गुरुवार, 15 दिसंबर 2016

एंटोनियो गेटेरेस के आने से भारत की सुरक्षा परिषद् की दावेदारी को मिलेगा बल [राज एक्सप्रेस में प्रकाशित]

  • पीयूष द्विवेदी भारत
पिछले दिनों पुर्तगाल के पूर्व प्रधानमंत्री एंटोनियो गुटेरेस ने संयुक्त राष्ट्र (यूएन) के नये महासचिव के रूप में शपथ ली उन्हें यूएन महासभा के अध्यक्ष जॉन विलियम्स द्वारा ये शपथ दिलाई गई और अब वे आगामी एक जनवरी को अपना पदभार संभाल लेंगे वे पिछले दस वर्षों से संयुक्त राष्ट्र महासचिव के रूप में कार्यरत बान की मून की जगह लेंगे ये यूएन के नौवें महासचिव बने हैं बान की मून १३ अक्टूबर, २००६ को संयुक्त राष्ट्र के महासचिव बने थे और तबसे अबतक वे इस पद पर हैं ये उनके पांच वर्षों का दूसरा कार्यकाल है, जो कि 31 दिसंबर को पूरा हो जायेगा बहरहाल, बान की मून के जाने और एंटोनियो के आने से ये उम्मीद जगी है कि संयुक्त राष्ट्र के ढाँचे और कार्यपद्धति में बदलाव आयेगा शपथ ग्रहण के समय दिये अपने वक्तव्य में उन्होंने इस तरह की बातों के संकेत भी दिये हैं

गुटेरेस ने अपने शपथ ग्रहण के बाद संयुक्त राष्ट्र के १९३ सदस्य देशों को संबोधित करते हुए कहा कि संयुक्त राष्ट्र संगठन बहुपक्षीयता में अहम है और इसने दशकों की सापेक्षिक शांति में योगदान दिया है, लेकिन चुनौतियां उनसे निबटने की हमारी क्षमता से आगे निकल रही हैं, ऐसे में संयुक्त राष्ट्र को बदलाव के लिए तैयार रहना चाहिए उन्होंने यह भी कहा कि संयुक्त राष्ट्र को फुर्तीला, कार्यकुशल एवं प्रभावी होने की जरूरत है उसे प्रक्रिया पर कम, सेवाओं की आपूर्ति पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए, नौकरशाही पर कम और लोगों पर अधिक बल देना चाहिए गुटेरेस की इन बातों का सार तत्व यही है कि उनका प्राथमिक लक्ष्य संयुक्त राष्ट्र में हर स्तर पर बदलाव लाना होगा, संभव है कि इसमें सांगठनिक बदलाव भी सम्मिलित होगा उसकी कार्यपद्धति को लचीला बनाने पर भी उनका जोर होगा
राज एक्सप्रेस

गौर करें तो गुटेरेस की तमाम बातें वही हैं, जिनको अक्सर भारत भी कहता  रहा है। भारत की तरफ से भी अक्सर यूएन सुधार सम्बन्धी इसी तरह बातें की जाती रही हैं। वर्ष २०१४ में केंद्र में मोदी सरकार के आने के बाद से इस तरह की बातें और भी मुखर रूप से कही जाने लगी हैं। उल्लेखनीय होगा कि गत वर्ष संयुक्त राष्ट्र के अपने संबोधन में भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने संयुक्त राष्ट्र में सुधार पर जोर देते हुए कहा था, ‘सुरक्षा परिषद समेत संयुक्त राष्ट्र में सुधार अनिवार्य है ताकि इसकी विश्वसनीयता और औचित्य बना रहे सके। साथ ही, हम ऐसे विश्व का निर्माण कर सकें जहां प्रत्येक जीव मात्र सुरक्षित महसूस कर सकें, सभी को अवसर और सम्मान मिले।पीएम के इस वक्तव्य में स्पष्ट है कि भारत यूएन में सुधार पर जोर देता रहा है और अब यूएन के नये महासचिव गुटेरेस भी उसमें सुधार लाने की बात कर रहे हैं, तो ये भारत की मांग को बल देने वाला सिद्ध हो सकता है।

दरअसल यह तो समय की आवश्यकता है कि संयुक्त राष्ट्र का सांगठनिक विस्तार किया जाए और इसकी कार्यपद्धति में लचीलापन लाया जाए संयुक्त राष्ट्र का वर्तमान स्वरुप कितना संकुचित और अड़ियल है, इसका अंदाज़ा इसीसे लगाया जा सकता है कि भारत जैसे वैश्विक पटल पर मजबूती से अपनी छाप छोड़ रहे देश को यूएन की सुरक्षा परिषद् की स्थायी सदस्यता नहीं मिल पा रही, जबकि परिषद् के पांच में से चार स्थायी सदस्य देश भारत की सदस्यता के पक्षधर हैं मगर, सिर्फ एक चीन इसमें बिना किसी वास्तविक वजह के बस भारत से अपनी व्यक्तिगत खुन्नस के कारण वीटो का रोड़ा लगा देता है और बात अटक जाती है इस अड़ियल व्यवस्था को लचीला किए जाने की आवश्यकता है, जिससे और देशों को भी उसमें अपनी भागीदारी सुनिश्चित करने का अवसर मिल सके भारत के अलावा जापान, ब्राजील, जर्मनी इत्यादि तमाम देश हैं, जो संयुक्त राष्ट्र किस स्थायी सदस्यता की अहर्ता रखते हैं, उन्हें इससे वंचित रखना संयुक्त राष्ट्र के एक वैश्विक और निष्पक्ष निकाय के रूप स्थापित अस्तित्व पर प्रश्नचिन्ह लगाएगा और संभव है कि तब ये देश उसकी अवहेलना की नीति अपनाना भी शुरू कर दें वैसे भी, सिर्फ पांच देश मिलकर दुनिया की सुरक्षात्मक नीतियाँ निर्धारित कैसे कर सकते हैं अतः अगर संयुक्त राष्ट्र को अपनी प्रासंगिकता और महत्व को बरकरार रखना है तो सभी योग्य राष्ट्रों को उसमें समान रूप से भागीदारी मिलनी ही चाहिए  

बान की मून काफी लम्बे समय तक यूएन के महासचिव रहे, लेकिन इन सब बिन्दुओं पर वे या तो सिर्फ शिकायतें सुनते रहे या कोरा आश्वासन देते रहे कदम उठाने में उन्होंने कभी कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई अब एंटोनियो गुटेरेस द्वारा सुधार की बात करने के बाद उम्मीद तो जगी है कि इन बिन्दुओं पर कुछ बात बढ़ेगी, लेकिन जबतक वे कुछ ठोस कदम उठाएं तबतक कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी देखना होगा कि वे यूएन में सुधार सम्बन्धी अपनी बातों पर किस तरह से बढ़ते हैं और क्या कदम उठाते हैं हालांकि भारत जैसे देशों को उनके पदभार सँभालने के बाद यूएन में सुधार की अपनी मांग को और पूरजोर ढंग से उठाकर उनपर दबाव बनाए रखना चाहिए

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