पाकिस्तान से मधुर सम्बन्ध स्थापित करने के लिए प्रयास किए थे। प्रधानमंत्री मोदी द्वारा अपने शपथ ग्रहण समारोह पाकिस्तानी प्रधानमंत्री को बुलाना, अचानक पाकिस्तान पहुँच जाना, द्विपक्षीय वार्ताओं का दौर चलना आदि चीजों के माध्यम से भारत ने भरसक कोशिश की कि पाकिस्तान के साथ सम्बन्ध सहयोग और मधुरता की बुनियाद पर आधारित संबंधों की स्थापना हो सके। 

परन्तु, इन प्रयासों के प्रतिफल में पाकिस्तान की तरफ से पठानकोट और उड़ी जैसे आतंकी हमले और सीमा पर संघर्ष विराम का अनवरत उल्लंघन होता रहा। इस कारण देश में यह सवाल उठने लगा कि मोदी सरकार के पास भी पिछली सरकार की ही तरह पाकिस्तान को लेकर कोई ठोस नीति नहीं है। सरकार पर इस बात का अप्रत्यक्ष रूप से भारी दबाव था कि पाकिस्तान को लेकर एक ठोस नीति होनी चाहिए। तब मोदी सरकार ने पाकिस्तान के प्रति अपने नरम रुख में परिवर्तन किया। 

सैन्य स्तर पर सर्जिकल स्ट्राइक जैसे अभियान अंजाम दी गए तो कूटनीतिक स्तर पर पाक को विश्व बिरादरी से अलग-थलग करने की नीति अपनाई गई। हर वैश्विक मंच से पाकिस्तान की आतंकी गतिविधियों को उजागर किया जाने लगा। कश्मीर की बात करने वाले पाकिस्तान का जवाब भारत ने बलूचिस्तान और पीओके में पाकिस्तान के अत्याचारों को दुनिया के सामने लाकर देना शुरू किया। प्रधानमंत्री ने लाल किले की प्राचीर से बलूचिस्तान का प्रश्न उठाया। कुलदीप जाधव मामला आया तो अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में जाकर वहाँ पाकिस्तान को घुटनों पर लाने का काम किया। भारत के प्रभाव में अमेरिका भी पाकिस्तान की तरफ से अपने हाथ खींचने लगा है। पाकिस्तान को आतंकी देशों की सूची में डालना, अफगान नीति से बाहर करना और उसे दी जाने वाली सहायता में कटौती करना जैसे क़दमों से अमेरिका ने इस बात का प्रमाण भी दे दिया है। 

चीन भी अब भारत के खिलाफ तो कम से कम पाकिस्तान के साथ खड़ा होने की स्थिति में नहीं है। रूस, फ़्रांस जैसे देशों की भी यही स्थिति है। दक्षिण एशियाई और इस्लामिक देश भी पाकिस्तान को छोड़ भारत के साथ खड़े हैं। ऐसी स्थिति में यदि सुषमा स्वराज पाकिस्तान को सीधे-सीधे आतंक का प्रायोजक कह रही हैं, तो इसमें आश्चर्य का कोई कारण नहीं दिखता। भारत आज पाकिस्तान के समक्ष पहले से कई गुना अधिक सशक्त स्थिति में है और संयुक्त राष्ट्र में सुषमा ने उसी सशक्त भारत का संबोधन दिया है।
 
हालांकि उपर्युक्त सफलताओं के गुमान में हमें नहीं भूलना चाहिए कि पाकिस्तान एक परमाणु शक्ति संपन्न और लगभग विफल हो चुका देश है, अतः वो दुनिया खासकर भारत के लिए अब भी खतरा खड़ा कर सकता है। अतः उसस बराबरपूरी तरह से सावधान रहने की जरूरत है।

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